बेढब बनारसी (कृष्ण प्रसाद गौड़ 1885-1968) की रचना ‘लफ्टंट पिगसन की डायरी’ से
“सात आठ दिन हुए गुदड़ी बाज़ार की ओर निकल गया था. वहां मोटी जिल्द में बंधी कापी एक दूकान पर मिली. दीमकों ने उसका जलपान भी किया था. देखने पर एक डायरी निकली. लेफ्टिनेंट पिगसन 1921 में भारत आये थे. यह डायरी दो साल की है. अंत के कुछ पृष्ठ नहीं हैं. डायरी कितनी मनोरंजक है पढने से पता चलेगा.” इसी डायरी के कुछ अंश नीचे दिए हैं…
मैंने मिस्टर गाँधी का नाम पहले भी सुना था. उनके सम्बन्ध में तीन-चार बार पढ़ा भी था. एक बार तो एक अंग्रेजी पत्र में उनकी जीवनी निकली थी, जिसमें लिखा था कि यह कोई फकीर जादूगर हैं. इनके हाथ में एक लाठी रहती है, जिसमें एक प्रकार का जादू है. जो इनके सामने आता है उसे इस लाठी से छू देते हैं और वह सब बातें भूल जाता है और उसका दिमाग ख़राब हो जाता है. फिर जो ये कहते हैं वही करने लगता है. यह कुछ खाते नहीं. एक बकरी पाल रखी है. यह भी लिखा था कि जादू सीखने के पहले वे इंग्लेंड भी गए थे और वहां कानून पढ़ा था. कोई अँगरेज़ इनसे मिलने नहीं जाता. यदि कोई जाये तो उसे इसी लाठी से छूकर चेला बना देते हैं. वह फिर लौटता नहीं और गुफा में उन्हीं के साथ रहने लगता है.
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लोक-कथा की कथा
दूसरी बार मैंने पढ़ा था कि वे बड़े क्रांतिकारी हैं. छिपे-छिपे इन्होंने हजारों बम और लाखों मन बारूद एकत्र किया है. भारत सरकार से यह लड़ाई की तैयारी है.
सुना है कि इन्होंने कोई टोपी का आविष्कार किया है. वह टोपी लगा लेने से सर पर लाठी की चोट नहीं लगती. कहीं बहुत से लोग ऐसी ही टोपी लगाये सभा कर रहे थे. उन पर लाठी चलाई गई तो उन्हें कुछ पता ही नहीं चला. वे हटे नहीं. इस टोपी का क्या रहस्य है किसी वैज्ञानिक को पता लगाना चाहिए. ब्रिटिश सेना ऐसी टोपी क्यों न धारण करें, युद्ध में काम देगी.
चरखा वास्तव में देखने में बहुत साधारण सी वस्तु है, किन्तु सचमुच भयानक अस्त्र है. इसके लिए भारत सरकार को ऐसा कोई विधान बनाना चाहिए कि जो चरखा चलाएगा और जो चरखा बेचेगा उसे काले पानी की सजा दी जाये और जो बढई चरखा बनाये उसके हाथ काट लिए जाए.