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सोली सोराबजी की कमी हमेशा खलेगी – शांति भूषण

by Rajendra Rajan
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पने बहुत करीबी दोस्त सोली सोराबजी के निधन से मैं स्तब्ध हूं। हाल में, दिसंबर 2020 में, उनके घर मैं गया था और उनसे तथा उनकी पत्नी से मिला था। वह हमेशा की तरह जिंदादिली से भरपूर थे। हमने हंसी-खुशी के साथ उन दिनों के बारे में बातें कीं, जब हमने साथ-साथ काम किया था।

मैं सोली को 1975 से जानता था। बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समेत बुनियादी अधिकारों और जीवन तथा स्वतंत्रता के अधिकार के विस्तृत रूप में, हम दोनों की दिलचस्पी थी। हमने इमरजेंसी के दौरान बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामलों में मिलकर बहस की। सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने मैं इलाहाबाद से आया था और वह बंबई से आए थे।

1977 के चुनावों के दौरान मैं जयप्रकाश नारायण की अध्यक्षता में हो रही एक चुनावी सभा में उनके साथ था। श्रोताओं में मौजूद सोली और कुछ दूसरे वकील शोर मचाने लगे कि वे मुझे सुनना चाहते हैं। तब बंबई की उस भीड़ को संबोधित करने के लिए मुझसे कहा गया और वहां भाषण करके मुझे खुशी हुई थी। उसी साल, 1977 में जब मैं कानून मंत्री बना तो मैंने सोली को बंबई छोड़ने और दिल्ली आकर एडीशनल सॉलिसिटर जनरल की जिम्मेदारी संभालने के लिए मनाया। मुझे बहुत खुशी हुई जब उन्होंने मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया। एस.वी. गुप्ते तब एटार्नी जनरल थे और सोली के बाद हम के.के. वेणुगोपाल को भी ले आए थे, द्वितीय एडीशनल सॉलिसिटर जनरल के तौर पर। यह बहुत बढ़िया टीम थी और हमने एक टीम के रूप में बहुत अच्छा काम किया। सोली और उनके परिवार से मेरी काफी घनिष्ठता हो गई और मैं अकसर उनके घर जाया करता था।

1977 के लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने दो तिहाई बहुमत से जीत हासिल की थी। जबकि उत्तर भारत के 9 राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था। लेकिन उन राज्यों की विधानसभाओं में अब भी कांग्रेस का बहुमत था और इस प्रकार उन राज्यों में उसकी सरकारें कायम थीं। हमें लगा कि जनता का भरोसा खो चुकने के बाद कांग्रेस का उन राज्यों में सरकार चलाना अलोकतांत्रिक होगा, सो हमने नौ राज्यों की विधानसभाओं को भंग करने और वहां चुनाव कराने का निर्णय किया। उन सभी नौ राज्यों की सरकारों ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि तब सोली सिर्फ एडीशनल सालिसिटर जनरल ही थे, फिर भी इस मामले में मैंने उनसे केंद्र सरकार का पक्ष रखने को कहा। उन्होंने बड़ी कुशाग्रता से बहस की और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के पीठ ने केंद्र सरकार के निर्णय को सही ठहराया। उन राज्यों में नए चुनाव हुए और हर जगह कांग्रेस पराजित होकर सत्ता से बाहर हो गई। लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली में सोली सोराबजी का यह भी एक महत्त्वपूर्ण योगदान था।

भोपाल गैस हादसे के बाद सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच एक समझौता हुआ था, जो यूनियन कार्बाइड को,47 करोड़ डॉलर के उसके भुगतान के मद्देनजर, आपराधिक जवाबदेही समेत हर तरह की जवाबदेही से बरी करता था। उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पाठक की अध्यक्षता वाले एक पीठ ने सही ठहराया था। हमने पीड़ितों की तरफ से समझौते को चुनौती देते हुए रिव्यू पिटीशन दायर करने का निर्णय लिया। यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि सोली ने, जो उस वक्त एटार्नी जनरल थे, सरकार की तरफ से, हमारे रिव्यू पिटीशन के पक्ष में तर्क रखे। रिव्यू पिटीशन पर जस्टिस वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाले पीठ ने विस्तार से सुनवाई की और याचिका को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए, आपराधिक जवाबदेही से बरी करने की बात समझौते से हटा दी। उस फैसले ने कई महत्त्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित किए। सोली के रुख ने दिखाया कि उनका दिल भोपाल त्रासदी के पीड़ितों के साथ था और वह नहीं चाहते थे कि उन्हें समझौते के तहत कमतर हासिल हो।

जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनकी बड़ी ख्वाहिश थी कि मैं एटार्नी जनरल बनूं। उन्होंने मुझे बुलवाया और मनाने की बहुत कोशिश की कि मैं यह पद स्वीकार कर लूं। लेकिन मैंने उनसे कहा कि सोली इसके लिए सबसे उपयुक्त रहेंगे, क्योंकि तब मेरी रुचि अदालत में बहस करने में उतनी नहीं थी जितनी संसदीय मसलों में। सो मैंने इनकार कर दिया और सोली एटार्नी जनरल नियुक्त किए गए।

सोली जैसा कि उनके नाम से व्यंजित होता है, एक महान आत्मा (सोल) थे। उनका दिल लोगों के हकों के साथ था, जिसके लिए वह जीवन भर लड़े। मैं उन्हें किसी भी तरह नानी पालकीवाला से कम नहीं समझता। वह बंबई के दिग्गज वकीलों में एक थे और उस समय के धुरंधर वकीलों की संगत में प्रशिक्षित हुए थे। बंबई तब सीतलवाड, सीरवाई, पालकीवाला और फली नरीमन जैसे महान वकीलों की उर्वर भूमि हुआ करता था। बंबई ऐसे वकीलों का पालना रहा, जो आगे चलकर वकीलों के अगुआ बने। यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात थी कि 1965 में ही मैं बाम्बे हाईकोर्ट में वकील के तौर पर पेश होने लगा था, फिर 1969 में और बाद में 1975 में (जब श्रीमती गांधी के चुनाव के केस का निपटारा हुआ था)। बांबे हाईकोर्ट में वकालत करते हुए मैं अपने कई बहुत प्यारे दोस्तों के काफी नजदीक आया, खासकर सोली, फली, नानी, सीरवाई आदि के।

मुझे बाकी सारी जिंदगी सोली की कमी खलती रहेगी। वह सम्मान और शान से इस दुनिया से विदा हुए और देश अपने इस सपूत पर गर्व करेगा।

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