मनरेगा की मजदूरी के भुगतान के लिए स्वराज अभियान ने याचिका दायर की

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5 दिसंबर। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत करोड़ों श्रमिकों के गंभीर संकट में हस्तक्षेप की मांग करते हुए, स्वराज अभियान ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की है।

याचिका के माध्यम से, स्वराज अभियान करोड़ों श्रमिकों की दुर्दशा को अदालत के संज्ञान में लाना चाहता है, जिनकी मजदूरी केंद्र सरकार द्वारा धन का पर्याप्त आवंटन न किये जाने के कारण लंबित है। न्यायालय के ध्यान में यह भी लाया गया है कि –

() कोविड महामारी और केंद्र सरकार द्वारा अनियोजित लॉकडाउन के कारण, देश भर में करोड़ों श्रमिकों ने अपनी आजीविका खो दी थी, उनके लिए एक मनरेगा जीवन रेखा बन गयी है। दुर्भाग्य से, सरकार ने सबसे कमजोर व्यक्ति को सहारा देने के बजाय, कार्यक्रम के लिए बजटीय आवंटन को ₹ 37,000 करोड़ (वर्ष 2020-21 में ₹ 1,10,000 करोड़ से वर्ष 2021-22 में 73,000 करोड़ रुपये) कम कर दिया है। इस वर्ष कम किये गये बजट में से पिछले वर्ष के भुगतानों के समाशोधन पर ₹ 17,000 करोड़ खर्च किया गया, जबकि शेष बजट अक्टूबर माह तक समाप्त हो गया जब वित्तीय वर्ष में पांच माह शेष थे। इसके कारण 70 लाख श्रमिकों का कुल ₹ 1,121 करोड़ का पारिश्रमिक बकाया है। जानबूझकर अपर्याप्त आवंटन के कारण विलंबित भुगतान का एक दुष्परिणाम काम की मांग का दमन भी है, जहां मनरेगा के तहत काम पाने में विफल रहनेवाले श्रमिकों को मजबूरन बहुत कम भुगतान वाला काम करना पड़ता है।

() मनरेगा के तहत, हर ग्रामीण परिवार को सौ दिन के रोजगार का कानूनी अधिकार प्राप्त है। लेकिन अपर्याप्त धन आवंटन और अनियमित कार्यान्वयन के कारण, यह अधिकार गंभीर रूप से बाधित हो गया है।

स्वराज अभियान ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को एक निर्देश जारी कर, मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करने, श्रमिक काम के लिए अपनी मांग दर्ज करने में सक्षम हों और पंजीकरण के 15 दिनों के भीतर काम न मिलने वालों को बेरोजगारी भत्ता सुनिश्चित करने, और अगले 30 दिनों के भीतर सभी लंबित मजदूरी के भुगतान के लिए अभियाचना की है। केंद्र सरकार से प्रति परिवार 50 दिन का अतिरिक्त रोजगार देने का निर्देश देने की भी अभियाचना की गयी है।

याचिका को जल्द ही सूचीबद्ध किया जाएगा और सुनवाई की जाएगी।

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