सारा देश रो पड़ा लेकिन,
साहेब हँसकर हाथ हिलाते रहे
सिर्फ और सिर्फ विश्व गुरु बनने के चक्कर में इस most important फाइनल मैच को नरेंद्र मोदी स्टेडियम में कराया गया, जब कि सभी विशेषज्ञों को बहुत अच्छी तरह से पता था कि इस स्टेडियम में ओस बहुत गिरती है और पिच गीली हो जाती है।
दूसरी बात इस स्टेडियम में बहुत ज्यादा international मैच इस टीम ने नहीं खेले हैं।
इन सारी महत्वपूर्ण बातों को उठा कर ताख पर रख दिया गया,सिर्फ एक इंसान के खोखले सपनों को पूरा करने के लिए।
साहेब ने सपना देखा कि भारत की टीम, इस स्टेडियम में, जिसका नाम हाल फिलहाल उन्होंने अपने नाम से रख लिया है, मैच जीत जाएगी। साहेब की खूब वाह वाही होगी, स्टेडियम के नाम के साथ भी विश्व विजेता का नाम अटैच हो जाएगा और साहेब मूंछों में ताव देते हुए अपना सीना ठोकेंगे।
ये भी सोचा होगा साहेब ने कि खिलाड़ियों की मेहनत से कमाई इस अनमोल जीत को चुनाव में, येन केन प्राकारेण भुनाएंगे। लेकिन उनकी सारी प्लानिंग फुस हो गई।
मैच को वानखेड़े में ही रखना चाहिए था क्योंकि अधिकतर खिलाड़ी उस स्टेडियम से वाकिफ हैं। साथ ही आधे खिलाड़ी महाराष्ट्र से ही है। ये उनकी अपनी जगह होती।
वैसे भी ऑलरेडी रिकॉर्डेड है हमारी टीम, 2011 का वर्ल्ड कप जीत चुकी है, वानखेड़े स्टेडियम में। खिलाड़ियों के भी कॉन्फिडेंस में जबरदस्त इज़ाफ़ा होता। पहचानी हुई, और जीत दिलाई हुई पिच होती। अपना इलाका भी होता खिलाड़ियों के लिए।

इतने इंपोर्टेंट मैच को पॉलिटिकल फायदे के लिए इस्तेमाल करना बहुत ज्यादा गलत हुआ।
अपनी इमेज बनाने के चक्कर में साहेब हमेशा ही घटिया काम कर जाते हैं।
इन सब में सबसे important बात थी, साहेब की स्टेडियम में उपस्थिति।
उनका स्टेडियम में मौजूद रहना खिलाड़ियों के ऊपर pressure ही डाल रहा होगा, comfortable तो बिल्कुल भी नहीं रहा होगा स्टेडियम का माहौल।
कभी एक बार के लिए तो स्वार्थ से बाहर निकलिए हुज़ूर। कब तक आप खुद को पृथ्वी की धूरी समझते रहेंगे और देश को गिरवी रख कर जनता के इमोशंस से खेलते रहेंगे, आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा !!
स्वप्नमंजूषा शैल