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गगन गिल की पाँच कविताएं
तुम्हें भी तो पता होगा
मैं क्यों दिखाऊँगी तुम्हें
निकाल कर अपना दिल
तुम्हें भी तो
पता होगा
कहाँ लगा होगा
पत्थर
कहाँ हथौड़ी
कैसे ठुकी होगी
कुंद एक कील
किसी ढँकी हुई जगह...
रहस्य और विस्मय का आलोक
— शर्मिला जालान —
कविता हो या लेख या कोई संस्मरण, गगन गिल उसमें संदर्भ, परिवेश और पड़ोस सामने रखती हैं और उसी में बुनती जाती...