— अनिल सिन्हा —
पेगासस जासूसी कांड ने देश को इस हद तक हिला दिया है कि अमूमन मोदी सरकार को अप्रिय लगनेवाले समाचारों को नजरअंदाज करनेवाला मुख्यधारा का मीडिया भी इसपर चर्चा कर रहा है। जैसे-जैसे वे नाम बाहर आ रहे हैं जिनके फोन में घुसकर उनकी बातचीत से लेकर दूसरी तमाम गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी, लोगों की हैरानी बढ़ती जा रही है। नाजी जर्मनी में फोन में यंत्र लगाकर लोगों की बातचीत सुनी जाती थी और जगह-जगह फैले जासूस लोगों पर नजर रखते थे। पेगासस उसी तरीके का विस्तार है और नयी टेक्नोलॉजी से मिली सुविधाओं को फायदा शासक उठा रहे हैं।
पेगासस उस निरंकुश शासन का हथियार है जिसका खाका जर्मनी में हिटलर ने पेश किया था। पेगासस जासूसी के शिकार लोगों की सूची को देखकर यह साफ हो जाता है कि नाजियों के तौर-तरीके और भारत के मौजूदा हुक्मरानों के तौर-तरीके एक ही तरह के हैं। इसमें सिर्फ विरोधियों पर नजर नहीं रखी जाती है बल्कि अपने साथियों पर भी नजर रखी जाती है।
झूठ और जासूसी इस तरह के शासन-तंत्र का आधार होता है। इसमें लोगों के जीने का अधिकार भी छीन लिया जाता है और किसी को भी देशद्रोही बताकर उसे सजा दी जा सकती है। बोलने और सोचने के अधिकार पर भी शासन का कब्जा होता है।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन ने खबरों की इस हलचल के दौरान अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में पेगासस की ग्रीक कथा की ओर हमारा ध्यान दिलाया है। इस कथा के अनुसार पेगासस नाम के अलौकिक पंखों वाले घोड़े की लगाम हाथ में आने पर बेलेरोफोन नाम का एक महत्त्वाकांक्षी शख्स देवता बनने की इच्छा पाल लेता है और स्वर्ग की ओर चल पड़ता है। उसके इस दुस्साहस पर क्रोधित होकर घोड़े का पहलेवाला मालिक जीउस उसके हाथ से लगाम छीन लेता है। बेलेरोफोन धड़ाम से जमीन पर आ गिरता है और सदा के लिए अपाहिज हो जाता है।
पेगासस की कहानी के ताजा संस्करण में किस तरह का अंत होता है, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन इतना तो जाहिर हो जाता है कि इजरायल की एनएसओ नामक कंपनी के बनाये पेगासस नामक साफ्टवेयर का इस्तेमाल भी भारत की सत्ता पर अनंत काल तक काबिज रहने की महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के स्वर्ग पर बेलेरोफोन की तरह ही अपना शासन चाहते हैं। अपने रास्ते में आनेवाले हर आदमी को किनारे करना चाहते हैं। यह काम पेगासस जैसा हथियार ही कर सकता है जो लोगों की हर गतिविधि पर नजर रखे, लेकिन उन्हें इसका पता भी न चले।
सूची में प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों और सहयोगियों को देखकर लोग भले ही आश्चर्य में हों, इस जासूसी कांड में एक निश्चित राह दिखायी देती है। यह है किसी तरह सत्ता में बने रहने की राह। अगर जासूसी के शिकार लोगों की सूची को देखा जाए तो साफ हो जाता है कि उन लोगों की जासूसी की गयी है जिनके संबंध चुनाव-संग्राम, कॉरपोरेट युद्ध, कूटनीतिक युद्ध तथा न्यायपालिका से थे। विप़क्षी पार्टियों को पटखनी देने के लिए कुछ भी करने तथा घोटालों की आंच प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंचने से रोकने की कोशिश साफ दिखायी देती है।
