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गोडावण विलुप्ति की कगार पर : शैलेन्द्र चौहान

by Samta Marg
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गोडावण विलुप्ति की कगार पर

गोडावण विलुप्ति की कगार पर

 

गोडावण विलुप्ति की कगार पर प्रकृति के साथ मानवीय संपर्क बढ़ाने वाले समस्त साधनों में पक्षी, एक विशेष भूमिका निभाते हैं।

ये हर स्थान पर पाए जाते हैं। ये शिकारी होने के साथ-साथ बीज बिखराव करके हमारे जीवन को सुगम बनाते हैं।

हाल ही में पक्षियों की लुप्त होती प्रजातियों पर आई एक रिपोर्ट ने चिंता की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

विश्व रिपोर्ट में भारतीय पक्षियों की 67 प्रजातियों को खतरे की स्थिति में बताया गया था। इनमें 34 प्रजातियां और जुड़ गई हैं। इन्हें तुरन्त संरक्षण की आवश्यकता है। हालांकि कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जो वैश्विक स्तर पर कम हो रही हैं, लेकिन भारत में इनकी स्थिति अच्छी है।

भारत में पक्षियों की लगभग 1300 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें बहुत सी भिन्नताएं हैं। कुछ खुले में उड़ने वाली हैं, तेज आवाज करती हैं; तो वहीं कुछ शर्मीली किस्म की चिड़िया हैं, जिन्हें ढूंढना या देखना बहुत मुश्किल होता है। इनके आवास अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में हैं।
कुछ प्रवासी पक्षी हैं, जो आते-जाते रहते हैं। ऐसे में पक्षियों की संख्या का पता लगाना कठिन होता है। पक्षियों से संबंधित अनेक बदलाव देखे गए हैं।
इनकी स्थितियों में परिवर्तन के कारणों का पता लगाना, उस दिशा में विकास और संरक्षण की गतिविधियों को आगे बढ़ाना निःसंदेह बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है।
सफलता इसमें है कि कारणों को जानकर किए जाने वाले प्रयास सटीक हो सकेंगे, और वे लुप्तप्राय या खतरे की स्थिति में आती जा रही प्रजातियों के संरक्षण के लिए सार्थक कदम उठाए जाएं।
दुर्लभ पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, गोडावण मानवीय हस्तक्षेप बढऩे के कारण लुप्त होने के कगार पर है। गोडावण पक्षी आकार में काफ़ी बड़ा तथा वजन में भारी होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है।
गोडावण राजस्थान तथा सीमावर्ती पाकिस्तान के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक दुर्लभतम पक्षी है। यह पक्षी अत्यंत ही शर्मिला होता है और सघन घास में रहना इसका स्वभाव है। यह ‘सोहन चिडिया’ तथा ‘शर्मिला पक्षी’ के उपनामों से भी प्रसिद्ध है।

