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शिक्षा का राष्ट्रीयकरण इस वजह से भी कर दिया जाना चाहिए

by Rajendra Rajan
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Sandeep Pandey

— संदीप पाण्डेय —

स साल 31 जुलाई को, आजमगढ़ के चिल्ड्रेन गर्ल्स कालेज की ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा श्रेया तिवारी ने कालेज बिल्डिंग की तीसरी मंजिल से कूदकर खुदकुशी कर ली। कालेज की प्रिंसिपल सोनम मिश्रा और क्लास टीचर अभिषेक राय को गिरफ्तार कर लिया गया। फिर सारे उत्तर प्रदेश के स्कूलों ने स्कूल बंद रखकर एक दिन की हड़ताल की और स्थानीय अभिभावक संघ ने अभिभावकों का आह्वान किया कि वे दूसरे दिन, प्राइवेट स्कूलों के जुल्म के विरोधस्वरूप, अपने बच्चों को स्कूल न भेजें। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में शिक्षक समुदाय के प्रतिनिधि ने मॉंग की कि गिरफ्तार टीचर और प्रिंसिपल को फौरन रिहा किया जाए।

मॉं नीतू तिवारी के मुताबिक, जब वह अपने पति और छोटे बेटे के साथ स्कूल पहुॅंचीं, तो उन्होंने देखा कि उनकी बेटी का शव रहस्यमय परिस्थितियों में पड़ा हुआ है। उसके कपड़े कई जगह से फटे हुए थे, दोनों पैर रक्तरंजित थे, दो दॉंत टूटे हुए थे, ऑंखें खुली थीं, और उसका अंडरगारमेंट, उसकी मौत के बाद, उसके शव के ऊपर रखा गया जान पड़ता था, और खून के धब्बे वहॉं से धो दिये गये थे जहॉं वह गिरी थी। मॉं का कहना है कि उनकी बेटी, जो कि आईपीएस आफिसर बनना चाहती थी, काफी तगड़ी थी और कोई आदमी अकेले उस पर काबू नहीं पा सकता था। नीतू तिवारी का खयाल है कि श्रेया अगर यौन अपराध का शिकार न भी हुई हो तो भी इतना तय है कि प्रिंसिपल के कमरे में उसे यातना दी गयी। स्कूल में लगे कैमरों का मुआयना करने के बाद पुलिस ने अनौपचारिक रूप से जो कुछ बताया उससे यही अंदाजा लगता है कि श्रेया एक घंटे से अधिक प्रिंसिपल के आफिस में थी। स्कूल के अधिकारियों का दावा था कि एक मोबाइल फोन और कोई ‘आपत्तिजनक’ चीज उसके बैग में मिली थी। कुछ विद्यार्थियों के मुताबिक, उसे विभिन्न कक्षाओं में ले जाया गया था और अपमानित किया गया था, भरी कक्षाओं में यह बताते हुए कि उसके बैग में क्या चीज पायी गयी है। सबके सामने इस तरह ज़लील किया जाना शायद वह बर्दाश्त नहीं कर सकी और उसने अपनी जिंदगी को खत्म करने का फैसला कर लिया। अब सवाल है कि श्रेया के बैग में जो भी आपत्तिजनक चीज पायी गयी हो, उसे सरेआम अपमानित करने का अधिकार स्कूल को किसने दिया?

अब मुख्य घटना पर आते हैं। यह हत्या हो या आत्महत्या, स्कूल-प्रिंसिपल और टीचर दोषी हैं और उचित ही उन्हें शुरू में गिरफ्तार किया गया था। यह विचित्र है कि प्राइवेट स्कूलों ने उनकी रिहाई की मॉंग की और हमारे जनप्रतिनिधि ने, शोक-संतप्त माता-पिता के प्रति हमदर्दी दिखाने के बजाय, विधान परिषद में इस मांग का समर्थन किया। यह इस बात का संकेत है कि हमारी शिक्षा के व्यवसायीकरण और हमारी राजनीति के अपराधीकरण में हमारे राजनीतिकों की भागीदारी बढ़ती जा रही है। कहना न होगा कि यह चिंताजनक रुझान है। विधान परिषद में यह मामला उठने के बाद तीसरे दिन दो आरोपी जमानत पर रिहा कर दिये गये और पुलिस का कहना है कि वह लड़की का किसी लड़के से प्रेम प्रसंग के कोण से भी इस मामले की जॉंच कर रही है।

