— डॉ सुरेश खैरनार —
हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल ने कल हमारे देश के पुलिस अफसरों को ट्रेनिंग देनेवाली हैदराबाद की सरदार पटेल अकादमी के दीक्षांत समारोह में बहुत ही दुरुस्त बात कही है, कि राजनीतिक और सैनिक मकसद हासिल करने के लिए युद्ध अब ज्यादा असरदार नहीं रह गये हैं! दरअसल युद्ध बहुत महँगे होते हैं, हर देश उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकता! फिर उनके नतीजे के बारे में भी हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है! ऐसे में समाज को बाँटकर और भ्रम फैलाकर देश को नुकसान पहुँचाया जा सकता है! उन्होंने कहा कि लोग सबसे महत्त्वपूर्ण है! इसलिए युद्ध की चौथी पीढ़ी के तौर पर नया मोर्चा खुला है, जिसका टारगेट समाज है!
अजीत डोभाल जी भारतीय पुलिस सेवा के रिटायर अफसरों में से एक हैं। आईबी के प्रमुख के पद से उनके रिटायर होने के बाद,वर्तमान सरकार के आते ही (2014 में) उन्हें भारत के सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
सुना है कि अजीत डोभाल बचपन से आरएसएस की शाखा से प्रशिक्षित स्वयंसेवकों में से एक हैं! इसलिए उन्होंने जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात हैदराबाद की सरदार पटेल अकादमी के दीक्षांत समारोह में कही है, वह यह कि समाज को बाँटकर भी देश तोड़े जा सकते हैं! संघ सौ साल से भी ज्यादा समय से जो प्रशिक्षण, प्रचार-प्रसार कर रहा है वह देश को जोड़ने के कितना काम आ रहा है ? मेरे इस सवाल का जवाब देने का कष्ट करेंगे?
मैं भी अपने शुरुआती जीवन में संघ की शाखा में गया हूँ। और हिंदुओं का हिंदुस्तान जैसे खेल, गाने, बौद्धिक, कथा, कहानियाँ सुनने के बाद मुझे लगा कि यह तो देश की गंगा-जमुनी तहजीब को तार-तार करने की साजिश है! क्योंकि 1946-47 में धर्म के आधार पर ही इस देश का बँटवारा हुआ है, और मैं बँटवारा होने के बीस साल के भीतर (1965-66) की बात कर रहा हूँ, और संघ की शाखा में खुद अपने अनुभव से ही यह मजमून लिख रहा हूँ!
और सबसे हैरानी की बात, वे मुसलमानों को मुख्य धारा में शामिल करने पर जोर देते हैं। लेकिन जब मैंने शाखा में कुछ मुस्लिम लड़कों को ले जाने की कोशिश की, तो मुझे संघ ने बाहर का रास्ता दिखा दिया गया!
फिर मैं सही मायने में भारत की एकता-अखंडता के लिए स्थापित राष्ट्र सेवा दल में शामिल हुआ और उन मुस्लिम लड़कों को भी उस शाखा में शामिल करा सका! जिस राष्ट्र सेवा दल ने इस्लाम के साढ़े चौदह सौ साल के इतिहास में पहला रिफॉर्मिस्ट मुसलमान तैयार किया! मरहूम हमीद दलवई मुस्लिम सत्यशोधक समाज के संस्थापक थे और भारत में मुसलमानों को भी कॉमन सिविल कोड स्वीकार करने के लिए कहते थे और इस दिशा में वह पहले आंदोलनकारी थे। जिनकी 1977 में किडनी फेल होने के कारण अकाल मृत्यु हो गयी।
डोभाल साहब, आप खुद ईमानदारी से जवाब दीजिए कि क्या समाज को बाँटकर भी देश तोड़े जा सकते हैं? आप जब आईबी के प्रमुख पद पर थे तब 1 अप्रैल 2006 नांदेड़, 1 जून 2006 संघ मुख्यालय, नागपुर और मालेगाँव के दोनों विस्फोट तथा उसके बाद समझौता एक्सप्रेस; ये सब कांड हुए थे। कल आपने सरदार पटेल अकादमी के दीक्षांत समारोह में यही बात कही उस हैदराबाद की मक्का मस्जिद और लुंबिनी पार्क के विस्फोट और करकरे की शहादत नहीं हुई होती तो शायद भारत में काफी आतंकवादी हरकतों को उजागर किये जाने की संभावना थी जो लगभग रोक दी गयी है!
