— अरविन्द मोहन —
जी हाँ, यह नौरोजी अर्थात् उन्हीं दादा भाई नौरोजी के परिवार की चार लड़कियों की कहानी है जिन्हें हम अपने राष्ट्रीय आन्दोलन के शुरुआती पुरखे के तौर पर याद करते हैं। मूलतः गुजराती दादा ने मुम्बई को अपना डेरा बनाया था लेकिन उनकी ज्यादातर गतिविधियाँ इंग्लैण्ड में हुईं जहाँ वे व्यापार करने गये थे और जहाँ की राजनीति में भी उन्होंने सम्मानजनक स्थान बना लिया था। लेकिन उनका परिवार मुम्बई ही रहा और उनके पुत्र अरदेशीर नौरोजी भी ज्यादा दिन जीवित न रहे। लेकिन परिवार प्रसिद्ध व्यापारी और समाज सुधारक बेहरामजी मालाबारी और एलफिंस्टन कॉलेज के अध्यापक मनचेरी मेरवानजी दनीरा की निगरानी और प्रभाव में रहा। नौरोजी परिवार के कई बच्चों की शादी दनीरा परिवार में हुई। अरदेशीर के आठ बच्चे थे जिसमें सबसे छोटी खुर्शीद तो माँ के गर्भ में ही थी जब पिता की मौत हो गयी।
लेकिन इस खुर्शीद समेत नौरोजी परिवार की चार लड़कियों ने आजादी की लड़ाई और गांधी के नेतृत्व में ऐसे-ऐसे काम किये कि किसी को नौरोजी नाम का महत्त्व समझने में दिक्कत नहीं हुई। खुर्शीद तब छोटी ही थी जब सबसे बड़ी बहन पेरिन ने राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना बढ़ा दिया और गोसी को भी शामिल करा दिया। पेरिन पहले क्रान्तिकारियों के प्रभाव में थीं। फिर वे मैडम भीकाजी कामा के सम्पर्क में रहीं। लेकिन जब गांधी का रंग चढ़ा तो फिर उतरा नहीं।
सबसे छोटी खुर्शीद तब फ्रांस में पढ़ रही थी और एक बहुत नामी संगीत बैण्ड में अच्छा स्थान बना चुकी थी। लेकिन बाद में इस लड़की ने उस तरह का संगीत फिर कभी नहीं बजाया। बल्कि वह गांधी के आदेश पर यहाँ वहाँ भागकर ऐसे ऐसे काम करती रही कि खुद गांधी ही नहीं अँग्रेजी हुकूमत हैरान हो जाती थी। खुर्शीद को गांधी ने सरहदी प्रान्त के नेता खान अब्दुल गफ्फार खान के साथ खादी और अहिंसा का पाठ पढ़ाने के लिए भेजा। इस काम में कबीलाई पठानों की रुचि कम ही थी लेकिन खुर्शीद ने अपने लिए वहाँ काफी बड़ा काम ढूँढ़ लिया। वजीरिस्तान के बन्नू इलाके के कबायली बदमाश हिन्दू लड़कियों को अगवा कर ले जाते थे, रखते थे, शादी करते थे या बेच देते थे। जाने किस हिम्मत से यह लड़की ऐसे खूँखार बदमाशों के ठिकानों पर पहुँचकर उन लड़कियों को निकाल लाती थी, उनके परिवार तक पहुँचाती थी और उनके इनकार करने पर उनके पुनर्वास का इन्तजाम करती थी। और कई साल किये उनके काम से इस चलन में काफी कमी आ गयी तथा अँग्रेज सरकार भी हैरान थी कि जो काम वह शासन की सारी शक्ति से नहीं कर पाती है इस लड़की ने अपने कुछ साथियों के साथ कैसे कर लिया। आजादी और विभाजन के आसपास ऐसा काम काफी बढ़ गया था क्योंकि लड़कियों और विवाहित महिलाओं के अपहरण और बलात्कार के मामले काफी बड़े पैमाने पर हुए। उनको छुड़ा लाने और उनके पुनर्वास के लिए खुर्शीद बेन का काम ही काफी लोगों के लिए मॉडल बना और हजारों लड़कियों का जीवन बदला।
