जनहित का जरूरी मुद्दा – शराब बंदी

भारत डोगरा
नशा, खासकर शराब हमारे समाज में इस दर्जे पर आ गई है कि कई राज्य
सरकारें सर्वाधिक राजस्व बटोरने का साधन बताते हुए शराब को खुल्लमखुल्ला
बेचने की तरफदारी करने लगी हैं। क्या यह किसी भी लोक-कल्याणकारी राज्य
के लिए उचित माना जा सकता है? कौन सी, कैसी नीतियां इसे रोक सकती हैं?
प्रस्तुत है, इसी पर प्रकाश डालता भारत डोगरा का यह लेख।–संपादक
अभी तक के अनुभव से यह स्पष्ट हुआ है कि केवल कानूनी कार्यवाही से शराब के नशे को दूर नहीं किया जा
सकता, इसके साथ नशे के विरुद्ध व्यापक जन-अभियान की भी जरूरत है।
यदि पिछले कुछ दशकों को देखें तो समय- समय पर शराब के विरुद्ध बहुत सफल जन-आंदोलन हुए हैं। छत्तीसगढ़ के दल्ली-राजहरा क्षेत्र में हजारों लौह अयस्क खनन मजदूरों ने अपने श्रमिक संगठन के बहुत प्रेरणादायक माहौल में शराब को छोड़ा।
समय-समय पर उत्तराखंड, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश व हरियाणा से भी शराब विरोधी आंदोलनों की सफलता के समाचार
मिले हैं। सहारनपुर जिले (उत्तरप्रदेश) में पठेड़ का शराब विरोधी आंदोलन बहुत चर्चित रहा और यहां की महिलाओं के दृढ़ निश्चय को बहुत सम्मान मिला। अंत में इस दृढ़ निश्चय के बल पर ही उन्हें सफलता मिली। पंजाब में शराब का प्रचलन
बहुत अधिक है, पर यहां के कई गांवों से भी शराब के विरुद्ध आवाज उठने लगी है।
ऐसे सब जन-अभियान व आंदोलन बहुत सार्थक तो रहे हैं, पर एक बड़ा सवाल यह है कि क्या उनकी निरंतरता को
बनाए रखा जा सकता है? कुछ समय बाद आंदोलन व अभियान ढीले पड़ते हैं तो शराब की कमाई से जुड़े तत्त्व फिर हावी
हो जाते हैं। शराब का ठेका हटा दिया गया तो भी वे अन्य तरह से अवैध शराब बेचने लगते हैं।
अतः यह जरूरी है कि जहां आंदोलन होते हैं व शराब के विरुद्ध लोग एकजुट हों वहां स्थाई तौर पर नशा विराधी समितियों का गठन हो जाना चाहिए व इनकी बैठकें भी नियमित होनी चाहिए, ताकि नशे के विरुद्ध जो चेतना लोगों में आई है, वह बनी रहे। इस
तरह के प्रयास जगह-जगह होते रहें तो सरकारों पर भी दबाव बनेगा कि वे शराब की आय के मोह से मुक्त होकर इस
बुराई को कम करने के लिए सक्रिय हों।
दूसरी ओर, यदि केवल कानूनी व सरकारी स्तर पर ही प्रयास हों तो यह व्यापक जन-सहयोग प्राप्त नहीं कर सकेंगे
और जन-सहयोग के अभाव में अपराधी तत्त्व तरह-तरह से अवैध शराब की बिक्री को बढ़ाने में सफल हो जाएंगे। अतः
यदि कोई सरकार शराबबंदी के क्रियान्वयन को सफल बनाना चाहती है तो उसे कानूनी व सरकारी कार्यों के साथ व्यापक
जन-आधार वाले शराब विरोधी आंदोलन के लिए भी अनुकूल स्थितियां प्रदान करनी चाहिए और विशेषकर महिलाओं के
सहयोग से हर स्तर पर शराब के विरुद्ध एक जबरदस्त नैतिक माहौल तैयार करना चाहिए।
विभिन्न समुदायों में आदर-सम्मान का स्थान रखने वाले व्यक्तियों को इस अभियान से जोड़ना चाहिए। लेखकों,
कलाकारों, मीडियाकर्मियों का सहयोग इस अभियान को प्राप्त करना चाहिए।
विशेषकर युवाओं व छात्रों तक शराब से जुड़ी तमाम गंभीर समस्याओं की जानकारी असरदार ढंग से पंहुचानी चाहिए। पाठ्यक्रम में भी इस विषय को स्थान मिलना
चाहिए। युवाओं व छात्र-छात्राओं को इस अभियान में सक्रिय भागीदारी के लिए भी तरह-तरह से प्रोत्साहित किया जाना
चाहिए।
शराब के विरुद्ध माहौल बनने पर जो लोग शराब की लत छोड़ना चाहते हैं उनके लिए अनुकूल माहौल तैयार करना
चाहिए। इसके लिए डाक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों का सहयोग प्राप्त करना चाहिए। सरकारी स्वास्थ्य तंत्र में नशा छोड़ने के
