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उर में माखन चोर गड़े

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— रामजी प्रसाद 'भैरव' — कभी पढ़ा था - उर में माखन चोर गड़े, अब कैसेहुँ निकसत नहीं उधौ! तिरछे ह्वै जु अड़े।। उर माने तो हृदय ही...

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