Tag: नंदकिशोर आचार्य
असल प्रयोजन से भटकी हुई शिक्षा
— नंदकिशोर आचार्य —
शिक्षा को लेकर सबसे उलझा हुआ सवाल यह है कि अपनी प्रक्रिया और लक्ष्यों में वह जिसके प्रति सर्वाधिक उत्तरदायी होती...
इतिहास की लोकदृष्टि
— नंदकिशोर आचार्य —
सामान्यतया जब हम इतिहास की बात करते हैं तो हमारा तात्पर्य उन घटनाओं की खोज और अध्ययन से होता है जो...
धर्म : चेतना बनाम संगठन
— नंदकिशोर आचार्य —
धर्म पर किसी तरह का विचार-विमर्श करने से पूर्व यह समझ लेना जरूरी है कि वह सर्वप्रथम एक निजी अनुभूति है।...
संस्कृति मूल्य-दृष्टि है, सजावट का सामान नहीं
— नंदकिशोर आचार्य —
संस्कृति की चर्चा में इस बात की अनदेखी की जाती रही है कि हम अधिकांशतः संस्कृति के नाम पर उन उपकरणों...
साहित्य की प्रामाणिकता का सवाल
— नंदकिशोर आचार्य —
साहित्य और अनुशासनों के अंतर्संबंधों को लेकर की जाने वाली बहस में आजकल एक उदार भंगिमा के साथ अक्सर यह स्वीकार...
वास्तविक लोकतंत्र के लिए
— नंदकिशोर आचार्य —
आधुनिक काल में सत्ता का मूल स्रोत नागरिकों का विश्वास और स्वीकृति है तो इसलिए यह आवश्यक है कि राजसत्ता इस...
सामाजिक आचरण और शिक्षा
— नन्दकिशोर आचार्य —
शिक्षा के प्रयोजन और प्रकिया को लेकर विद्वानों में निरंतर विवाद होता रहा है और अन्य मामलों की तरह यहाँ भी...
शिक्षा का बुनियादी प्रयोजन
— नन्दकिशोर आचार्य —
शिक्षा की जितनी भी परिभाषाएँ दी जाती रही हैं, उन सभी में, तत्त्वतः, एक बात समान है और वह यह है...
संस्कृति का केन्द्रीकरण क्यों?
— नंदकिशोर आचार्य —
आधुनिक प्रौद्योगिकी अनिवार्यतः केन्द्रीकरण और एकाधिकारवादी प्रवृत्तियों को जन्म देती और उन्हें पुष्ट करती है- और स्वाभाविक है कि ये प्रवृत्तियाँ...
महात्मा गाँधी का अकेलापन
— नन्दकिशोर आचार्य —
मैं अकेलापन चुनता नहीं, स्वीकार करता हूँ – महात्मा गाँधी के जीवन के अन्तिम दिनों के बारे में जब भी सोचता...