उप्र में उर्दू शिक्षक भर्ती का मामला उठाएंगे प्रशांत भूषण

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16 अगस्त। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के समय निकली 4 हजार उर्दू शिक्षक भर्ती पार्टियों की राजनीति में फंस कर रह गयी, नतीजतन न तो विद्यार्थियों को शिक्षक मिले और ना ही युवाओं को रोजगार।

यूथ फॉर स्वराज ने उप्र में उर्दू शिक्षकों की भर्ती का मामला नये सिरे से उठाया है। यूथ फॉर स्वराज ने बताया की 4 हजार उर्दू शिक्षक भर्ती की काउंसलिंग मार्च 2017 में पूरी हुई लेकिन 4 साल बाद भी इन अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र नहीं मिले | कारण योगी सरकार ने भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी | जबकि अभ्यर्थी प्रक्रिया को शुरू करने की गुहार लगा कर थक गए तो अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जहाँ सरकार की एक भी दलील नहीं चली और अभ्यर्थियों के पक्ष में सिंगल बेंच, डबल बेच, रिव्यू याचिका के फैसले आते चले गए |

लेकिन योगी सरकार उर्दू शिक्षक भर्ती को पूरा करना ही नहीं चाहती थी इसलिए कोर्ट के आदेश तक नहीं माने | इससे तंग आकर अभ्यर्थियों ने कोर्ट के आदेश की अवमानना का केस दायर कर दिया, जहाँ सरकार को फटकार पड़ी | इस फटकार के बाद सरकार एक्शन में दिखी, लेकिन भर्ती को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि भर्ती को निरस्त करने लिए और आदेश जारी करके भर्ती को रद्द कर दिया और डबल बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी |

यूथ फॉर स्वराज के रोजगार फ्रंट के संयोजक अंकित त्यागी ने बताया कि अभ्यर्थियों के इस केस से साफ जाहिर है कि योगी सरकार जानबूझ कर उर्दू भर्ती को पूरा करना नहीं चाहती | योगी जी को लगता है कि उर्दू शिक्षक भर्ती में सिर्फ मुस्लिम हैं और मुस्लिम अभ्यर्थियों को आगे नहीं बढ़ने देना है | लेकिन सरकार पूरी तरह से गलत है इस उर्दू शिक्षक भर्ती में हिन्दू युवा भी शामिल हैं | सरकार शिक्षा जैसे क्षेत्र में भेदभाव की नीति पर चल रही हैं।

रोजगार फ्रंट की सह-संयोजक जान्हवी सोढ़ा का कहना है की बेरोजगार युवाओं के पास सुप्रीम कोर्ट में वकील करने के पैसे नहीं होते, कम से कम सरकार को सोचना चाहिेए कि 4 साल से धक्के खा रहे ये बेरोजगार इतना पैसा कहां से जुटाएंगे | इसलिेए हमने स्वराज अभियान के सदस्य और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण से बात की और अब वह इन अभ्यर्थियों की आवाज सुप्रीम कोर्ट में उठाएंगे |

अधिवक्ता प्रशांत भूषण का कहना है कि यहाँ लड़ाई मात्र 4 हजार उर्दू शिक्षकों के रोजगार को बचाने की ही नहीं है बल्कि उर्दू जैसी भाषाओं को बचाने की भी है, भाषाएँ तभी बच पाएंगी जब उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षक होंगे। उर्दू एक भारतीय भाषा है जिसके अस्तित्व को बचाना हर भारतीय का कर्तव्य है।

अंकित त्यागी

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