26 जुलाई। देश में चल रहे ऐतिहासिक और अभूतपूर्व किसान आंदोलन ने दिल्ली की सीमाओं पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के आठ माह पूरे कर लिये हैं। यह आंदोलन किसानों की गरिमा और एकता का प्रतीक बन गया है। यह अब किसान आंदोलन नहीं है, बल्कि एक जन-आंदोलन बन चुका है जो भारत के लोकतंत्र की रक्षा और देश को बचाने के संघर्ष का प्रतीक है। संयुक्त किसान मोर्चा ने फिर दोहराया है कि प्रदर्शनकारी भारत सरकार द्वारा उनकी मांगों को माने जाने तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
आज पूरे मानसून सत्र के दौरान भारत की संसद के समानांतर जंतर मंतर पर चलायी जा रही किसान संसद की एक विशेष महिला संसद आयोजित की गयी। महिला किसान संसद में आज की बहस का मुद्दा आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 रहा। बहस में भाग लेनेवाली महिला किसान संसद के सदस्यों ने बताया कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में किये गये संशोधनों ने खाद्य आपूर्ति में बड़े कॉर्पोरेट और अन्य लोगों द्वारा जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि इस कानून का कुप्रभाव सिर्फ किसानों पर नहीं बल्कि उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा। उन्होंने बताया कि निर्यात आर्डर के नाम पर देश में अत्यधिक आपात स्थिति में भी बड़ी पूंजी द्वारा कितनी भी जमाखोरी की जा सकेगी। यह बताया गया की सरकार ने इस 2020 के कानून के माध्यम से आम नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए अपने जनादेश, इरादे और शक्ति को त्याग दिया है।
महिलाओं ने तर्क दिया कि घर की खाद्य सुरक्षा का ख्याल रखने के लिए महिलाओं पर जोर देनेवाली लैंगिक भूमिकाओं को देखते हुए, यह कानून खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की महिलाओं की क्षमता को कमजोर करता है। जब इस कानून के कारण भोजन भी पहुंच से बाहर हो जाएगा तो हमें खाने में कटौती करने को मजबूर होना पड़ेगा। महिला किसान संसद के सदस्यों ने बताया कि इस कानून का खमियाजा महिलाओं को ज्यादा भुगतना पड़ेगा।
महिला किसान संसद की एक सदस्य श्रीमती रमेश थीं, जिन्होंने इस आंदोलन के दौरान अपने पति को खो दिया। इस अकल्पनीय दुखअपने के बावजूद, वह संघर्ष में सक्रिय रही हैं। ‘संसद सदस्यों’ ने आज विजय दिवस पर कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने 1999 में आज के ही दिन राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
महिला किसान संसद में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया कि भारतीय कृषि में महिलाओं के अपार योगदान के बावजूद, उन्हें वह सम्मान और दर्जा नहीं मिल पाया है जो उन्हें चाहिए – किसान आंदोलन में महिला किसानों की भूमिका को मजबूत करने के लिए सोच-समझकर कदम उठाने की आवश्यकता है। महिला किसान संसद ने सर्वसम्मति से यह भी निर्णय लिया कि पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों की तर्ज पर संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण होना चाहिए। इस संबंध में महिला किसान संसद ने प्रस्ताव पारित किया कि एक संवैधानिक संशोधन किया जाना चाहिए ताकि महिलाएं, जो हमारी आबादी का 50 फीसदी हिस्सा है, उनको उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
पंजाब में, 108 स्थानीय विरोध स्थलों (ये वे स्थल हैं जहां प्रदर्शनकारी कॉर्पोरेट ठिकानों, अडानी ड्राई पोर्ट के बाहर, टोल प्लाजा, आदि पर लगातार धरना दे रहे हैं) में बहुमत पर महिला किसानों ने आज की कार्यवाही का नेतृत्व किया।
इस बीच, महिला किसान संसद के सदस्यों के स्वागत के लिए जंतर मंतर पहुंची दिल्ली की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया। उन्हें जंतर मंतर से उठाया गया और बाराखंभा पुलिस स्टेशन में कई घंटों तक हिरासत में रखा गया, और बाद में छोड़ दिया गया।
मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड
संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार को मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का शुभारंभ किया और घोषणा की कि इस मिशन को औपचारिक रूप से 5 सितंबर, 2021 को मुजफ्फरनगर में एक विशाल रैली के साथ शुरू किया जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आज लखनऊ से शुरू किए गए मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तहत यह घोषणा की गयी कि वर्तमान किसान आंदोलन को मजबूत करने के लिए इसे पंजाब और हरियाणा की तरह दोनों राज्यों (उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) के हर गांव में ले जाया जाएगा। इसके माध्यम से, हमारे खाद्य और कृषि प्रणालियों पर कॉर्पोरेट नियंत्रण को इन राज्यों के सभी कोनों से किसानों द्वारा चुनौती दी जाएगी। इस मिशन में किसान-विरोधी भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का हर जगह विरोध और बहिष्कार किया जाएगा, जैसे उनके नेताओं का पंजाब और हरियाणा में बहिष्कार और विरोध हो रहा है। स्वामी सहजानंद सरस्वती, चौधरी चरण सिंह और चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत की पूण्य-भूमि अब भारत की खेती और किसानों को कॉर्पोरेट और उनके राजनीतिक दलालों से बचाने की लड़ाई लड़ेगी।
संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान संगठनों और अन्य प्रगतिशील संगठनों से हाथ मिलाने और इस मिशन के हिस्से के रूप में राज्यों के सभी टोल प्लाजा को मुक्त करने का आह्वान किया। राज्यों में अंबानी और अडानी के व्यावसायिक ठिकानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। भाजपा और उसके सहयोगी दलों को अपने विभिन्न कार्यक्रमों में विरोध का सामना करना पड़ेगा और उनके नेताओं को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ेगा। इस मिशन को आकार और प्रभाव देने के लिए दोनों राज्यों में बैठकें, संवाद, यात्राएं और रैलियां आयोजित की जाएंगी।
पंजाब-हरियाणा में भाजपा नेताओं का विरोध जारी
हरियाणा में, भिवानी और हिसार में, राज्य सरकार के मंत्रियों को रविवार को किसानों के काले झंडे समेत विरोध का सामना करना पड़ा। करनाल में भाजपा की एक बैठक का किसानों ने काले झंडों से विरोध किया। पंजाब के फिरोजपुर में भी प्रदर्शनकारियों ने एक भाजपा नेता सुरिंदर सिंह का घेराव किया।