Home » कोविड-19: दुनिया भर में सरकारों से बढ़ी नाराजगी

कोविड-19: दुनिया भर में सरकारों से बढ़ी नाराजगी

by Rajendra Rajan
0 comment 13 views

22 जून। 19 जून को ब्राजील की राजधानी से लेकर सभी 22 राज्यों में बड़े पैमाने पर सरकार के खिलाफ विरोध रैलियों की खबरे सामने आई थीं। ये रैलियां सरकार द्वारा महामारी को नियंत्रित न कर पाने पर नाराजगी जताने के लिए की गई थीं। ब्राजील के लिए यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन वहां कोविड-19 से मरने वालों का आंकड़ा 5 लाख के पार चला गया था। जो यदि घोषित आंकड़ों के मुताबिक देखा जाए तो अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा है। साओ पाउलो में एक विशाल रैली में एक बोल्ड डिमांड नोट के साथ एक विशाल बैनर लटकाया गया था, जिसपर “जीवन, रोटी, टीके और शिक्षा” लिखा था।

प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार को ‘नरसंहारी’ तक कह दिया। यह एक विरोध था जिसमें वाम और दक्षिण दोनों वैचारिक ध्रुव इस मुद्दे पर एकजुट हो गए थे। इस एकजुटता ने महामारी पर काबू पाने के लिए सरकार जिस तरह से प्रबंधन कर रही है उसके खिलाफ अब तक के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन में से एक में बदल दिया था। देश की राजधानी ब्रासीलिया में विरोध प्रदर्शन में एक बैनर पर तो यह तक लिखा था कि “बोल्सोनारो को बाहर करने के 5 लाख कारण”। गौरतलब है कि इससे पहले 29 मई को भी कई राज्यों में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन हुए थे।

यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी देश में कोविड-19 प्रबंधन को लेकर सवालिया बवाल उठा है, इससे पहले मार्च में, जर्मनी सहित कई यूरोपीय देशों में भी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की रिपोर्ट सामने आई थी। वहां भी सरकार द्वारा महामारी के स्वास्थ्यगत और आर्थिक दोनों तरह के दुष्प्रभावों से ठीक तरह से न निपट पाने पर सवाल खड़े किए गए थे। इन विरोध करनेवालों में से अधिकांश महामारी के दोबारा सिर उठाने के कारण लगाए नए प्रतिबंधों के खिलाफ थे।

पिछले वर्ष के शुरुआती महीनों में एक अस्थायी खामोशी के बाद, प्रकोप और तालाबंदी के साथ, यह विरोध दुनिया में फिर वापस आ गया है। वर्ष 2019 को ‘विरोध के वर्ष’ के रूप में जाना जाता था। मार्च 2020 तक यह सिलसिला जारी रहा और फिर महामारी फैल गई। सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन लगभग बंद हो गए क्योंकि देशों द्वारा तालाबंदी और प्रतिबंध लगा दिए गए थे। लेकिन, कुछ ही महीनों के भीतर, वे दोबारा इतनी संख्या में भड़क उठे कि 2020 ने पिछले ‘विरोधों के वर्ष’ को पीछे छोड़ दिया।

2021 के पहले चार महीनों में तो दुनिया भर में जैसे विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ सी आ गई है। महामारी के दौरान जिस तरह से विरोध का यह दौर वापस आ गया है, यह उसके चरित्र को पहले से अलग बनाता है। अब तेजी से विरोध महामारी के कुप्रबंधन को लेकर हो रहा है। इससे पता चलता है कि कैसे दुनिया सदी के सबसे बड़े संकट का सामना करने में लड़खड़ा रही है। या फिर लोग जीवन और आजीविका को प्रभावित करनेवाले लॉकडाउन और बंद से आजिज आ चुके हैं।

द आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी), एक गैर-लाभकारी प्रोजेक्ट जो दुनिया भर में सामने आनेवाली राजनीतिक हिंसा और विरोध सम्बन्धी आंकड़ों का संग्रह और विश्लेषण करता है, उसने अपने हालिया विश्लेषण में बताया है कि “पहले की तुलना में विरोध प्रदर्शन बढ़ गए हैं। जोकि इस महामारी का ही नतीजा हैं।

