नेहरूजी का स्मरण
” अकाल और लड़ाई चाहे हो या न हों लेकिन अपने जन्मजात अंतर्विरोधों से पूर्ण और उन्हीं विरोधों और उनसे प्रतिफलित विनाशों से पोषण पाती हुई जीवन की धारा बराबर चालू रहती है|
प्रकृति अपना कायाकल्प करती है और कल के लड़ाई के मैदान को आज फूलों और हरी घास से ढक देती है,और पहले जो खून गिरा था,वह अब जमीन को सींचता है और नए जीवन को रंग,रूप और शक्ति देता है।
इंसान,जिसमे याददाश्त का गैरमामूली गुण होता है,गुजरे हुए ज़माने की कहानियों और घटनाओं से चिपटा रहता है|वह शायद ही कभी मौजूदा वख्त के साथ चलता हो,जिसमें वह दुनिया है,जो हर रोज नई ही दिखाई देती है।
मौजूदा वख्त,इससे पहले कि हमको उसका पूरा होश हो,गुजरे ज़माने में खिसक जाता है;आज,जो बीती हुई कल का बच्चा है,खुद अपनी जगह अपनी संतान,आने वाली कल को दे जाता है|
मार्के की जीत का ख़ात्मा खून और दलदल में होता है।मालूम पड़ने वाली हार की कड़ी जाँच में से तब उस भावना का जन्म होता है जिसमे नई ताकत होती है और जिसके नजरिये में फैलाव होता है|
कमजोर भावना वाले झुक जाते हैं,और वे हटा दिए जाते हैं,लेकिन बाकी लोग प्रकाश ज्योति को आगे ले चलते हैं और उसे आने वाले कल के मार्गदर्शकों को सौंप देते हैं| “
नेहरूजी की किताब “हिंदुस्तान की कहानी” पेज688
प्रस्तोता: विनोद कोचर
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