27 दिसंबर। नीति आयोग ने वर्ष 2019-20 के लिए राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया। इस रिपोर्ट के मुताबिक कुल कार्य प्रदर्शन के मामले में केरल सबसे अव्वल रहा, जबकि उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर रहा।
रिपोर्ट के मुताबिक कुल कार्य प्रदर्शन के मामले में केरल का इंडेक्स स्कोर 82.20 रहा, जबकि उत्तर प्रदेश का 30.57 था। दूसरे स्थान पर तमिलनाडु (72.42), तीसरे पर तेलंगाना (69.96), आंध्र प्रदेश (69.95), महाराष्ट्र (69.14), गुजरात (63.59), हिमाचल (63.17), पंजाब (58.08), कर्नाटक (57.93), छत्तीसगढ़ (50.70), हरियाणा (49.26), असम (47.74), झारखंड (47.55), ओड़िशा (44.31), उत्तराखंड (44.21), राजस्थान (41.33), मध्य प्रदेश (36.72), बिहार (31.00) और उत्तर प्रदेश (30.57) का नंबर रहा।
वहीं 2018-19 के मुकाबले 2019-20 में प्रदर्शन में सुधार करने के मामले में ‘बड़े राज्यों’ की श्रेणी में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर रहा। उत्तर प्रदेश ने 5.52 इंक्रीमेंटल स्कोर दर्ज किया। इसके बाद असम, तेलंगाना, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, केरल, उत्तराखंड, ओड़िशा का नंबर रहा।
इसके बाद कई राज्यों को सुधार के मामले में नेगेटिव अंक दिए गए हैं जिनमें हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और कर्नाटक शामिल हैं।
इस रिपोर्ट को “स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत” शीर्षक दिया गया है। यह रिपोर्ट राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग, उनके स्वास्थ्य परिणामों में साल-दर-साल क्रमिक प्रदर्शन के साथ-साथ उनकी व्यापक स्थिति के आधार पर तय करती है।
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इस रिपोर्ट का चौथा दौर राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के 2018-19 से 2019-20 की अवधि में व्यापक प्रदर्शन और क्रमिक सुधार को मापने और उन्हें रेखांकित करने पर केंद्रित है। इस रिपोर्ट को संयुक्त रूप से नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार, सीईओ अमिताभ कांत, अतिरिक्त सचिव डॉ. राकेश सरवाल और विश्व बैंक की वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ शीना छाबड़ा ने जारी किया। इस रिपोर्ट को नीति आयोग ने विश्व बैंक की तकनीकी सहायता और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के गहन परामर्श से विकसित किया है।
‘छोटे राज्यों’ की श्रेणी में मिजोरम और मेघालय ने अधिकतम वार्षिक क्रमिक प्रगति दर्ज की। जबकि केंद्रशासित प्रदेशों की श्रेणी में दिल्ली के बाद जम्मू और कश्मीर ने सबसे अच्छा क्रमिक प्रदर्शन किया है।
इस मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, ‘राज्यों ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक जैसे सूचकांकों को अपने संज्ञान में लेना शुरू कर दिया है और उनका नीति निर्धारण व संसाधन आवंटन में उपयोग किया है। यह रिपोर्ट प्रतिस्पर्धी और सहकारी संघवाद, दोनों का एक उदाहरण है।’
वहीं, सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, ‘इस सूचकांक के जरिए हमारा उद्देश्य न केवल राज्यों के ऐतिहासिक प्रदर्शन, बल्कि उनके क्रमिक प्रदर्शन को भी देखना है। यह सूचकांक राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और एक-दूसरे से सीखने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है।’
इस सूचकांक को 2017 से संकलित और प्रकाशित किया जा रहा है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण और स्वास्थ्य सेवा के वितरण में सुधार के लिए प्रेरित करना है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रोत्साहन के लिए इस सूचकांक को जोड़ने का निर्णय लेकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस वार्षिक सूचकांक के महत्त्व पर फिर से जोर दिया है। यह रिपोर्ट बजट खर्च व इनपुट से आउटपुट व परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने में सहायक रही है।
(‘डाउन टु अर्थ’ हिंदी से साभार)