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खोखे लुईस बोर्खेस की कविता

by Rajendra Rajan
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खोखे लुईस बोर्खेस ( जन्म 24/8/1899, अर्हेतीना में; निधन 24/6/1986 ) को जिनेवा में।

खोये हुए की प्राप्ति

मुझे मालूम है कि इतना कुछ गँवा चुका हूँ कि चाहूँ भी तो –

उसे गिना नहीं सकता,

और अब वह खोया हुआ सब ही,

मेरा सब कुछ है।

जानता हूँ कि पीला रंग खो चुका हूँ और काला भी, सोचता हूँ

उन अप्राप्य रंगों को एक ख़ास तरह

जिस तरह वे कभी नहीं सोच सकते जो नेत्रहीन नहीं।

मेरे पिता अब नहीं रहे फिर भी हमेशा पास रहते हैं।

स्विनबर्न की कविताओं का छंद-विन्यास करते समय

लोग कहते कि मेरी आवाज़ पिता की आवाज़ से मिलने लगती।

वे ही सगे होते हैं अपने, जो नहीं होते; बिलकुल हमारे अपने हो जाते।

इलियम नहीं है लेकिन इलियम ज़िन्दा है होमर की कविताओं में।

इस्राइल तभी इस्राइल हो सका जब वह अतीत की एक कसक-भरी –

याद बन सका।

हर कविता, कालान्तर में, एक शोकगीत हो जाती।

स्त्रियां जो हमें छोड़कर चली गयीं हमारी हो गयीं,

हमारी तरह मुक्त अब तमाम ग़लतफ़हमियों से

तड़पनों से, आशा की अशांति और उत्कंठा से।

खोये हुए स्वर्गों के अलावा और कोई स्वर्ग नहीं होता।

 

लातिन अमरीकी कवियों में बोर्खेस का नाम प्रमुख है। बोर्खेस की रचनाएं न तो यथार्थ से आक्रान्त हैं न ही यथार्थ-निरपेक्ष। वे यथार्थ को सीधा और सपाट न मानकर उसे व्यूहात्मक और पेचीदा मानते हैं- गोरखधंधे या भूलभुलैया की तरह का- और उसमें भटकने-भटकाने को कभी कौतूहल, कभी कल्पना की उड़ानों, कभी रहस्य-कथाओं, कभी गणित-बुझौव्वल, कभी दार्शनिक ऊहापोह की विचित्र भाषाओं में व्यक्त करते हैं।

बोर्खेस के जीवन के अंतिम दशक में उनकी दृष्टि जाती रही। दृष्टि की लाचारी के कारण उनका अनुभव जगत बहुत विस्तृत नहीं, लेकिन बहुत गझिन और गहरा है।

(अँगरेजी अनुवाद : आर. अलीफानो;  हिंदी अनुवाद और कवि परिचय : कुँवर नारायण )

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