बाद में गांधी ने टिस्को की हड़ताल के समय खुर्शीद को जमशेदपुर भेजा और वहाँ भी उन्होंने हड़ताल, समझौते के साथ मजदूरों के कल्याण के लिए कई सहकारी संगठन बनाकर जबरदस्त नतीजे दिये। उनके बनाये सहकारी स्टोर अभी हाल तक काम कर रहे थे। उनको शहर भर में दीदी ही कहा जाता था।
पर सबसे बड़ी पेरिन ने शुरुआत गांधी की जगह भीकाजी कामा और विनायक सावरकर के प्रभाव से की। सावरकर की गिरफ्तारी पर उन्होंने मैडम कामा के साथ मुहिम भी चलायी लेकिन तब तक सावरकर जहाज से कूद कर भाग गये थे। शुरू में उनका हिंसक क्रान्ति में भरोसा था और उनकी पर्याप्त सक्रियता भी थी। 1919 में पेरिन का संपर्क गांधी से हुआ और वे उन पहली महिलाओं में एक थीं जिन्होंने खादी को पूरी तरह अपनाया। वे सबसे मोटा खादी ही पहनती थीं। उन्हीं के साथ उनसे छोटी गोसी भी लगी रहती थीं जिन्हें भी पश्चिमी संगीत बहुत प्रिय था और ये बहनें गांधी के लिए प्रार्थना के गीत गाती थीं।
पर उससे ज्यादा खौफ इनका विदेशी वस्त्र और शराब बेचने वालों में था। मुम्बई में नौरोजी बहनों का ‘आतंक’ था। और मुम्बई पुलिस अक्सर इनको मर्दों से ज्यादा खतरनाक मानकर सबसे पहले गिरफ्तार किया करती थी। 1932 के दूसरे सिविल नाफरमानी आन्दोलन में ऐसा ही हुआ था। सिविल नाफरमानी आन्दोलन में इन दोनों बहनों की तीन-तीन बार गिरफ्तारी हुई। और पेरिन के निधन पर पण्डित नेहरू का यह कथन इसी की पुष्टि करता है कि मैंने पेरिन बहन से ज्यादा बहादुर महिला नहीं देखी है।
पेरिन और गोसी ने कई गांधीवादी संस्थाओं के निर्माण और संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। उनका अपना अनुशासन बाकी काम करने वालों के लिए मिसाल बना करता था। समय का पालन और अपने आचरण में सौ फीसदी शुद्धता रखना ही उनका गुण था। पेरिन बहन 1921 में बनी ‘राष्ट्रीय स्त्री सभा’ के संस्थापक सदस्यों में एक थीं और बाद में इसके संचालन में प्रमुख व्यक्ति। वे 1930 में बनी काँग्रेस की वार काउंसिल की पहली अध्यक्ष थीं। वे गिरनार काँग्रेस की अध्यक्ष रहीं। गोसी बहन भी स्त्री सभा का अध्यक्ष बनीं। ग्रामोद्योग और खादी को बढ़ावा देने के लिए बने गांधी सेवा संघ में भी इनकी सक्रियता खूब रही। फिर 1935 में जब हिन्दी प्रचार सभा बनी, (जो बाद में हिन्दुस्तानी प्रचार सभा में बदल गयी) तो पेरिन बहन उसकी एक पदाधिकारी बनीं। यह उनका नया कार्यक्षेत्र था लेकिन बापू का आदेश था तो उन्हें जी-जान से पूरा करना था।
इन तीनों जितनी सक्रिय न रहकर भी मूल्यों और निष्ठा में इनसे पीछे न रहने वाली चौथी नौरोजी बहन थीं नरगिस। उन्होंने मुम्बई के नाना चौक के पास खादी की एक दुकान खोली और उसमें ही लगी रहीं। लेकिन चारों बहनों में गांधी और देश के काम के प्रति जैसा समर्पण था उसने काफी लड़कियों को प्रेरणा दी और खुद गांधी उनसे ताकत महसूस करते थे। चार में तीन बहनों- पेरिन, गोसी और नरगिस- की शादी एक ही परिवार (कैप्टन) के तीन लड़कों से हुई थी, इसलिए इन्हें कैप्टन सिस्टर्स भी कहा जाता था।