गोडावण विलुप्ति की कगार पर

गोडावण उड़ने वाले पक्षियों में सबसे अधिक वजनी है। अपने बड़े आकार के कारण यह शुतुरमुर्ग जैसा प्रतीत होता है।
1960 के दशक के प्रारम्भ में भारत के लिए राष्ट्रीय पक्षी पर विचार किया जा रहा था और सालिम अली चाहते थे कि वह पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड हो, हालाँकि भारतीय मोर के पक्ष में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।
भारत में गोडावण जैसलमेर के मरू उद्यान व अजमेर के शोकलिया क्षेत्र में पाया जाता है। यह जमीन से 20 से 25 फीट ऊंचाई तक अधिकतम एक किमी तक उड़ान भरने की क्षमता रखने वाला शर्मीला पक्षी है।
लंबी पतली सफेद गर्दन सिर पर काला क्राउन तथा औसतन 10 किलो वजनी नर गोडावण 120 व मादा 90 सेमी ऊंची होती हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड डाटा बुक में शामिल लुप्तप्राय दुर्लभ पक्षी के पैरों में केवल तीन अंगुलियां होने से यह पेड़ों की टहनी पर नहीं बैठ सकता है।
भारतीय पक्षियों में सबसे ऊंचा पक्षी गोडावण जमीन पर अंडे देने के कारण सरिसृप का भोजन बनने और पालतू मवेशियों के पैरों तले अंडों के कुचले जाने से भी इनकी संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो पाती। गोडावण भारी होने के कारण उड़ नहीं सकता, लेकिन लंबी और मजबूत टांगों के सहारे बहुत तेजी से दौड़ सकता है।
गोडावण एक सर्वाहारी पक्षी है। इसकी खाद्य आदतों में गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों का भक्षण करना शामिल है, किंतु इसका प्रमुख खाद्य टिड्डे आदि कीट है। यह साँप, छिपकली, बिच्छू आदि भी खाता है।
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इसके साथ ही यह पक्षी बेर के फल भी पसंद करता है। करीब चार दशक पूर्व थार रेगिस्तान में सम, सुदाश्री, फुलिया, म्याजलार, खुड़ी, सत्तो आदि क्षेत्र में गोडावण की संख्या करीब 1260 थी जो घटकर मात्र 40 रह गई है। वर्ष 1979 में अरब देश के शाह बदर की ओर से जैसलमेर में गोडावण शिकार की घटना के बाद गोडावण पक्षी विश्व भर में चर्चा का विषय बना था। गोडावण का अस्तित्व वर्तमान में खतरे में है तथा इनकी बहुत कम संख्या ही बची हुई है, अर्थात् यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है।
गत दिनों में राज्य सरकार ने गोडावण संरक्षण के लिए 12 करोड़ 90 लाख की पांच वर्षीय परियोजना आरंभ की है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी मुंबई के निदेशक डॉ. ए रहमानी व बीकानेर जोधपुर जंतुआलय के अधीक्षक रहे वाईडी सिंह ने गोडावण संरक्षण के लिए लंबे अर्से तक प्रयास किया।
राष्ट्रीय मरु उद्यान (डेज़र्ट नेशनल पार्क)3162 वर्ग किमी. में फैले इस अभयारण्य में बाड़मेर के 53 और जैसलमेर के 35 गाँव शामिल हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा अभयारण्य है।
इसकी स्थापना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अर्न्तगत वर्ष 1980-81 में की गई थी। राजस्थान में सर्वाधिक संख्या में गोडावण पक्षी इसी उद्यान में पाए जाते हैं। इसलिये इस अभयारण्य क्षेत्र को गोडावण की शरणस्थली भी कहा जाता है।
राष्ट्रीय मरु उद्यान में पिछले चार दशक से गोडावण की संख्या में निरन्तर कमी के चलते अब इनकी संख्या घटकर 40 तक जा पहुंची है। देश भर में गोडावण की प्रमुख आश्रय स्थली माने जाने वाला राष्ट्रीय मरु उद्यान बाड़मेर जैसलमेर के क्षेत्र में बढ़ता जैविक दबाव और मानवीय हलचल से गोडावण के भोजन का प्रमुख आधार भी निरंतर समाप्त हो रहा है।
राजस्थान सरकार के वन विभाग ने गोडावण की रक्षार्थ ‘गोडावण संरक्षण प्रोजेक्ट’ की शुरूआत भी की है, जिससे इस पक्षी को लुप्त होने से बचाया जा सके और इसकी संख्या भी बढ़ सके।
इस विशाल पक्षी को बचाने के लिए राजस्थान सरकार ने हाल ही में एक प्रोजेक्ट तैयार किया है। प्रोजेक्ट का विज्ञापन “मेरी उड़ान न रोकें” जैसे मार्मिक वाक्यांश से किया गया है। गोडावण को बचाने का यह प्रोजेक्ट है- ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’।
गोडावण की रक्षा और संरक्षण के लिए इस प्रोजेक्ट के रूप में कार्य आरंभ करने वाला राजस्थान पहला राज्य बन चुका है।
गोडावण की हलचल व आवागमन पर नज़र रखने के लिए गोडावण कन्ज़र्वेशन ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की ओर से उनपर सेटेलाइट टैग लगाए जा रहे है।
अब तक आठ मादा गोडावण के टैग लगाए जा चुके है। शुरूआती पायलट प्रोजेक्ट के तहत दस गोडावण पर यह टैग लगाये जाने है। यदि यह योजना सफल रहती है तो आगामी दिनों में राष्ट्रीय मरू उद्यान इलाके सहित आस पास के क्षेत्र में जितने भी गोडावण है उन पर सेटेलाइट टैग लगाए जायेंगे। वर्तमान में आठ मादा गोडावण के टैग लगाए जा चुके है।
कामयाबी मिलने पर आगामी दिनों में ज्यादातर गोडावण पर टैग लगा दिए जायेंगे। खासतौर पर गोडावण की हलचल व आवागमन पर सेटेलाइट निगरानी के लिए ये टैग लगाए जा रहे है। ज्ञात रहे राज्य पक्षी गोडावण शर्मीले स्वभाव का पक्षी है। आस पास किसी की भनक लगने पर वह अपनी जगह बदल लेता है।
सेटेलाइट के माध्यम से सर्दी के मौसम में गोडावण किस इलाके में ज्यादा रहते है,और वहीं बाकी के मौसम में उनका आवागमन कहां रहता है तथा खास तौर पर ब्रीडिंग टाइम में किस क्षेत्र में जाते है ताकि इस दौरान गोडावण को पुख्ता सुरक्षा मुहैया करवाई जा सके।
गोडावण संरक्षण के लिए ये अब तक का सबसे सफल प्रयास कहा जा सकता है। इससे पूर्व इनके लिए ब्रीडिंग सेंटर तैयार किया गया था। बाद में वहां गोडावण के अंडों को ले जाकर वहीं पर चूजों को बड़ा किया जा रहा है। वर्तमान में अट्ठारह के करीब नन्हे गोडावण ब्रीडिंग सेंटर में पल रहे है। इसी प्रोग्राम के तहत अब गोडावण पर सेटेलाइट टैग भी लगाए जा रहे है।
शैलेन्द्र चौहान

शैलेन्द्र चौहान

शैलेन्द्र चौहान

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