8 नवंबर। उच्चतम न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हत्याकांड पर अपनी सुनवाई में सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को अब तक की स्पष्ट तौर पर पक्षपातपूर्ण और घटिया जांच के लिए कड़ी फटकार लगायी। न्यायालय ने लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के सबूत छिपाने के लिए यूपी की भाजपा सरकार के प्रयासों का संज्ञान लिया है। अदालत ने पाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक आरोपी को बचाने की कोशिश की जा रही है। अदालत ने सरकारी वकील द्वारा दिए गए बयानों, कि आरोपियों के पास सेल फोन नहीं था और इसलिए उसे जब्त नहीं किया जा सकता है, पर अविश्वास व्यक्त किया, और अदालत के समक्ष पेश किए गए जांच के रिकॉर्ड को अधूरा और अपर्याप्त पाया। मुख्य न्यायधीश की अगुवाई वाली बेंच ने पाया कि जांच दल दो अलग-अलग प्राथमिकी में जांच को उलझा रहा है और प्राथमिकी 220 (किसानों के खिलाफ) में गवाह के बयानों का इस्तेमाल प्राथमिकी 219 में एक आरोपी को बचाने के लिए किया जा रहा है। न्यायाधीश ने कहा कि जांच को अलग नहीं रखा गया है, और मामले में दो अतिव्यापी प्राथमिकी का उद्देश्य आरोपी (आशीष मिश्रा) को बचाना था।
अदालत ने इस बात पर नाराजगी जतायी कि सभी आरोपियों के फोन अब तक जब्त नहीं किये गये हैं और पिछली सुनवाई के 10 दिन बाद भी फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट नहीं आयी है। इस बीच, एक भाजपा कार्यकर्ता, श्याम सुंदर के परिवार का प्रतिनिधित्व करनेवाले एक वकील ने उसकी हिरासत में मौत की ओर इशारा किया; हालाँकि, अदालत ने ठीक बताया कि सीबीआई पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने अगली सुनवाई शुक्रवार, 12 नवंबर के लिए रखी है, और कहा कि वह दिन-प्रतिदिन की जांच की निगरानी के लिए एक दूसरे उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने की इच्छुक है और वह यूपी राज्य सरकार की ओर से नामित न्यायाधीश नहीं चाहती है।
जाहिर है, एक बार फिर, अपनी टिप्पणियों और कार्यों से, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा की जा रही पक्षपातपूर्ण जांच के बारे में अपनी आशंका व्यक्त की। एसकेएम की मांग है कि मोदी सरकार को कम से कम अब तो अजय मिश्रा टेनी को तुरंत बर्खास्त कर गिरफ्तार करना चाहिए। एसकेएम पहले दिन से मांग कर रहा है कि लखीमपुर खीरी नरसंहार की जांच सीधे उच्चतम न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए।
हरियाणा के हांसी में एसपी दफ्तर का घेराव
हरियाणा में सोमवार सुबह हजारों किसानों ने हांसी के एसपी कार्यालय का घेराव शुरू कर दिया। भाजपा सांसद राम चंदर जांगड़ा को काले झंडे दिखाने पर 3 किसानों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी वापस लेने की मांग को लेकर नारनौंद थाने में दो दिन तक धरना प्रदर्शन के बाद किसानों ने यहां धरना देना शुरू कर दिया है। राम चंदर जांगड़ा ने विरोध करनेवाले किसानों के खिलाफ अत्यधिक आपत्तिजनक और अपमानजनक बयान दिये थे और किसानों ने ऐसे बयानों का विरोध किया था। हरियाणा के किसान संगठन न केवल 3 किसानों के खिलाफ नारनौंद थाना क्षेत्र में प्राथमिकी वापस लेने की मांग कर रहे हैं बल्कि पुलिस द्वारा लाठीचार्ज के लिए जांगड़ा के खिलाफ मामला दर्ज करने की भी मांग कर रहे हैं। एक किसान कुलदीप सिंह राणा, जो 5 नवंबर को गंभीर रूप से घायल हो गए थे, की अब तक दो सर्जरी हो चुकी है और वह अभी भी अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी पत्नी और बेटी आज हरियाणा में हांसी के एसपी के कार्यालय में प्रदर्शनकारियों के साथ शामिल हुईं, जिससे आंदोलन के धैर्य और दृढ़ संकल्प का पता चलता है।
उत्तराखंड में किसानों पर झूठे मामले
पता चला है कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार, राज्य में भाजपा नेताओं के खिलाफ चल रहे काले झंडे के विरोध में शामिल किसानों पर झूठे मामले थोप रही है। संयुक्त किसान मोर्चा ने इसकी निंदा करते हुए नागरिक अधिकारों के दमन से उत्तराखंड सरकार को बाज आने को कहा है। एसकेएम का कहना है कि किसानों के खिलाफ दर्ज सभी फर्जी मामलों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