और मैं अगर गलत नहीं हूँ तो उस समय आईबी के प्रमुख पद पर आप ही थे! आप खुद भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण जाँच एजेंसियों में से एक के प्रमुख पद पर थे! क्या आपको लगता नहीं कि उन आतंकवादी हरकतों से भारत की एकता-अखंडता के लिए खतरा बन रहा है? और अब ‘समाज को बाँटकर भी देश तोड़े जा सकते हैं’ वाली आपकी कल की बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात आज से पंद्रह वर्ष पहले प्रत्यक्ष रूप से हो रही थी? डोभाल साहब आप जानते हैं कि इनमें से कुछ घटनाओं की जाँच मैंने खुद की है! और आपने खुद सुना है कि हमारे मरहूम दोस्त और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकार रहे प्रफुल्ल बिदवई के साथ आपने इस बात पर चर्चा की है !
डोभाल साहब, आप आज हमारे देश की रक्षा करने के लिए वर्तमान सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर हैं। इस नाते मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि अगर सचमुच आपने हैदराबाद की सरदार पटेल अकादमी के दीक्षांत समारोह में वह बात कही, जो हम लोग होश सँभालने के बाद से लगातार बोल-लिख रहे हैं, तो सांप्रदायिक आधार पर चल रहे वर्तमान सत्ताधारी राजनीतिक दल और उनके मातृ संघटन भारत के समाज को बाँटकर भी देश तोड़े जा सकते हैं वाली आपकी बात नहीं कर रहे हैं ? राम मंदिर आंदोलन से क्या देश को जोड़ने का काम हुआ है या बाँटने का ?
आप भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं और कल आपने पहली बार अपने पद की गरिमा का पालन करते हुए बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात की है, जिससे मै शत-प्रतिशत सहमत हूँ! हम लोग- राष्ट्र सेवा दल, आंतर भारती,साने गुरुजी कथामाला जैसे समूह- अस्सी साल से भी ज्यादा समय से यह बात समझाने की कोशिश कर रहे हैं! और हमारे सभी प्रशिक्षण और बौद्धिक गतिविधियों को देखकर क्या आपको लगता नहीं कि यह बात ईमानदारी से अगर कोई कर रहे हैं तो हम ही कर रहे हैं! हमारे बाबा आमटे जी के नेतृत्व में 1985-86 के दौरान भारत जोड़ो यात्रा और राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए हमारे सतत चल रहे प्रयासों में और हिंदुत्व या मुस्लिमत्व के आधार पर बने संघटन में आपको कोई फर्क नजर नहीं आता?
लेकिन संघ और उसकी देखा-देखी में चल रहे मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन तथा अन्य जातिवादी, सांप्रदायिक संघटन और सबसे अहम बात आप आज जिस सत्ताधारी दल के द्वारा चल रही सरकार के सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं क्या उसकी राजनीतिक गतिविधियों को देखकर आपको लगता नहीं कि अब समाज को बाँटकर भी देश तोड़े जा सकते हैं वाली आपकी बात पर वे अमल कर रहे हैं? चालीस साल की उम्र की पार्टी के कार्यक्रम देखने के बाद क्या आपको नहीं लगता कि आजादी के बाद भारत के समाज को बाँटकर भी देश तोड़ा जा सकता है!
राम मंदिर आंदोलन, गोहत्या बंदी, लव-जेहाद, धर्मांतरण विरोधी कानून, नागरिकता कानून से लेकर कश्मीर के साथ चल रहा व्यवहार! और आए दिन तीज-त्योहार के मौके पर जान-बूझकर की जानेवाली हरकतों को देखकर ही क्या आप यह कह रहे हैं कि देश के समाज को बाँटकर भी देश तोड़े जा सकते हैं? अजीत डोभाल साहब, आप अगर यह बात ईमानदारी से बोले हैं तो मैंने पहले ही कहा है कि देर आयद दुरुस्त आयद! और आपकी इस चिंता को दूर करने के लिए हम भी आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर आपको सहयोग करने के लिए तैयार हैं! लेकिन ईमानदारी से!