29 जुलाई। जंतर-मंतर पर किसान संसद के छठे दिन 200 किसानों का एक और जत्था शांतिपूर्ण और अनुशासित तरीके से जंतर मंतर पहुंचा। भारी बारिश और पानी भर जाने के बावजूद किसान संसद की कार्यवाही निर्धारित समय के अनुसार निर्बाध रूप से आयोजित की गई।
गुरुवार को भी बहस का मुद्दा 2020 में केंद्र सरकार द्वारा लाया गया अनुबंध खेती अधिनियम रहा। किसान संसद ने सर्वसम्मति से “किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम 2020” को असंवैधानिक, किसान-विरोधी और कॉर्पोरेट-समर्थक बताते हुए खारिज किया, और अधिनियम को निरस्त घोषित किया। यह स्वीकार किया गया कि अधिनियम कॉर्पोरेट द्वारा किसानों से संसाधन हथियाने के लिए है, और वास्तव में कॉर्पोरेट खेती को बढ़ावा देने के लिए लाया गया था। इस कानून के विभिन्न खंड स्पष्ट करते हैं कि यह कॉर्पोरेट को विभिन्न कानूनों के नियामक दायरे से मुक्त करने के लिए है, जबकि जहां किसान की बात आती है, तो अनुबंध खेती में प्रवेश करने वाले किसानों के लिए कोई सुरक्षात्मक प्रावधान नहीं हैं।
किसान संसद ने यह भी संकल्प किया और अपील की कि भारत के राष्ट्रपति को यह देखना चाहिए कि संसद की सर्वोच्चता बरकरार रहे। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपने कार्यकाल के दौरान संसद की कार्यवाही को नियमों और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार संचालित करने में बुरी तरह विफल रही है। संसद के दोनों सदनों में लोगों की पीड़ा और जीवन और मृत्यु के मुद्दों सहित तमाम गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने की अनुमति नहीं दी जा रही।
एसकेएम उस लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके की सराहना करता है जिसमें हरियाणा के एक युवा कार्यकर्ता ने 3 किसान विरोधी कानूनों के संबंध में राज्य के मुख्यमंत्री के प्रति अपना प्रतिरोध दिखाया। एसकेएम ने कहा है कि युवा किसान कार्यकर्ता रंगलाल के खिलाफ झूठा और मनगढ़ंत मामला दर्ज किया गया है, जिसे हरियाणा के मुख्यमंत्री की उपस्थिति में 3 काले कृषि कानूनों के विरोध में गिरफ्तार किया गया है। मामला हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल का है।
इससे भी बुरी बात यह है कि क्रूर हिंसा के बेशर्म प्रदर्शन में भाजपा कार्यकर्ताओं और पुलिस ने राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में युवक की पिटाई कर दी। यह सब इस युवा प्रदर्शनकारी के मौलिक मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। हरियाणा सरकार उन्हें तुरंत और बिना शर्त रिहा करे, और उनके खिलाफ दर्ज किए गए मनगढ़ंत मामलों को वापस लिया जाए।
एसकेएम ने भारत के सभी ओलंपिक खिलाड़ियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि किसान आंदोलन दत्तू भोकानल जैसे खिलाड़ियों पर गर्व करता है जो किसान परिवारों से हैं। एसकेएम ने कहा कि हमें देश के किसानों के योगदान पर गर्व है।
भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा कि कृषि मंत्रालय की डिजिटल इकोसिस्टम योजना में, केवल भूमि के मालिक किसान ही योजनाओं और सेवाओं पर विभिन्न अधिकारों के लिए पात्र हैं। यह स्पष्ट रूप से ‘किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2007’ के खिलाफ है। सरकार इन योजनाओं के साथ आगे बढ़ रही है, जो किसानों के अधिकारों को, गंभीर चिंताओं और आपत्तियों के बावजूद, डिजिटाइज्ड सेटअप में दोषपूर्ण भूमि रिकॉर्ड से जोड़ती है। सभी किसानों के लिए भूमि स्वामित्व अधिकारों के कष्टप्रद मसलों को वास्तविक दुनिया में पहले हल किया जाना चाहिए।
भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में आनेवाले नए मुद्दों के अलावा, भूमि अभिलेखों के साथ लंबे समय से लंबित शिकायतों को भी दूर किया जाना है। इनमें से कुछ भी किए बिना, यह जानते हुए कि भारतीय किसानों का एक बहुत बड़ा हिस्सा भूमिहीन है, और उनके पास भूमि पर स्पष्ट स्वामित्व नहीं है, कृषि-डिजिटलीकरण योजनाओं के साथ आगे बढ़ना मोदी का एक और किसान-विरोधी उपाय है। माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन और पतंजलि जैसी कॉर्पोरेट संस्थाओं के साथ पहले ही एमओयू साइन किए जा चुके हैं।
27 जुलाई 2021 को, सुश्री शोभा करंदलाजे ने संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन के पूर्व शिखर सम्मेलन के मंत्रिस्तरीय गोलमेज बैठक को संबोधित किया।एसकेएम ने कहा है कि राज्य-मंत्री करंदलाजे ने हमारी खाद्य प्रणालियों को बदलने और सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के मोदी सरकार के कार्य के बारे में झूठे और लंबे दावे किये। भाजपा सरकार कृषि के मोर्चे पर और कृषि और ग्रामीण आजीविका से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों पर जो कर रही है, वह वास्तव में एसडीजी (सतत विकास लक्ष्यों) के तहत किए गए वादों के विपरीत है। मंत्री ने मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों को सूचीबद्ध किया, जो उनके अनुसार “किसानों को आय सहायता प्रदान करने, ग्रामीण आय में सुधार करने के साथ-साथ देश में कुपोषण के मुद्दों को संबोधित करने के लिए” हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि उनके द्वारा सूचीबद्ध उपाय और उनके द्वारा नहीं बताए गए कई अन्य उपाय वास्तव में ग्रामीण आय या कुपोषण मिटाने के कथित उद्देश्यों के साथ असंगत हैं। मोदी सरकार ‘कृषि सुधारों’ के नाम पर जो कर रही है, वह उस नाजुक आजीविका प्रणाली को नष्ट कर देगी, जिसे किसान कई किसान-विरोधी नीतियों के बावजूद बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।