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दंगे क्यों होते हैं? कमजोरी का मुआयना

by Samta Marg
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दंगे क्यों होते हैं?

(5दिसंबर1936को बिहार प्रांतीय कांग्रेस)
(में दिया गया लोहियाजी का अध्यक्षीय)
(भाषण)

“अब हम अपनी उस कमजोरी का मुआयना करेंजो हमारी विफलता का,अमूमन बहुत बड़ा सबब मानीजाती है|

मेरा मतलब मजहबी झगड़ों और मनमुटाव से है|

यह बात तो सच है कि इन आपसी झगड़ों के कारण हमारे साम्रज्य विरोध को धक्का पहुँचता है,

हमारी आजादी की पल्टन में काफी दरार रह जाती है|

लेकिन यहां यह कह देना भी जरुरी है कि ये झगडे इतने विकराल नहीं हैंजितना इन्हें तूल दिया जाता है|

अगर कहीं दंगा एक शहर के कुछ मोहल्लों में हो भी गया तो हमें इस बात को स्मरण रखना चाहिए कि सारेदेश का दैनिक जीवन तो हमेशा की ही तरह चलता रहा|

लेकिन अगर हम इस बात को भूलकर उसे ही जादातूल देते हैंतो हम डर,शक और मजहबी मनमुटाव की मात्रा बढ़ाते हैं|

लेकिन सवाल तो ये है कि ये झगडे होते क्यों हैं,आपसी शक क्यों है और इनको मिटने के तरीके क्या हैं?

मजहबी झगड़ों के ऊपरी कारण तो कभी मस्जिद है,कभी मंदिर|

इन झगड़ोंमें कभी कभी पेशेवर बदमाशों का भी हाथ रहता है|

जैसे अबकी बार बम्बई के मवाली और गुंडों का हाथ था|

आर्थिक संघर्ष भी मजहबी दंगों का का रूप अख्तयार करते हैं|

वैसे ही,देश की जातियां अपने आर्थिक विकास और शिक्षा में बराबर नहीं हैं |

हिन्दू,मुसलमानों की अपेक्षा जादाउन्नत हैं|

फिर अगर किसान एक सम्प्रदाय का हुआ और जमींदार दूसरे सम्प्रदाय का, तो सहज ही उनका आर्थिक संघर्ष एक साम्प्रदायिक झगडे का रूप ले लेता है|

हाँ,इसमें कोई शक नहीं कि आम जनता में धार्मिक कट्टरता तो नहीं,

लेकिन एक ऐसी धार्मिक तबियत रहती है जो उकसाई जा सकती है और जिसके सबब कई तरह की शक्तियों को झगड़ा फसाद करने का मौका मिलता है|

उस मजहबी विभेद को हम कैसे मिटा सकते हैं?

कुछ कहते हैंधर्म की सच्चाई को समझकर,कुछ दूसरे कहते हा, सच्ची राष्ट्रीयता की शिक्षा देकर|

जहांतक धर्म की सच्चाई की शिक्षा का सवाल है, अनुभव से कहा जा सकता है कि यह दुधारी तलवार है|

इससे तो अकसरमजहबी मनमुटाव की बीमारी और बढ़ जाती है|

कम से कम इस शिक्षा से हम अपनी आजादी की पलटनकी दरार नहीं पाट सकते|

हाँ सच्ची राष्ट्रीयता की शिक्षा एक दूसरे सिरे पर है|

इसमें हमें सफलता मिलनी चाहिए|

लेकिन अगर सच्ची राष्ट्रीयता के मानीयह बतलाया जाता है सभी सम्प्रदाय और मजहब एक ही भारतमाता के लाडले भाई हैं और इसी भाईचारे की अपील से शक,

डर और झगड़े मिटानेकी कोशिश होती है तो भले ही कुछ देर के लिए हम प्रेम के भाव जगा दें, वे टिकाऊ न होंगे |

सच्ची राष्ट्रीयता तो तभी जग सकती है जब सभी सम्प्रदायों की ,
हिदू मुसलमानों की, आम जनता अपनी अवनति के कारण समझकर,

साम्राज्यवाद के उन सभी किलों पर हमला करे जो इसकी उन्नति का रास्ता रोके हुए हैं| मजदूरी,कर,लगानकर्जाउद्योगनीति वगैरह के सवालों को उठाकरही राष्ट्रीय एकता की पल्टन बन सकती है|

यह एकता टिकाऊ होगी,
इसमें मजहबी तबीयत को उकसाने की गुंजाईश न होगी|

“मजहबी विभेदों को मिटानेका यह रास्ता
समाजवादी रास्ता कहा जाता है|

इसमें समाजवाद की कोई खास बात नहीं|

हाँ,समझ जरूर है|

समाजवादी को यह रास्ता इसलिए पहले मिलता है कि वह ऐतिहासिक विकास को वर्ग संघर्ष का फल समझता है|

साम्राज्य विरोधीलड़ाई में यह देखना जरुरी हो जाता है कि कौनसे तबके और वर्ग किस तरफ हैं?

साम्राज्य विरोधी तबकों को उनकी हालतके मुताबिक तरक्की की मांगों पर संगठित किया जाता है और तभी वे मुल्की आजादी की लड़ाई में एक होकर,मिलकर आगे बढ़ते हैं|

इसलिए अगर हमें हिन्दू-मुसलमानऔर दूसरे मजहबों के आपसी झगड़ोंको हमेशा के लिए मिटाना है और इन्हें साम्राज्य विरोधी पलटनके रूप में कंधे से कन्धामिलाकरखड़ा करना है तो उनके संगठन की बुनियाद उनकी तरक्की की मांगेंहोंगी|

(स्रोत:समाजवादी आंदोलन के दस्तावेज)

 

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