आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 121 वी जयंती पर मुक्त चिंतन !
यह मेरी आदत, होश संभाला तबसे जारी है ! फिर मेरा जन्मदिन हो, या मेरे पिताजी, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया,डॉ. बाबा साहब अंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले या कार्ल मार्क्स की जन्म तिथि, पुण्य तिथि पर मै पीछे मुड़कर देखने की कोशिश करता हूँ !
कि उन सभी महानुभावों ने, अपने-अपने तरीके से दुनिया को बेहतर बनाने के लिए ! अपने जीवन का सबसे बेहतरीन समय दिया है ! और आज देश-दुनिया की क्या स्थिति है ? इसका मूल्यांकन करने के प्रयास करते रहता हूँ ! आज जेपिजी की पुण्य तिथि पर विनम्र अभिवादन के साथ यह मुक्तचिंतन !
संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है ! इस नारे को आज 49 साल पूरे हो रहे हैं ! और 2024 मे देश के लोकसभा चुनाव के समय पचास साल पूरा करेगा !
मै इस आंदोलन मे उम्र के इक्कीस साल का, यानी उस समय के अनुसार भारत मे मतदान करने की उम्र का ! और मै एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते !
इस आंदोलन मे तन मन धन से शामिल था ! था शब्द दोबारा इसलिए दोहरा रहा हूँ !
कि हमने संपूर्ण क्रांति के कितने कदम की यात्रा की है ? और आज 49 साल पूरे होने पर, मुझे लगता है, कि सिर्फ एक कर्मकांड के तौरपर जैसे हम हमारे त्योहार, दिपावली, दशहरा, ईद, ख्रिसमस या किसी भी अन्य धार्मिक त्योंहारे के जैसे, मनाया जा रहा है !
लेकिन संपूर्ण क्रांति का कौन-सा पहलू ? कौनसे पैमानों को हमने अबतक पूरा किया, या उसके लिए कुछ कोशिश की है? इसका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है !
जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति नामकी’ 104 पन्ने की पुस्तिका के, प्रकरण चार, पन्ना नंबर 58 मे, संपूर्ण क्रांति के विभिन्न पहलु !
“मै इस आंदोलन को संपूर्ण क्रांति के रूप मे देखता हूँ !
समाज मे अमुलाग्र परिवर्तन हो ; सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक,सांस्कृतिक, शैक्षणिक, नैतिक परिवर्तन ! एक नया समाज इसमेंसे निकले, जो – जो समाज के आज के समाज से बिलकुल भिन्न हो, उसमे कम-से-कम बुराइयाँ हो !
हम ऐसा भारत चाहते, जिसमें सब सुखी हों !और अमीर-गरीब का जो आकाश पाताल का भेद है ! वह न रहे, या कम-से-कम हो ! समाज की बुराइयाँ दूर हो, इन्साफ हो !
जो आर्थिक परिवर्तन हो, उसका फल यह हो कि, सबसे नीचे के लोग है, जो सबसे गरीब है, चाहे वे खेतिहर मजदूर हो, भूमिहीन हो-मुसलमान, हरिजन, आदिवासी, ये सबसे नीचे है, इनको पहले उठाना चाहिए !
यह 1974 की बात है !
वर्षों से भारत की आजादी के बाद, जो कुछ हुआ सब कुछ उल्टा हुआ ! गरीबी बढती गयी ! और उसके साथ ही अमीरी भी ! और दोनों का फर्क भी बहुत बढता गया !
भूमि सुधार के कानून भी पास हुए, परंतु भूमि-हिनता बढती ही गयी, घटी नहीं ! पहले जितने परसेंटेज में भूमिहीन थे, आज उससे अधिक है !
यह जो क्रांति आरंभ हुई है, अगर वह सफल होती है ! तो यह सब उसमें से निकलेगा ! समाज की बुराइयाँ, छुआ-छूत, जात-पात के झगड़े, सांप्रदायिक झगड़े, सब समाप्त होने चाहिए !
हम सब हिंदूस्थानी है, हम इन्सान है, यह विचार फैलना चाहिये ! सबके दिल में इसकी जगह होनी चाहिए ! हमारे कार्य मे, हमारे जीवन मे यह प्रत्यक्ष होना चाहिए, केवल जुबान पर नहीं, जैसा आज हो रहा है !
और इसी तरह, चूंकि इसमें छात्र है, मैंने अक्सर इनसे कहा है कि, हिंदू-समाज मे, मुस्लिम-समाज मे भी शायद किसी रूप में हो, जो यह तिलक-दहेज की प्रथा है, अगर यह आंदोलन सफल हुआ तो यह चलन भी बंद होगा !
इस तरह मैं दूर तक देखता हूँ, जो सर्वोदय की मंजिल है, जो समाजवाद की मंजिल या साम्यवाद की मंजिल है– सब एक तरह की बात करते हैं, तरीके, रास्ते अलग-अलग है ! और हो सकते है, मै इस आंदोलन को वहां ले जाना चाहता हूँ ! यह क्रांति है, मित्रों संपूर्ण क्रांति ! “
साथीयो यह जयप्रकाश नारायण के, सर्वसेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी के,जनवरी 1975 के 104 पृष्ठ की पुस्तिका का, सत्तावन और अठ्ठावन पन्नो पर, संपूर्ण क्रांति के ‘विभिन्न पहलु’ नाम का अध्याय के कुछ विचार है !
आगे जेपिजीने इन सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है ! और हम संपूर्ण क्रांति के सिपाही इसे रटकर, 1977 के मई मे महाराष्ट्र के अमरावती में एक सप्ताह का शिबिर करने के बाद !
विधिवत् महाराष्ट्र संघर्ष वाहिनी की स्थापना करके, मुखतः महाराष्ट्र में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की जगह-जगह स्थापना के लिए, निकल पड़े ! मैंने खानदेश, पस्चिम महाराष्ट्र, कोंकण और कर्नाटक के बेलगाँव, निपाणी इत्यादि महाराष्ट्र से लगे हुए हिस्सोमे, अपने ढंग से प्रचार-प्रसार के लिए अपने आप को झोंक दिया था !
और हम सीधे जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के सिपाही होने के नाते अखबरोमे आज डॉ. सुरेश खैरनार रत्नागिरी में है ! और संपूर्ण क्रांति पर मौलिक मार्गदर्शन करेंगे ! इस तरह के लगभग हर जगह खबरे छपती थी ! और हमारे श्रोताओं मे बाकायदा विधानसभा के विधायक से लेकर हर जगह का बौद्धिक तबके की उपस्थिति होती थी !
पुणे के ‘गोखले इन्स्टीट्यूट’ में श्रोताओं मे यदुनाथ थत्ते, ठाकुरदास बंग और पुणे की जाने मानी हस्तियों को देखकर मेरे तो पैर लटपटाने लगे थे ! और काफी नर्व्हस होकर कैसा तोभी बोला होगा क्योंकि महाराष्ट्र के मूर्धन्य संपादक मेरे भाषण की नोट्स ले रहे थे !
इस तरह के जीवन के सबसे बेहतरीन समय लगभग बीस से पच्चीस साल का ! 1982 तक, मैंने इमानदारी से संपूर्ण क्रांति की सपनों की दुनिया बनाने हेतु कोशिश की है !
और इसमें हमें उस समय की सत्ताधारी दल जनता पार्टी के विधायक, संसद और अन्य पदाधिकारियों का काफी सहयोग मिला है ! लेकिन आज संपूर्ण क्रांति के घोषणा के, 49 साल पूरे होने पर पीछे मुड़कर देखने के बाद लगता है, कि वह एक तात्कालिक सपना था !
और उस सपने में मेरे जैसे शेकडो युवक-युवतियां शामिल थी ! उसमे से कोई राजनीतिक दल के दामन थाम लिये ! तो संसद सदस्यों से विधायक तथा मुख्यमंत्री और कुछ मंत्रियों के पद पर चले गये !
और जिन्हें प्रोजेक्ट बनाने की कला आती थी ! वह एन जी ओ बन गये ! और जिन्होंने जेपिके आवाहन पर शिक्षा में क्रांति के लिए शिक्षा अधुरी छोड़ दी थी, उन्होंने उसे पूरी करके कोई पत्रकार कोई वकील, शिक्षा के क्षेत्र में और अन्य नौकरियों मे चले गये !
मेरे जैसे निखठ्ठ अपनी बीवी की तनख्वाह पर गुजारे में लग गए ! जिसे मैं अपनी समझ के अनुसार संपूर्ण क्रांति की एक स्रि – पुरुष समानता की व्याख्या के अनुसार ‘हाऊस हज्बंड’ की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं !
https://samtamarg.in/?p=25871
लेकिन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकल कर, राजनीति मे जाने वाले लोगों ने, संपूर्ण क्रांति की ऐसी की तैसी करने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी ! और उत्तर भारत के काफी बडे हिस्सेपर 1977 से लगातार, अलट-पलट कर जेपिके आंदोलन को भुनाने वाले ही लोग सत्ता मे रहे हैं !
और इन्होंने संपूर्ण क्रांति के कौनसा पहलू को लेकर क्या काम किया है ? यह एक अकादमिक संशोधन का विषय है ! और समाजशास्त्र या राजनीति शास्त्र के विद्यार्थीयोने जरूर संशोधन करना चाहिए ! इस पर, इसके पहले ही मैंने काफी कुछ लिखा-बोला है ! इसलिए ज्यादा दोहराना नहीं चाहता !