आज सिंघू बार्डर पर दोपहर 2 बजे संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक होगी। इस बैठक में दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन का एक साल पूरा होने से जुड़े फैसले लिये जाएंगे।
सत्यपाल मलिक का बयान
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने एक बार फिर किसान आंदोलन की मांगों को जायज बताते हुए समर्थन किया है। उनके बयान स्पष्ट रूप से केंद्र की असंवेदनशील, अनुत्तरदायी और लापरवाह सरकार की ओर इशारा करते हैं। इस आंदोलन में अब तक अपने गैरजिम्मेदार रवैये के कारण शहीद हुए सैकड़ों लोगों को श्रद्धांजलि देने और किसानों के हितों की रक्षा करने के बजाय, सरकार ने चुप रहने का फैसला किया है। इस बीच, भाजपा नेताओं को किसानों के खिलाफ, उनकी आंखें फोड़ने और हाथ काटने की धमकी देते हुए सुना जा सकता है। भाजपा के अरविंद शर्मा ऐसे बयानों का बचाव करते हुए भी सुने जा सकते हैं। भाजपा के गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा किसानों को कुचलने और कई लोगों को घायल करने के सूत्रधार हैं। भाजपा के एक मुख्यमंत्री को पार्टी कार्यकर्ताओं को किसानों के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाते हुए सुना गया। यह शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आंदोलन को कुचलने के प्रयास का भाजपा का समग्र गेम प्लान है।
तथ्यों से कन्नी काट रही है बीजेपी
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आगामी राज्य विधानसभा चुनावों पर हुई चर्चा में किसान आंदोलन एक बात बार-बार दोहराई गयी कि विरोध कर रहे किसानों ने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों पर अपनी विशिष्ट आपत्तियां नहीं बतायी हैं। सत्ताधारी पार्टी का यह कहना निश्चित रूप से दुखद है। भले ही सरकार किसानों के दृष्टिकोण, विश्लेषण और सबूतों की अनदेखी करने का विकल्प चुन रही है, जो कई दौर की बातचीत में प्रस्तुत किए गए थे, विभिन्न भाजपा शासित राज्यों के आधिकारिक आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि किसान क्यों हैं 3 कानूनों के खिलाफ – मंडियां बंद हो रही हैं, उनकी आय गिर रही है और वे अपने श्रमिकों को भुगतान करने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे भाजपा शासित राज्यों से ऐसे आंकड़े आए हैं। तथाकथित व्यापारियों द्वारा किसानों से करोड़ों रुपये लूटने के साथ अनियमित बाजारों में किसानों के साथ धोखाधड़ी के आंकड़े भी मौजूद हैं। यह दिखाने के लिए कई आधिकारिक सबूत भी हैं कि किसानों द्वारा लगभग सभी वस्तुओं पर कीमतों की प्राप्ति सरकार द्वारा घोषित अपर्याप्त एमएसपी से भी बहुत कम है।
यह भी स्पष्ट है कि सरकार को कीमतों को नियंत्रित करने और स्टॉक सीमा बनाए रखने के लिए पूर्व-संशोधित आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 पर निर्भर रहना पड़ रहा है – यह किसानों के आंदोलन के कारण हुआ है, जिसने उच्चतम न्यायालय को काले कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित करने के लिए मजबूर किया है। एसकेएम ने भाजपा को चेतावनी दी है कि सभी स्पष्ट सबूतों के बावजूद, कि 3 काले कानूनों को निरस्त करने की आवश्यकता क्यों है, और एमएसपी को सभी कृषि उपज और सभी किसानों के लिए कानूनी रूप से गारंटीकृत अधिकार में क्यों बनाया जाना चाहिए, अगर पार्टी किसानों की मांगों को पूरा नहीं करती है, तो नागरिक इसे अविस्मरणीय सबक सिखाएंगे।
ग्लासगो में मोदी सरकार का रुख अफसोसनाक
ग्लासगो में सी.ओ.पी. 26 में, भारत सरकार ने संधारणीय कृषि के एजेंडे पर हस्ताक्षर किये हैं, हालांकि वनों की कटाई को रोकने की प्रतिबद्धता से आपत्तिजनक रूप से परहेज किया है। संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि किसान आंदोलन भी कृषि के निगमीकरण को रोक कर, और फसल विविधीकरण के लिए एमएसपी की गारंटी मांगकर, हमारी खेती में संवहनीयता लाने की ही मांग कर रहा है।