19 सितंबर। एक वर्ष पहले, 19 सितंबर 2020 को पंजाब के मोगा में वर्तमान ऐतिहासिक किसान संघर्ष के बीज बोए गए थे। इस दिन, जून 2020 को मोदी सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक रूप से लाए गए किसान-विरोधी, कॉर्पोरेट-समर्थक कृषि अध्यादेशों का विरोध करने वाले विभिन्न किसान संगठनों ने साथ आने और एकजुट होकर संघर्ष करने का फैसला किया था। इस दिन पंजाब के 32 किसान संगठनों द्वारा शुरू किए गए समन्वित संघर्ष ने एक बड़े अखिल भारतीय गठबंधन की नींव रखी, जो बाद में 27 अक्टूबर और 4 नवंबर को तैयार हुआ। इस प्रकार संयुक्त किसान मोर्चा का अखिल भारतीय स्तर पर संघर्ष शुरू हुआ, और जैसा कि कहते हैं, बाकी सब इतिहास है। किसान संगठनों और नेताओं ने इस ऐतिहासिक संघर्ष में सामूहिक नेतृत्व के साथ लोकतांत्रिक तरीके से काम करना सीखा है, जिसने देश के किसानों की पहचान, गरिमा और ताकत को फिर से जगाया है।
शनिवार को पंजाब के किसान नेताओं ने संयुक्त किसान मोर्चा समन्वय समिति के सदस्यों के साथ फैसला किया कि वे आज मुरथल में सोनीपत डीएम द्वारा बुलाई गई बैठक में भाग नहीं लेंगे। नेताओं ने तर्क दिया कि किसान आंदोलन को ऐसी बैठकों में खींचने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का गलत अर्थ निकाला जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त 2021 को डब्लू पी (सिविल) क्रमांक 249/2021 के अपने आदेश में, भारत के सालिसिटर जनरल को कहा है कि समाधान भारतीय संघ और संबंधित राज्य सरकारों के हाथों में है। एसकेएम ने फिर जोर देकर कहा है कि वास्तव में ऐसा ही है।
भारत सरकार किसानों की जायज मांगों को पूरा नहीं करने पर अड़ी रही है, और 22 जनवरी 2021 के बाद से किसानों के प्रतिनिधियों के साथ कोई बातचीत नहीं की है। सरकार जानती है कि समाधान कहां है और जहां अब तक 600 से अधिक किसान शहीद हो चुके हैं, सरकार प्रतिशोधपूर्ण तरीके से विरोध करनेवाले किसानों को कठिनाइयों में रखने के लिए अडिग है। एसकेएम ने कहा, “यह शर्मनाक है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक चुनी हुई सरकार अपने नागरिकों को अपनी आजीविका और भविष्य बचाने के लिए इस तरह के संघर्ष में डाल रही है।”
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बार फिर का यह दोहराया है कि हरियाणा और दिल्ली पुलिस ने किसानों को रोका है, जिन्होंने बैरिकेड लगा रखे हैं और सड़कों को जाम कर दिया है। सड़कों को जाम करनेवाले किसान नहीं हैं। दरअसल, विरोध कर रहे किसानों ने सिंघू और टिकरी मोर्चा पर सड़क के दोनों ओर यातायात के लिए स्पष्ट रास्ता बना लिया है और गाजीपुर बॉर्डर पर सड़क केवल एक तरफ से अवरुद्ध है। यही हाल शाहजहांपुर और अन्य मोर्चों का भी है।
संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में उन्हें समन्वय की जिम्मेदारी दी है, जबकि हरियाणा सरकार द्वारा नाहक किसान संगठनों को इसमें घसीटा जा रहा है।
बंद के लिए तैयारी बैठकें
27 सितंबर के बंद की योजना बनाने के लिए कई संगठनों द्वारा रविवार को जयपुर में किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया। कर्नाटक में रविवार की शाम एक वर्चुअल जनसभा आयोजित की गयी, जिसे राज्य के प्रमुख किसान नेताओं ने संबोधित किया। भारत बंद की तैयारियों की समीक्षा के लिए और कई किसान संगठनों के बीच होनेवाले समन्वित कार्य के लिए सोमवार को तमिलनाडु में एक बैठक की योजना है। मोहाली में रविवार को दूध विक्रेताओं और सब्जी विक्रेताओं से भारत बंद का समर्थन करने की अपील करने के लिए एक बैठक का आयोजन किया गया।
रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, महाराष्ट्र और तेलंगाना के विभिन्न हिस्सों में भारत बंद की तैयारी बैठकें हो रही हैं। बंद के प्रस्ताव पर व्यापारियों, कर्मचारी संघों, वकील संघों, ट्रांसपोर्टर्स यूनियनों, ट्रेड यूनियनों और अन्य मजदूर यूनियनों और अन्य लोगों से अब तक जबरदस्त सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है और समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा समर्थन का वादा किया गया है। कई राजनीतिक दलों ने भी समर्थन का वादा किया है।
मध्यप्रदेश के सिवनी जिला मुख्यालय के आंबेडकर चौक पर बाबासाहब आम्बेडकर प्रतिमा के समक्ष अनवरत 105 दिन तक चला किसानों का धरना अब जैतपुर कलां ग्राम में संयुक्त किसान मोर्चा सिवनी द्वारा पुनः शुरू किया गया है। रीवां जिले में 260वें दिन भी किसानों का धरना जारी रहा। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भारत बन्द के समर्थन में रैली निकाली। भारतीय किसान यूनियन ने भितरवार (ग्वालियर) में बंद को लेकर बैठक की।
2 अक्टूबर को चंपारण से शुरू होनेवाली पदयात्रा जो 20 अक्टूबर को वाराणसी पहुंचेगी, का पूरा विवरण तैयार करने के लिए रविवार को वाराणसी में एक योजना बैठक आयोजित की गयी।
महाराष्ट्र में विभिन्न किसान संघों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की जा रही शेतकारी संवाद यात्रा रविवार को छठे दिन अहमदनगर पहुंची। यहां नेताओं ने मीडिया प्रतिनिधियों के साथ ही किसानों, चीनी मिल मजदूरों और बुद्धिजीवियों की जनसभा को संबोधित किया।