19 अगस्त। देश के किसानों को पूरी तरह से एहसास हो गया है कि वे प्रधानमंत्री के बहुप्रतीक्षित दावों, झूठे वायदों और घुमावदार बातों, या उनके जुमलों पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। ‘किसानों की आय दोगुनी’ करने के जुमले के अलावा लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के खोखले दावे पूरी तरह से बेनकाब हो गये हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण (पीआईबी रिलीज आईडी : 1746062 दिनांक 15/08/2021) में ‘एमएसपी को 1.5 गुना बढ़ाने के महत्त्वपूर्ण निर्णय’ का संदर्भ देना जारी रखा। एमएसपी में सी2 +50 के हिसाब से 1.5 गुना वृद्धि नहीं की गयी है, और मोदी सरकार के संसद के पटल पर बयान के बावजूद, घोषणा के मुताबिक एमएसपी सभी किसानों को नहीं मिल रही है।
दुष्प्रचार और झूठ किसानों के लिए एमएसपी या उनकी आय तक सीमित नहीं है। लगातार तीन वर्षों तक, प्रधानमंत्री अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में, 100 लाख करोड़ रुपये के ‘बुनियादी ढांचे’ में निवेश के बारे में बात करते रहे हैं। 2019 में, यह ‘मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर’ और उसपर 100 लाख करोड़ रुपये के निवेश के निर्णय के बारे में था। 2020 में, यह ‘नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन प्रोजेक्ट’ के बारे में था, प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि इस परियोजना पर 110 लाख करोड़ खर्च किये जाएंगे। इस भाषण में, पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान घोषित कृषि अवसंरचना निधि (एआईएफ) का भी संदर्भ था, और दावा किया गया था कि भारत सरकार ने इसके लिए एक लाख करोड़ रुपये की “मंजूरी” दी है। मोदीजी ने दावा किया था कि, “इंफ्रास्ट्रक्चर किसानों की भलाई के लिए होगा और इसके कारण किसान अपना मूल्य भी प्राप्त कर सकेगा, दुनिया के बाजार में बेच भी पाएगा”(पीआईबी रिलीज आईडी 1646045 दिनांक 15/08 /2020)। अब, इस वर्ष, यह ‘गति शक्ति’ राष्ट्रीय अवसंरचना मास्टर प्लान के ‘100 लाख करोड़ रुपये से अधिक की योजना’ के रूप में सामने लायी गयी है।
जब हम कृषि अवसंरचना निधि की वास्तविकता को घोषणा के एक साल बीत जाने के बाद देखते हैं, तो प्रधानमंत्री के झूठे बयानों का पर्दाफाश हो जाता है। एआईएफ एक 13 वर्ष की योजना है जो संयोग से 2023-24 तक संवितरण के साथ है। 6 अगस्त 2021 तक, ‘सैद्धांतिक’ प्रतिबंधों (पिछले साल ही घोषित तथाकथित ‘मंजूरी’ का 4.5%) सहित 6524 परियोजनाओं के लिए एआईएफ के तहत केवल 4503 करोड़ स्वीकृत किये गये हैं। 23 जुलाई 2021 को राज्यसभा में दिये गये बयान के अनुसार, केवल 746 करोड़ रुपये का वितरण किया गया है अर्थात (भव्य घोषणा का 0.75 फीसद)। एसकेएम ने किसानों से अपील की है कि “मोदी सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करना ही एकमात्र रास्ता है।”
प्रधानमंत्री आदतन ऐसे बयान देते हैं, चाहे हमारे राष्ट्रीय ध्वज के नीचे खड़े होकर दिया हो या संसद के पटल पर, फरवरी 2021 में पीएम मोदी ने तर्क दिया कि अगर तीन काले कानूनों को अनिवार्य कर दिया गया है तो उनका विरोध किया जाना चाहिए, जबकि इन कानूनों को किसानों को विकल्प के तौर पर बनाया गया है। संसद द्वारा पारित कानून स्वैच्छिक नहीं हो सकते हैं, और विनियमित बाजारों के कमजोर होने और पतन के निहितार्थ, और निगमों के लिए अनियंत्रित बाजारों के फलने-फूलने से किसानों के लिए कोई ‘विकल्प’ नहीं मिलेगा। उन्होंने इस बात को भी नजरअंदाज किया कि राज्य स्तर पर कई मौजूदा एपीएमसी कानूनों के तहत किसानों को पहले से ही वे जहां चाहें फसल बेचने की स्वतंत्रता है, जबकि केंद्र सरकार का कानून अंततः किसान के लिए मंडी के विकल्प को समाप्त कर देगा। संसद के पटल पर पीएम मोदी ने आदतन अपने अंदाज में इसपर तंज कसने की कोशिश की और अपनी घुमावदार बातों के साथ इसे पेश किया।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत सरकार से 8844 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ “राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन– पाम ऑयल” को मंजूरी दे दी है। बाजार पर कब्जा करने के लिए तैयार पतंजलि जैसी कंपनियों के अलावा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के दृष्टिकोण से, पाम ऑयल की खेती पर जोर कई लोगों के लिए चिंता का विषय है। हालांकि, चौंकानेवाली बात यह है कि खाद्य तेलों पर मोदी सरकार के मिशन में किसानों के लिए बाजार के मोर्चे पर कोई समाधान नहीं रखा गया है। यह याद रखने की जरूरत है कि 1980 के दशक में तिलहन मिशन, जिसने भारत को लगभग आत्मनिर्भरता तक पहुँचाया था, के साथ सहकारी संस्थाओं द्वारा बाजार हस्तक्षेप के माध्यम से किसानों को लाभकारी बाजार प्रदान करने पर महत्त्वपूर्ण जोर दिया गया था। हालाँकि, यह बजार उदारीकरण था जिसके कारण आत्मनिर्भरता में उल्लेखनीय गिरावट आयी। मोदी सरकार अपनी नयी घोषणा में तिलहन उत्पादकों सहित अन्य किसानों को कानूनी गारंटी के रूप में लाभकारी एमएसपी प्रदान करने पर रहस्यमय चुप्पी साधे हुए है।
भाजपा नेताओं का विरोध
18 अगस्त को हरियाणा के करनाल जिले में इंद्री से भाजपा विधायक राम कुमार कश्यप को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। चौगामा गांव में मंगलवार को किसानों को पीटनेवाले विधायक के खिलाफ किसान कार्रवाई चाहते थे। राज्य में ‘अन्नपूर्णा उत्सव’ पीडीएस आपूर्ति पर पीएम मोदी, सीएम खट्टर और डिप्टी सीएम चौटाला की तस्वीरों के प्रदर्शन के खिलाफ कल पूरे हरियाणा में कई विरोध प्रदर्शन हुए। उत्तराखंड में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट 18 अगस्त को जहां भी गये उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा। जब सैकड़ों किसान उनके रास्ते में आ गये, तो उन्हें अपना खुला वाहन छोड़कर एक कार में बैठना पड़ा। उत्तराखंड पुलिस ने कई किसानों को हिरासत में ले लिया और बाद में रिहा कर दिया।
गन्ने का बकाया पंजाब में भी
पंजाब के गन्ना किसान बकाया भुगतान के लिए आंदोलन कर रहे हैं। निजी व सहकारी चीनी मिलों का पिछले पिराई सत्र का 200 करोड़ से अधिक का भुगतान लंबित है। किसान संगठनों ने कल 20 अगस्त को विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है, जिसके दौरान वे रेल और सड़क यातायात रोकेंगे। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के गन्ना किसान भी भुगतान पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।