लिए सहायता उपलब्ध करवाने पर समुचित ध्यान देना चाहिए। इस तरह यह किसी एक सरकारी विभाग का कार्य नहीं
है, अपितु इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे कई विभाग अपने-अपने योगदान के साथ जुड़ सकते हैं।
शराबबंदी की सफलता के लिए जरूरी है कि जिस तरह जीवन-मूल्यों में गिरावट आ रही है उसे अधिक व्यापक स्तर
पर रोकने के प्रयास हों। इन प्रयासों में परिवार व शिक्षा संस्थानों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जीवन-मूल्यों के गिरने से ही
समाज में शराब के विरुद्ध जो भावना थी, वह कमजोर हुई है। अब समाज में व्यापक स्तर पर शराब-विरोधी भावना को
फिर मजबूत करना बहुत जरूरी हो गया है।
शराब की बढ़ती खपत जहां गहरी चिंता का कारण है, वहां शराब के विरुद्ध सामाजिक मान्यताओं का निरंतर मंद
होना व शराब को सामाजिक प्रतिष्ठा देने के कुप्रयास और भी चिंताजनक है। बहुत सी राज्य सरकारों की शराब संबंधी
सोच का आधार यह है कि इससे जो आय प्राप्त होती है उसे बढ़ाना है। बहुत से शराब माफिया सरकारों के नजदीक आ
गए हैं और अपने हितों के अनुकूल नियम-नीति बनवा लेते हैं।
अतः अब यह समय आ गया है कि देश भर में बहुत स्पष्ट शराब विरोधी नीति बनाई जाए। इसका आधार यह होना
चाहिए कि शराब के व्यापक व गहरे स्वास्थ्य व सामाजिक दुष्परिणाम भली-भांति प्रमाणित हैं व शराब की खपत को
जितना हो सके उतना कम करना है। शराब के गंभीर दुष्परिणामों के बारे में सरकार को निरंतरता से व्यापक अभियान
चलाना चाहिए व ऐसे अन्य सामाजिक अभियानों को प्रोत्साहित करना चाहिए। शराब के दुष्परिणामों पर पर्याप्त जानकारी
शिक्षा संस्थानों में मिलना चाहिए।
शराब विरोधी अभियानों में भरपूर प्रामाणिक जानकारी होनी चाहिए, इसमें शालीनता को बनाए रखना चाहिए, पर
साथ ही इसे मनोरंजक व लोकप्रिय बनाने के प्रयास भी होने चाहिए। इस अभियान में रेडियो, टीवी, वीडियो, डाक्युमैंट्री,
पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तिकाओं, पर्चे, कविता-कहानी, नाटक, नुक्कड़ नाटक, गीत, लोकगीत सभी विधाओं का उपयोग करना
चाहिए। शराब की बोतल व पाऊच पर इसके गंभीर स्वास्थ्य व सामाजिक दुष्परिणामों की चेतावनी बड़े अक्षरों में स्थानीय
भाषा में लिखी होनी चाहिए। शराब को आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति को कई तरह से नियंत्रित किया जा सकता
है।
एक स्पष्ट नीति यह होनी चाहिए कि किसी भी गांव में यदि 50 प्रतिशत व्यक्ति शराब की दुकान के या ठेके के
विरुद्ध आवाज उठाते हैं तो वहां शराब का ठेका नहीं खुल सकता है। यदि यह पहले से खुला है तो 50 प्रतिशत लोगों के
विरोध का हस्ताक्षरित आवेदन मिलने पर इसे बंद करना होगा। इसके साथ जहां भी अवैध शराब बिकती है उसके विरुद्ध
सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।
सरकार को शराब-विरोधी कार्यवाहियों में जन-भागीदारी को बढ़ाना चाहिए जिससे विभिन्न स्थानों की जरूरत के
अनुसार शराब-विरोधी कदम उठाए जा सकें। यदि इस कार्य में जन-भागीदारी प्राप्त हो तो जो भी कानूनी कदम शराब के
विरोध में सरकार उठाएगी, उन्हें भी व्यापक जन समर्थन मिलेगा।
विभिन्न शराब-विरोधी जन अभियानों को सरकार का
समर्थन व सहायता मिलनी चाहिए। शराब माफियाओं के सरकार के नजदीक आने तथा नीति-नियम प्रभावित करने के
कुप्रयासों का कड़ा विरोध होना चाहिए व इस पर रोक लगनी चाहिए। (सप्रेस)
श्री भारत डोगरा प्रबुद्ध एवं अध्ययनशील लेखक हैं।
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