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त्रिलोचन की कविता

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हँसकर, गाकर और खेलकर   हँसकर, गाकर और खेलकर पथ जीवन का अब तक मैंने पार किया है, लेकिन मेरी बात और है, ढंग और है मेरे मन...

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