सोशल मीडिया को कैसे देखें
सोशल मीडिया में ‘सोशल’ पदबंध बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह सामाजिक से भिन्न है। समाज विज्ञान से लेकर लेकर परंपरागत विमर्श के विभिन्न क्षेत्रों में १८वीं शताब्दी के बाद से लेकर आज तक जिसे सामाजिक कहते रहे हैं उससे इस ‘सोशल’ का कोई लेना- देना नहीं है।
सवाल यह है ‘सोशल’ को कैसे परिभाषित करें। ‘सोशल’ के कई रूप हैं। राजनीतिक संप्रेषण से लेकर मार्केटिंग तक इसके वैविध्यपूर्ण रूप नजर आते हैं।सोशलमीडिया में जो ‘सोशल’ है वह सामाजिक जिम्मेदारी के विचारों से भागा हुआ यूजर है।सोशल नेटवर्क में सामाजिक जिम्मेदारी का भाव कम है, हमें सामाजिक विकास के लिए ऐसे विकल्प चाहिए जो सामाजिक जिम्मेदारी निभाएं।
सामाजिक जिम्मेदारी निभाने के लिए ‘भरोसेमंद’ और ‘विश्वसनीय’ नेटवर्क की जरूरत है।हमें आज और सोशलाइजेशन की जरूरत नहीं है बल्कि भरोसेमंद और विश्वसनीय लोगों के नेटवर्क की जरूरत है, क्योंकि सोशलमीडिया में बहुत कुछ ऐसा कंटेंट है, कम्युनिकेशन है जो भरोसे लायक नहीं है, समाज के लिए हितकारी नहीं है।
दिलचस्प बात है कि हममें से कोई भीड़ का अंग बनना नहीं चाहता, ‘भीड़’ में बोलना नहीं चाहता।लेकिन सोशलमीडिया में तो सबकुछ ‘मास’ है,’भीड़’ है।सोशलमीडिया में ज्योंही दाखिल होते हैं ‘भीड़’ का अंग बन जाते हैं। सोशलमीडिया में ‘मास’ ही शक्ति है। भीड़ ही ताकतवर है।
बीसवीं शताब्दी ‘राजनीतिक केन्द्रीकरण’ और ‘संचार केन्द्रीकरण’ की शताब्दी है।एकाधिकार, केन्द्रीकरण और मुनाफा ये इस युग के तीन बड़े लक्ष्य हैं।
पहलीबार अमेरिका में एनएसए,माइक्रोसॉफ्ट,गूगल,फेसबुक, एपल आदि के बीच समझौते हुए हैं।इसे ‘प्रिज्म’ कार्यक्रम के नाम से जानते हैं। इसका मकसद है विश्व निगरानी करना, बहुराष्ट्रीय निगमों और अमेरिका के राजनीतिक और सांस्कृतिक हितों का विस्तार करना।इंटरनेट का समस्त डाटा संकलित करना,उसका व्यापारिक और राजनीतिक इस्तेमाल करना।
डिजिटल तकनीक के आने के बाद संचार क्रांति का पैराडाइम बदला है। अब हम ज्ञानमीमांसा से तत्वमीमांसा की ओर मुड़ गए हैं।यानी ‘ आप क्या जानते हो’ से ‘ तुम क्या हो’ की ओर मुड़ गए हैं।’ज्ञान प्रबंधन’ से ‘अस्मिता प्रबंधन’ की ओर मुड़ गए हैं।सोशलमीडिया ने इस पैराडाइम शिफ्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
नव्य -उदारीकरण के दौर में १९९०-९१ में जब संचारक्रांति आई तो वह मोबाइल -टेलीफोन और कम्प्यूटर तक सीमित थी,उस दौर में तकनीकी उपयोग और सूचना या ज्ञान के संचय पर जोर दिया गया ,सूचना से ज्ञान की ओर प्रयाण किया, लेकिन २००४ में जब फेसबुक का जन्म हुआ तो किसी ने नहीं सोचा था कि ज्ञान से छलांग लगाकर सीधे अस्मिता के क्षेत्र में समाज दाखिल होने जा रहा है।
जगदीश चतुर्वेदी

जगदीश चतुर्वेदी
Also Read: