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सुरेन्द्र मोहन की कविता

by Rajendra Rajan
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कुछ कहने का वक्त हो ग़र तो चुप रहना अय्यारी है

 

कुछ कहने का वक्त हो ग़र तो चुप रहना अय्यारी है

अपनी अना से धोखा है और हक़ से भी ग़द्दारी है

 

किसका ख़ौफ़ कहो डर किसका, कैसी यह घबराहट है?

दिल हो ग़र मजबूत इरादा क़वी तो जीत हमारी है

 

कहना कुछ भी बग़ावत है तो कह दो हम भी बाग़ी हैं

खुद के ख़ौफ़ से लड़ने में ही तो असली खुद्दारी है

 

जुल्म सहोगे सहते रहोगे और लबों को सी लोगे

सिर्फ अकेले तुम ही नहीं हो, आख़िर दुनिया सारी है

 

उट्ठो और ज़ालिम को ज़ालिम कह कर खुली चुनौती दो

हक़ और बातिल में भी हर दम सख्त कशाकश जारी है।

 

(समाजवादी चिंतक स्व. सुरेन्द्र मोहन ने कविताएं भी लिखी हैं। उनकी कविताओं का संकलन वर्ष 2019 में चुप रहना अय्यारी है नाम से संभावना प्रकाशन, हापुड़ से प्रकाशित हुआ था। इसकी कीमत सिर्फ 100 रु. है। संपर्क- 7017437410) 

 

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