लेकिन सबसे संगीन बात संघ परिवार जेपिके इस आंदोलन मे शामिल होकर, साँप जैसे नई चमडी लेकर चमकता है ! वैसा ही उसने गाँधीजीकी हत्या के बाद, अपने चेहरे को नया मुखौटा पहने के बाद ही ! भारत की राजनीति मे आजका मुकाम हासिल किया हैं ! और संपूर्ण क्रांति तो दूर की बात है !
संविधान से सेक्युलरिज्म और सोशलिस्ट शब्दों को हटाकर वर्तमान सरकार ने अपनी पूंजीवाद के हिमायती होने की बात डंके के चोटपर दिखा दिया है !
और इसिलिये मुक्त अर्थव्यवस्था, जिसमें गरीब और गरीब हो रहा है ! और अमीरो को ( उसमे भी विशेष रूप से, गौतम अदानी का एंपायर ) वर्तमान सरकार उसकी हर तरह से मदद करता हुआ ! सभी कानून बदलकर या उनकी अनदेखी करते हुए ! सरकार और अमीर जैसे एक ही बनकर !
देश की सार्वजनीक संपत्ति, खनिज और जल, जंगल, जमीन के वारे-न्यारे कर रहे हैं ! सार्वजनिक क्षेत्र को समाप्त करने पर तुले हुए हैं !
और सभी सरकारी उद्योगों को वर्तमान सरकार औने-पौने दामौमे प्रायवेट मास्टर्स को देना जारी है ! जिसमें, रेल्वे, सडकपरिवहन, हवाई यातायात, जहाजरानी, विभिन्न सरकारी उद्योग जिसमें हमारे रक्षा जैसे देश की सुरक्षा को दांव पर लगाने से लेकर, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण उपक्रमों को भी प्रायवेट मास्टर्स को सौपने के लिए !
सरकार खुद ही स्कूलों की फिस बढाकर और सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत बनाने का ताजा उदाहरण नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में भर्ती पेशंट की मौतें इसका जिता – जागता उदाहरण है !
और उनके लिए कृषि कानूनों को बदलने से लेकर, सीलिंग कानून, उद्योगपतियों की सुविधा के लिए, मजदूरों ने शेकडो सालो की लड़ाई के बाद हासिल किये हुए कानूनों को बदलने की सरकार ने किए हुए बदलाव पूंजीपतियों के हित में , शिक्षा के क्षेत्र से लेकर आरोग्य व्यवस्था जो एक कल्याणकारी सरकारों का दायित्व होता है ! उससे सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुकर रही है !
और सबसे संगीन बात कोरोनाके जैसी महामारी मे लाखो लोगों की जाने जाने के बाद, सरकार की स्वास्थ्य सेवा उजागर हो चुकी है !
और सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं मान रही ! सब कुछ प्रायवेट स्वास्थ्य टायकूनो के हवाले कर दिया है ! शिक्षा के क्षेत्र में भी शिक्षासम्राटो के हवाले शिक्षा सौपी जा रही है !
इसलिए बची खुची सरकारी स्कूल, काॅलेज और विश्वविद्यालयों की फीस बेतहाशा बढानेका एकमात्र उद्देश्य दलित, आदिवासी, पिछडी और गरीबों के लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कोई गुंजाइश नहीं रहे !
और सबसे संगीन बात, जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से नया मुखौटा पहने के बाद ही ! संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा के द्वारा शुरू किया गया, ‘राम मंदिर-बाबरी मस्जिद’ के आंदोलन से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए !
भागलपुर का दंगा 24 अक्तूबर 1989 , गुजरात का दंगा 27,फरवरी 2002 , मुंबई तथा देशके विभिन्न हिस्सों में शेकडो जगहों पर 6 दिसंबर 1992 के दिन आयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद कितने लोगों की जिंदगी दांव पर लगी?
फिर अपने लिए चुनाव प्रचार के लिए हमारी देश की सेना के जवानों की जान के साथ खिलवाड़ तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक तथा पुलवामा जैसे की घटनाएं और अब ताजा फिलिस्तीन के सवाल पर प्रधानमंत्री ने जिस तल्खी से तुरंत ही अपने ट्विटर हैंडल से हम इजराइल के साथ होने की घोषणा भारत की पचहत्तर साल से चलि आ रही विदेश नीति के खिलाफ और झिओनिस्ट इजराइल के तरफ से सपोर्ट की भूमिका नरेंद्र मोदी अपने संघ के संस्कारों के अनुसार अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ जाने का मौका के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं !
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वैसे भी संघ भले ही हिटलर के यहूदियों के खिलाफ फॅसिस्ट तरीके को नकल कर के ही संघ की स्थापना की है ! लेकिन इजराइल की निर्मिति के तुरंत ही इजराइल के तारिफ के पूल बांधे जा रहा है ! और नरेंद्र मोदी उसी पॉलिसी का वहन कर रहे हैं !
और वर्तमान मे तथाकथित नागरिक संशोधन बिल, लवजेहाद, हिजाब, गोहत्या जैसे मुद्दों के माध्यम से समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को सताने !
और कश्मीर, लक्षद्वीप जैसे मुस्लिम बहुलतावादी क्षेत्रों में हिंदुत्व की राजनीति लादने के काम करने की कृति, जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति की व्याख्या का माखौल उडाने की कृति एकसे बढकर एक करते जा रहे हैं !
और जयप्रकाश नारायण के बनाये हुए पीयूसीएल, सीएफडी, संघर्ष वाहिनी के साथी सालाना जलसे, मित्र-मिलन और साल छ महीने मे एखादा निवेदन तैयार करके नरेंद्र मोदी इस्तीफा दो !
मुझे हमारे संघर्ष वाहिनी के 1977 – 80 के दिन याद आ रहे है ! संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय समिति की बैठकों मे युगांडा के तत्कालीन तानाशाह, इदी अमिन या दक्षिणी अफ्रीका की वर्णभेदी सरकारो को भी !
धमकानेके प्रस्ताव पारित करने के लिए ! एक-एक शब्द के लिए, रात-रात चर्चा करते थे ! फिर बडेही मुश्किल से वह प्रस्ताव पारित होता था ! लेकिन उसकी काॅपी दिल्ली स्थित उनके एंबेसियो तक नहीं पहुँचा पाते थे ! और इदी अमिन और बोथा तो बहुत ही दूर की बात है !
आजकल कुछ दिनों से नरेंद्र मोदी इस्तीफा दो का, अभियान चलाया जा रहा है !
मै भी नरेंद्र मोदी के इस्तीफे के लिए बहुत पहले लीख चुका हूँ ! और 25 जून 1975 के दिन एतिहासिक रामलीला मैदान में ‘सिहासन खाली करो कि जनता आती है !’ और ‘हर जोर जुल्म के खिलाफ संघर्ष हमारा नारा है !’ यह नारे लगाते हुए, हमही लोगों ने गर्जनाए की है ! और लाभ कौन उठा रहे हैं ?
इसका मतलब नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग से मेरी असहमति होने का सवाल ही नहीं है ! लेकिन सिर्फ सांकेतिक रूप से इस्तीफा मांगने से काम नही होगा !
अभी परसों ही कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है ! और यह चुनाव आने वाले 2024 में लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल मुकाबला है ! इसलिए हम लोगों ने भाजपा को हराने की क्षमता रखने वाले दल के लिए अलग – अलग जगह पर अपने आपको खपाने की जरूरत है !
भले ही पहले कुछ लोगों ने अलग लोगों को सपोर्ट किया होगा ! लेकिन अभी भाजपा को रोकने के लिए, अपनी नई रणनीति के तहत अपने निर्णय बदलने की जरूरत है !
उदाहरण के लिए तेलंगाना राज्य में कांग्रेस की संभावना है ! तो कांग्रेस, और उसी तरह मध्य प्रदेश तथा राजस्थान तथा मिजोरम और जहां भी चुनाव होने वाले हैं उन सभी जगहों पर भाजपा को हराना यही मुख्य लक्ष्य होना चाहिए !
और इसलिए हमारी जो भी ताकत है उसे देखते हुए हमने अपने आप को बनारस की दो दिनों की बैठक समाप्त होने के पहले कुछ साथियों ने अपने आपस में तय करके ही बनारस से निकलना चाहिए !
कौन कहा पर जाएंगे ? यह निर्णय लेकर ही निकलना चाहिए ! और विधानसभाओं के चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव के लिए अलग से एक बैठक बुला कर उसकी रणनीति तय करना चाहिए क्योंकि विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए सोचेंगे ऐसा मुझे लगता है !
बैठक में शामिल न होने के लिए सभी साथियों की माफी मांगता हूँ ! और चुनाव प्रचार में भी शामिल नहीं होने के लिए भी ! लेकिन अपनी क्षमता के अनुसार कुछ पर्चे या पत्रक लिखने की कोशिश अवश्य करूंगा ! जयप्रकाशजी की 121 वी जयंती के अवसर पर विनम्र अभिवादन और पुनः सभी साथियों को क्रांतिकारी अभिवादन !
–डॉ. सुरेश खैरनार

डॉ. सुरेश खैरनार