– समता मार्ग –
नई दिल्ली। शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने भारत बंद का आह्वान किया था। इसका असर उत्तर से दक्षिण तक दिखा। पंजाब और हरियाणा में तो बंद का जबरदस्त असर होना ही था। इन दोनों राज्यों में चप्पे-चप्पे पर बंद का असर रहा। किसानों ने जगह-जगह धरने दिए, जुलूस निकाले, सभाएं कीं। लेकिन इस भारत बंद ने एक बार फिर साबित किया कि किसान आंदोलन हरियाणा, पंजाब तक सीमित नहीं है, यह उत्तर से दक्षिण तक फैल गया है।
अहमदाबाद में किसान नेता युद्धवीर सिंह को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया जब वह संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे। यह गुजरात मॉडल है जहां चूं करना भी मना है। ट्रांसपोर्ट यूनियन और तमाम श्रमिक संगठनों के अलावा बहुत से छात्र युवा संगठनों का भी समर्थन इस भारत बंद को मिला, जो कि देश में बढ़ रहे असंतोष का ही सूचक है।
चुनाव वाले राज्यों को बंद से अलग रखा गया था, सो दक्षिण में तमिलनाडु और केरल को छोड़ दें तो कर्नाटक और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में बंद का प्रभावी असर दिखा। बंगलुरू में किसान संगठनों से जुड़े लोगों ने गिरफ्तारी भी दी। मैसूर में तीनों कृषि कानूनों का जनाजा निकाला गया और उनका पुतला फूंका गया। आंध्र और तेलंगाना में भी काफी जगहों पर बाजार और प्रतिष्ठान बंद रहे। चंडीगढ़ में छात्र -छात्राएं भी किसानों के समर्थन में सड़कों पर उतरे। उत्तर प्रदेश में अलीगढ़, शामली, इटावा, संभल, बागपत, मुरादाबाद, हाथरस, हापुड़, बिजनौर, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ आदि में बंद का ज्यादा असर दिखा। बिहार के बीस से ज्यादा जिलों में पूरी तरह बंद रहा। बंद को श्रमिक संगठनों का व्यापक समर्थन हासिल था, उनकी भागीदारी भी थी। यह साफ है कि किसान आंदोलन के साथ दूसरे तबकों का भी असंतोष जुड़ता जा रहा है।