दिल्ली की सीमाओं पर किसानों को बैठे छह माह हो गए। पांच दिन पहले, 21 मई को, संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बातचीत की प्रक्रिया को बहाल करने और किसानों की मांगों पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध किया है। इसपर सरकार ने फिलहाल अपने रुख के बारे में कोई संकेत नहीं दिया है। लेकिन यह सामान्य जिज्ञासा का विषय हो सकता है कि आखिर प्रधानमंत्री को लिखे संयुक्त किसान मोर्चा के पत्र में है क्या? अंग्रेजी में लिखे गए उपर्युक्त पत्र का आशय इस प्रकार है –
सेवा में,
श्री नरेन्द्र मोदी
भारत के प्रधानमंत्री
साउथ ब्लाक
नई दिल्ली-11001
विषय – विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसानों और अन्य ग्रामीण नागरिकों की निहायत जरूरी मांगों पर विचार करने के उद्देश्य से संयुक्त किसान मोर्चा के साथ बातचीत बहाल करने के लिए तुरंत हस्तक्षेप
प्रिय प्रधानमंत्री,
हम आपको गहरे रोष, गहरी पीड़ा और गहरे संकल्प के साथ यह पत्र लिख रहे हैं, ऐसे समय जब देश एक भयानक त्रासदी से गुजर रहा है और लाखों लोग जान गंवा चुके हैं।
हम, भारत के किसान, जो एक निरंतर जारी संघर्ष में शामिल हैं, ठंड और बारिश और गर्मी झेलते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले दिल्ली की सरहदों पर दिन-रात बैठे रहे हैं, आपको यह पत्र ऐसे समय लिख रहे हैं जब कुछ ही दिन बाद 26 मई 2021 को हमारे संघर्ष को छह माह पूरे होंगे। उसी दिन केंद्र में आपकी सरकार को भी, जो अब तक की सबसे अधिक किसान विरोधी सरकार साबित हुई है, सात साल हो जाएंगे। सरकार ने किसानों की मांगों के प्रति निष्क्रियता और निष्ठुरता का जो रवैया अख्तियार कर रखा है उसके प्रति विरोध जताने के लिए किसान और किसान संगठन पूरे देश में 26 मई, 2021 को काला दिवस मनाएंगे। संयोग से इस दिन बुद्ध पूर्णिमा भी है, और हम भगवान बुद्ध के जन्म, निर्वाण और परिनिर्वाण का दिवस भी मनाएंगे।
संयुक्त मोर्चा का संकल्प और विश्वास शांतिपूर्ण जन आंदोलन और बातचीत के जरिए लोकतांत्रिक समाधान निकालने में है और इसे उसने बार-बार दोहराया है। संघर्ष के पहले दो महीनों के दौरान सरकार के साथ 11 बार बातचीत हुई और इसमें हम पूरी सद्भावना से शामिल हुए, बावजूद इसके कि आपकी सरकार ने हमारे आंदोलन के खिलाफ दमनकारी कदम उठाए और हमारे आंदोलन को बदनाम करने के हथकंडे आजमाए। लेकिन सरकार आंदोलन कर रहे किसानों की एकदम न्यूनतम मांगों से भी मुंह चुराती रही है। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार इन तीन कानूनों को रद्द कर देती- जिन्हें किसानों ने खारिज कर दिया है जिनके नाम पर ये कानून बनाए गए- और इस अवसर का उपयोग सभी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दिलाने के लिए करती। इसके बजाय आपकी सरकार ने इसे मूँछ का सवाल बना लिया है और टस से मस होने को तैयार नहीं है। और भी बुरी बात यह है कि आपकी सरकार ने 22 जनवरी 2021 से बातचीत के दरवाजे बंद कर रखे हैं, आपने दावा भले इससे उलट किया हो। आपकी सरकार के हठी रवैये के चलते हमने इस आंदोलन में अपने 470 से अधिक साथियों को खोया है।
फिर भी पूरे देश के किसान इस आंदोलन को जारी रखने के लिए कटिबद्ध हैं, जो कि आजादी के बाद का सबसे अनूठा, सबसे लंबा, सबसे बड़ा और सबसे शांतिपूर्ण आंदोलन रहा है। कोविड-19 महामारी के भयानक प्रकोप के दौरान भी हमारे देश के ‘अन्नदाता’ छह माह से सड़कों पर बैठे रहने को विवश हैं। इसके खतरों से हम भलीभांति वाकिफ हैं और नहीं चाहते कि आंदोलनकारी किसान या कोई भी खतरे की ज़द में आए, लेकिन इसी के साथ हम यह भी साफ कर देना चाहते हैं कि किसान इस संघर्ष को छोड़ नहीं सकते, क्योंकि यह उनके लिए और उनकी भावी पीढ़ियों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है।
प्रधानमंत्री महोदय, यह पत्र आपको यह स्मरण कराने के लिए है कि आप जो कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार के मुखिया हैं, किसानों के साथ गंभीरता तथा ईमानदारी से बातचीत की प्रक्रिया फिर से शुरू करने की जिम्मेदारी आपकी है। हम फिर दुहरा दें कि हम अपनी मूल मांगों पर दृढ़ता से कायम हैं – तीन जन-विरोधी कृषि कानून रद्द हों और हर किसान को एमएसपी (C 2+50 फीसदी की दर से) की कानूनी गारंटी मिले। इसके अलावा प्रस्तावित बिजली बिल के प्रतिकूल असर से किसानों को बचाने के प्रावधान किए जाएं।
हम वक्त के इस नाजुक मोड़ पर सरकार का ध्यान नहीं बंटाना चाहते, भले हमारी मुश्किलें दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। यही वजह है कि चार महीनों से हमने धैर्यपूर्वक इंतजार किया है। लेकिन अगर हमें आपकी सरकार की तरफ से इस महीने की 25 तारीख तक रचनात्मक और सकारात्मक जवाब नहीं मिलता है तो हमें बाध्य होकर अपने संघर्ष को अगले चरण में और तेज करने की घोषणा करनी होगी, जिसकी शुरुआत 26 मई के राष्ट्रीय विरोध दिवस से होगी।
हम कामना करते हैं कि बुद्ध पूर्णिमा पर आपकी सरकार को सद्बुद्धि आए।
भवदीय
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से –
बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मौला, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिन्दर सिंह उग्राहां, शिवकुमार कक्काजी, योगेन्द्र यादव, युद्धवीर सिंह।