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विजयदान देथा की कविता

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मेरे रोम-रोम में ऊषा छाई! सकल विश्व देखा करता है असीम अम्बर के मानस पर छाकर रजनी की श्यामल चादर को दूर हटा ऊषा! कोमल किसलय पातों को सागर...

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