एक ओर प्रधानमंत्री की रैली में चुनाव नियमों के उल्लंघन का मामला उठानेवाले चुनाव आयुक्त लवासा पर नजर रखी जाती है तो उद्योगपति अनिल अंबानी पर नजर रखना रफाल सौदे से उनके संबंध के कारण जरूरी हो जाता है। धर्मगुरु दलाई लामा तथा नगा नेता मुइवा पर कूटनीतिक जीत के लिए तो जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगानेवाली महिला तथा उसके परिवार के सदस्यों को इसलिए घेरे में लिया जाता है कि न्यायपालिका को साधा जा सके। चुनावी रणनीति जानने के लिए राहुल गांधी और प्रशांत किशोर पर निगरानी है तो रफाल सौदे से संबंधित लोगों तथा सरकार के घोटालों को उजागर करनेवाले पत्रकारों पर नजर रख जाती है।
सूची में भीमा कोरेगांव के आरोपियों, मानवाधिकार कांर्यकर्ताओं के नाम भी इसलिए दिखायी देते हैं कि दबे-कुचले लोगों की आवाज उठानेवालों को देशद्रोही बताने का नारा बुलंद हो सके। यह सत्ता में खुद को बनाये रखने की वजह तैयार करने तथा आदिवासी इलाकों में चल रही कॉरपोरेट लूट के खिलाफ खड़े होनेवालों को रास्ते से हटाने की सोची-समझी चाल थी।
लेकिन यह साफ हो जाने पर भी कि पेगासस जासूसी कांड के मूल उद्देश्य के पीछे प्रधानमंत्री मोदी को किसी भी तरह सत्ता में बनाये रखने का उद्देश्य था, यह सवाल उठता है कि ऐसे व्यक्तिकेंद्रित और हिटलरी शासन के पीछे कौन सी विचारधारा काम कर रही है। निश्चित तौर पर यह आरएसएस की विचारधारा है जिसका लक्ष्य एक ऐसा फासीवादी तंत्र बनाना है जिसमें मुसलमान और ईसाई मजहब को माननेवालों को दूसरे दर्जे की नागरिकता मिले।
संघ परिवार को लंबे समय से ऐसे नेता की जरूरत थी जो हिंदुत्व तथा पूंजीवाद के उसके उद्देश्यों को पूरा करे। विषमता वाले समाज को बनाए रखने के उसके दर्शन को बिना संकोच भारतीय लोकतंत्र की नसों में प्रवाहित करने के काम में प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। मोदी के सात साल के शासन में न केवल राम मंदिर से लेकर तीन तलाक और नागरिकता कानून के जरिए उन्हें असुरक्षित करने की कोशिश की गयी बल्कि मॉब लिंचिंग और दिल्ली दंगों जैसे संगठित अपराधों के जरिए उन पर सीधे हमले भी किये गये।
इन सात सालों में मोदी सरकार ने न केवल कार्यपालिका को एक ऐसी शक्ल दे दी है कि वह संविधान के बदले व्यक्तियों में अपनी आस्था रखने लगा है। सिविल सेवा की जो परिकल्पना संविधान बनानेवालों ने की थी, वह देखते-देखते ध्वस्त हो चुकी है। यही नहीं, न्यायपालिका भी सरकार के सुर में सुर मिलाने लगी है। चुनाव आयोग मोदी और अमित शाह की सुविधा के अनुसार चुनाव की तिथियां तय करने लगा है। लोकतंत्र के इस पतन और संविधान की धज्जियां उड़ने की इन घटनाओं को लोग देख रहे थे और इसके खिलाफ आवाज भी उठ रही थी, लेकिन यह सब इस सफाई से हो रहा था कि आप किसी को दोषी नहीं बता सकते थे। आप बताते भी कैसे, जब दोष तय करनेवाला पूरा तंत्र ही उनके हाथ में हो।
पेगासस लोकतंत्र को पतन की ओर ले जानेवालों के खिलाफ एक पुख्ता सबूत के रूप में सामने आया है। यह लोकतंत्र की हत्या के लिए इस्तेमाल किया गया चाकू है जो दुनिया के सामने आ गया है। जाहिर है कि चाकू को अपना बताने से मोदी सरकार ने मना कर दिया है। अब मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह सिद्ध करे कि इस चाकू से हुक्मरानों ने लोकतंत्र पर हमला किया है।