प्राइवेट स्कूल नहीं चाहते कि उनकी कोई जवाबदेही तय की जाए। वे निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 और इस अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) के तहत किये गये विशेष प्रावधान का सम्मान नहीं करना चाहते, जिस प्रावधान के अंतर्गत यह तजवीज की गयी है कि प्राइवेट स्कूलों में वंचित तबकों के कम से कम 25 फीसद बच्चे निशुल्क पढ़ाई कर सकते हैं। प्राइवेट स्कूल अमूमन इस प्रावधान की अनदेखी करते हैं।

यह हर जगह की कहानी है कि अभिभावक प्राइवेट स्कूलों द्वारा निचोड़े और ठगे जा रहे हैं। फीस में मनमानी बढ़ोतरी या ऐसे ही अन्य मुद्दों पर प्राइवेट स्कूलों के बाहर बहुत-से विरोध-प्रदर्शन हो चुके हैं। नीतू के पति एक छोटा-सा व्यवसाय चलाते हैं और परिवार निम्न मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखता है। वे इस स्थिति में नहीं थे कि श्रेया के लिए प्रतिमाह ढाई हजार रुपए की फीस देने के बाद बस का किराया छह सौ रु प्रतिमाह के हिसाब से तीन महीने का एकसाथ दे पाएं। नीतू इस बात पर अफसोस जताती हैं कि सरकारी स्कूल इस लायक नहीं हैं कि कोई अभिभावक, जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता है, उन्हें सरकारी स्कूल में भेजने का जोखिम उठाए। लेकिन अगर किसी कारण से प्राइवेट स्कूल द्वारा मॉंगी गयी राशि पूरी तरह नहीं चुका पाते हैं तो बच्चे कक्षा में अपमानित किये जा सकते हैं जो मानसिक रूप से उनके जीवन को संकट में डाल सकता है।

दूसरी तरफ, दुनिया के जिस भी देश ने शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को हासिल किया है, तो समान स्कूल प्रणाली (कामन स्कूल सिस्टम) के द्वारा ही किया है। कोठारी आयोग ने समान स्कूल प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया था लेकिन यह 1968 से ही संसद के पास लंबित है। समान स्कूल प्रणाली का अर्थ है ऐसे स्कूल जिनका संचालन, वित्तपोषण और नियमन सरकार करती है। यह समझ नहीं आता कि समान स्कूल प्रणाली को लागू किये बगैर भारत कैसे विकसित देश बनने की हसरत पाले हुए है!

प्राइवेट स्कूल कभी भी सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हो सकते। अगर हम वैसी घटना नहीं होने देना चाहते, जो इस लेख में ऊपर बताई गयी है, तो इस कारण से भी भारत को शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करना चाहिए और समान स्कूल प्रणाली लागू करनी चाहिए।

क्या इसके लिए सभी प्राइवेट स्कूलों को बंद कर देना पड़ेगा? यह जरूरी नहीं है। अगर कोई अच्छी शिक्षा मुहैया कराने में अपनी दिलचस्पी के चलते प्राइवेट स्कूल चलाना चाहता है तो उसे इसकी इजाजत होनी चाहिए। ऐसी रचनात्मक पहल वाले बहुत-से स्कूल देश भर में हैं। लेकिन ऐसी स्थिति में शर्त यह होनी चाहिए कि प्राइवेट स्कूलों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराने के लिए संसाधन कहीं और से जुटाने होंगे। अगर स्कूल शिक्षा प्रदान करने के नेक मकसद से चलाए जा रहे हैं, मुनाफा कमाने की गरज़ से नहीं, तो उन्हें बच्चों के प्रति दोस्ताना और अभिभावकों व सरकार के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। शिक्षा के व्यापारीकरण पर रोक लग जाए तो शिक्षा विभाग का बहुत सारा भ्रष्टाचार इसी से खत्म हो जाएगा।

वक्त आ गया है कि भारत के नीति-निर्माता समान स्कूल प्रणाली के जॉंचे-परखे विचार को लागू करें और प्रबुद्ध समाज बनाने की दिशा में अपना योगदान दें, बजाय इसके कि ऐसा समाज बनाएं जो ऐसे व्यक्तियों को पैदा करे, जो दिन-रात प्रतिस्पर्धा में बेचैन रहते हों। एक तरफ ऐसे लोग जो बराबर संतुलित न रह पाते हों और दूसरी तरफ बड़ी संख्या में ऐसे युवा जो अनुचित साधनों से अपनी शिक्षा पूरी करते हैं और ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि समाज या अर्थव्यवस्था में सार्थक ढंग से कोई योगदान कर सकें।

(लेखक सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के महामंत्री हैं)

अनुवाद : राजेन्द्र राजन

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