10 जुलाई। एचएमएस यानी हिंद मजदूर सभा ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर आवश्यक रक्षा सेवाएं अध्यादेश 2021 पर कड़ा विरोध जताया है। एचएमएस के राष्ट्रीय महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू की तरफ से 9 जुलाई को रक्षामंत्री के नाम लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि उपर्युक्त अध्यादेश न सिर्फ ‘श्रमेव जयते’ (जिसका सूत्र खुद केंद्र सरकार ने दिया था) की भावना के विपरीत है, बल्कि यह समय-समय पर रक्षामंत्रियों द्वारा संसद में दिए उस आश्वासन के भी खिलाफ है जिसमें कहा गया था कि रक्षा उत्पादन इकाइयों खासकर 41 आयुध फैक्टरियों का निजीकरण हरगिज नहीं किया जाएगा। जबकि इस अध्यादेश का मकसद ही आयुध फैक्टरियों के निजीकरण के विरोध को कुचलना है।
यह अध्यादेश तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है और यह न सिर्फ उत्पादन तथा रखरखाव से जुड़ी रक्षा यूनिटों पर लागू होगा बल्कि इसके दायरे में वे वे गैर-रक्षा महकमे भी आएंगे जिनका रक्षा उत्पादन से किसी न किसी रूप में वास्ता होगा। केंद्र सरकार को यह अधिकार होगा कि वह गजट में सिर्फ एक आधिकारिक सूचना प्रकाशित करके किसी भी महकमे को इस अध्यादेश के दायरे में ला सकेगी।
इस अध्यादेश के जरिए न सिर्फ हड़ताल को रोकने और कुचलने का इंतजाम किया गया है बल्कि हड़ताल की परिभाषा भी बढ़ा दी गई है। ओवरटाइम से इनकार करना, धरना देना, धीमे काम करना, सांकेतिक हड़ताल करना या सामूहिक रूप से आकस्मिक अवकाश लेना भी हड़ताल माना जाएगा।
अध्यादेश की धारा 4 पुलिस अफसर को यह अधिकार देती है कि वह हड़ताली कामगार या दूसरों को हड़ताल के लिए उकसाने वाले के खिलाफ जो भी कार्रवाई उचित समझे कर सकता है।
अध्यादेश की धारा 5 (2) (1) में हड़ताल करने पर कामगार को दंडित करने की बात कही गयी है- कुछ स्थितियों में उसे नौकरी से निकाला जा सकता है, बगैर कोई जांच किए।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का हवाला
रक्षामंत्री को लिखे इस पत्र में एचएमएस के महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू ने सरकार को भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की भी याद दिलायी है। पत्र में कहा गया है कि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के संस्थापक देशों में से एक है, उसकी संचालक समिति का सदस्य है, इसके अलावा भारत ने आइएलओ के विभिन्न समझौतों और घोषणाओं का समर्थन किया है, आईएलओ के 47 अंतरराष्ट्रीय करारों की पुष्टि की है। भारत ने सारी दुनिया के सामने अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों का पालन करने का वचन दिया हुआ है।
एचएमएस ने अपने पत्र में रक्षामंत्री को ध्यान दिलाया है कि अध्यादेश न सिर्फ औद्योगिक विवाद अधिनियम और श्रम संहिता के खिलाफ है बल्कि यह भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का भी मखौल उड़ाता है। कहीं भी पुलिस अफसर को ऐसे अधिकार नहीं दिये गये हैं जैसे इस अध्यादेश में दिये गये हैं और न ही कहीं ओवरटाइम करने से मना करने को हड़ताल माना गया है। यह अध्यादेश तो कामगारों को गुलामी की तरफ ले जानेवाला है, जैसी कि उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में उनकी दशा थी।
सरकार पहले ही, तमाम श्रमिक संगठनों के विरोध के बावजूद, 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म करके श्रमिकों का बहुत अहित कर चुकी है। अब नए अध्यादेश के रूप में उसने एक और भयानक कदम उठाया है।
हिंद मजदूर सभा ने रक्षामंत्री से उपर्युक्त अध्यादेश को वापस लेने का अनुरोध किया है। साथ ही यह भी कहा है कि अगर उसके अनुरोध पर गौर नहीं किया गया तो सिविलियन रक्षा कर्मचारियों व कामगारों के संघर्ष में एचएमएस उनका साथ देगा।