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प्रेमंचद: आचार्य हजारी द्विवेदी की दृष्टि में

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दुनिया की सारी जटिलताओं को समझ सकने के कारण ही प्रेमचंद निरीह थे, सरल थे। धार्मिक ढकोसलों को वे ढोंग समझते थे, पर मनुष्‍य...

साम्प्रदायिकता और संस्कृति – प्रेमचन्द

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(प्रेमचंद का यह प्रसिद्ध लेख पहली बार 15 जनवरी 1934 को प्रकाशित हुआ था, आज इसका अधिक से अधिक प्रसार पहले से भी ज्यादा...

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