महामारी ने दुनिया भर में संघर्ष और विरोध परिदृश्यों को दो तरह से प्रभावित किया है। पहला, इसके कुप्रबंधन को लेकर है, जिसने सबसे ज्यादा दबाव बनाया है। इसमें लोग महामारी का ठीक तरह से प्रबंधन न कर पाने के कारण सरकारों के विरोध में उठ खड़े हुए हैं। दूसरा महामारी के पहले से चल रहे विरोध और प्रदर्शन हैं जो महामारी के प्रभाव से और अधिक तेज हो गए हैं। जैसे महामारी के आर्थिक प्रभाव पहले से मौजूद असमानता को और बढ़ा रहे हैं। दूसरी ओर हिंसक संघर्षों में शामिल देशों और समूहों ने लोगों पर और अधिक कार्रवाई करने के लिए महामारी का इस्तेमाल किया है, इसी को राजनीतिक हिंसा के रूप में रिपोर्ट किया जाता है।

भारत भी इससे अलग नहीं है। यहां हम किसानों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और आदिवासी समुदायों द्वारा उनकी भूमि और जंगलों को नुकसान पहुंचानेवाली परियोजनाओं के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। यही नहीं, मानवाधिकारों की रक्षा के लिए छात्र, साथ ही नागरिक अधिकारों के लिए राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों को देख रहे हैं।

पिछले तीन महीनों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में महामारी के लिए सरकार की प्रतिक्रियाओं को जानने के लिए दायर याचिकाओं ने कब्जा कर लिया है या फिर उन पत्रकारों, छात्रों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ आतंकवाद के प्रावधानों और अन्य कड़े कानूनों के अंतर्गत कार्रवाई करने के खिलाफ याचिकाएं दायर की गई हैं जो महामारी से लेकर विकास के मुद्दों पर सवाल उठा रहे थे।

एसीएलईडी द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि “2019 की तुलना में संघर्ष की घटनाओं में कुल मिलाकर गिरावट आई है, लेकिन राजनीतिक हिंसा कम होने की जगह कहीं अधिक देशों में बढ़ी है, और पहले से चल रहे संघर्ष अभी भी जारी हैं।’ शोध के मुताबिक भारत में भी राजनीतिक हिंसा में इजाफा हुआ है। महामारी की शुरुआत से अप्रैल 2021 तक भारत में महामारी से संबंधित 200 घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें से ज्यादातर राजनीतिक हिंसा से जुड़ी हैं।“

महामारी ने न केवल संबंधित देशों में, साथ ही वैश्विक व्यवस्था में भी मौजूद कई सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक खामियों को उजागर किया है। भारत में भी “जीवन के मौलिक अधिकार के तहत” मुफ्त टीकाकरण उपलब्ध कराने के लिए न्यायपालिका का हस्तक्षेप इस बात का सूचक है कि कैसे उग्र महामारी राज्य व्यवस्था को भी प्रभावित कर रही है। हम पहले ही कई सरकारों को लोकप्रिय मतों से गिरते हुए देख चुके हैं।

ऐसा मुख्य रूप से महामारी पर ठीक से नियंत्रण न करने की वजह से हुआ है। वैसे भी इन सरकारों का ट्रैक रिकॉर्ड नागरिकों के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने के मामले में कोई खास अच्छा नहीं है। इस महामारी ने उन शिकायतों को और अधिक स्पष्ट कर दिया है। ऐसे में यह महामारी राजनीतिक रूप से सबसे अधिक विनाशकारी रूप में विकसित हो सकती है।

रिचर्ड महापात्र

( डाउन टू अर्थ से साभार )

You may also like

Leave a Comment

हमारे बारे में

वेब पोर्टल समता मार्ग  एक पत्रकारीय उद्यम जरूर है, पर प्रचलित या पेशेवर अर्थ में नहीं। यह राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह का प्रयास है।

फ़ीचर पोस्ट

Newsletter

Subscribe our newsletter for latest news. Let's stay updated!