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संजय श्रमण की कविता!

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समय कोई मुर्दा फिसलन नहीं जो बोतल में बंद रेत की तरह बस इधर से उधर सरकती है समय मुर्दा कौमों की ज़िंदा याददाश्त है हमेशा एक से...

अरे यार! ये अंबेडकर क्या चीज़ है?

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— संजय श्रमण — ये सवाल, सोशल मीडिया की पैदाइश नहीं है। ये उन गलियों में भी गूंजता है जहाँ चूल्हों की आग से ज़्यादा...

सन्त रैदास और सन्त कबीर

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— संजय श्रमण — सन्त रैदास और सन्त कबीर को गौर से देखिए। वे गौतम बुद्ध और गोरखनाथ की परंपरा से आते हैं। इनकी वाणियों...

अन्याय देखा नहीं जाता, ना सुना ही जाता है!

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— संजय श्रमण — अन्याय देखा नहीं जाता ना सुना ही जाता है अन्याय की गंध होती है अन्याय सूंघा जाता है अधर्म के अंधकूप में अनैतिकता के अथाह में जहां...

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