19 जनवरी। इसी दिन (30 जनवरी) 1948 में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। महात्मा गांधी की हत्या के बाद पूने में कुछ लोगों ने घी के दीये जलाये थे, मिठाइयाँ बाँटी थीं। आज भी हर वर्ष हिंदू महासभा के लोग गांधी के पुतले पर गोलियाँ बरसाते हैं, नकली खून बहाते हैं और गोडसे के जयकारे लगाते हैं। ‘धर्म संसद’ के नाम पर मजमा लगाकर गांधी को गालियाँ दी जा रही हैं। गांधी को गाली देनेवाले कालीचरण की गिरफ्तारी पर मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री और भाजपा नेता इसके विरोध में बयान देते हैं।
जलियाँवाला बाग, जो आमलोगों की शहादत की विरासत थी, का रंग-रूप बदल कर पर्यटन स्थल में तब्दील कर दिया गया है। यही ज्यादती साबरमती आश्रम के साथ की जा रही है। ‘विश्वस्तरीय’ बनाने के नाम पर उसकी बुनियाद ही खोदी जा रही है। सर्व सेवा संघ, वाराणसी के एक हिस्से को कब्जाया जा रहा है। सेवाग्राम पर भी नजरें गड़ी हैं।
यह सब गांधीजी की सादगी और प्रेम की बुनियादी सोच को हमेशा के लिए मिटा देने की सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है। पहले तो गांधी को ही देश के बँटवारे का जिम्मेवार ठहराते रहे, जबकि ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ सबसे पहले सावरकर ने दिया। बाद में जिन्ना ने हवा दी और देश का विभाजन हुआ। 1946 में बंगाल में हिंदू महासभा ने जिन्ना की मुसलिम लीग से मिलकर सरकार चलायी और आजादी के दीवानों को पकड़वाया। 1942 में श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने वाइसराय को खत लिखकर ‘भारत छोड़ो’आंदोलन को कुचलने की सलाह और इसके लिए हरसंभव मदद की पेशकश की थी।
30 जनवरी 1948 के पहले भी गांधी पर इन्हीं लोगों ने पाँच दफा और हमले किये थे। अंततः छठा हमला कामयाब हुआ और ‘हे राम’ कहते हुए गांधी के प्राण-पखेरू उड़ गये।
आज यही ताकत सत्ता के शीर्ष पर है। वे इस अवसर का इस्तेमाल गांधी को गाली दिलवाने, आजादी के मूल्यों को संदिग्ध करने और संघर्ष एवं शहादत की विरासत को मिटाने के लिए कर रहे हैं। ‘आजादी लीज पर मिली है’ या फिर ‘आजादी 2014 में मिली है’ जैसी बेबुनियाद बातें फैलायी जा रही हैं। सत्ता इसका कभी मौन तो कभी मुखर समर्थन करती है। यह सिर्फ महात्मा गांधी की शहादत का नहीं, भगतसिंह, खुदीराम बोस, अशफाक उल्ला ख़ाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, नेताजी….सहित उन तमाम शहीदों का अपमान है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में कुरबानी दी। सांप्रदायिक नफरत का आलम यह है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के लिए 80 बनाम 20 का नारा दे रहे हैं। सत्ता में बैठे हुए लोग सांप्रदायिक नफरत और हिंसा फैलाकर सत्ता में बने रहना चाहते हैं।
संविधान की हत्या की जा रही है। संवैधानिक/लोकतांत्रिक संस्थाओं कोनिष्प्राण किया जा रहा है। कोई कह रहा है कि 2024 का चुनाव देश का आखिरी चुनाव होगा, तो कोई कह रहा है- हमारा संविधान भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। देश में लोकतंत्र को खत्म करने, मनुस्मृति को संविधान बनाने की पुरजोर तैयारी चल रही है। इसका प्रतिवाद जरूरी है।
तीस जनवरी, शहादत दिवस हमें एक अवसर देता है कि हम देश, लोकतंत्र और सामाजिक ताने-बाने को बचाने का संकल्प लें। जरूरी है कि हम सड़क पर उतरें। जन संसद, सत्याग्रह, उपवास और प्रदर्शन का आयोजन करें। सभी कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए व्यापक अभियान चलाएँ, प्रचार करें, पारम्परिक और सोशल मीडिया पर अपनी बातें कहें। सहमना संगठनों के साथ व्यापक एकता बनाएँ। लोकतंत्र, संविधान और आजादी के मूल्यों के अनुरूप भारतीय समाज की बहुआयामी संरचना को बचाएँ और पुनर्रचना करें। यही हमारी जिम्मेदारी है, यही वक्त की आवाज है।
निवेदक –
वाहिनी कोआर्डिनेशन समिति
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