नेताजी की नजर में गांधी

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— गोपाल राठी —

संघी बिरादरी अपने सुनियोजित प्रचार के जरिए नेहरू के खिलाफ सरदार पटेल को और महात्मा गांधी के खिलाफ सुभाष बाबू को एक प्रतीक बनाकर नेहरू और गांधी का महत्व कम करने का प्रयास करती रही है। नेहरू-पटेल और गांधी-सुभाष के मतभेदों को आधार बनाकर अब गोडसे, सावरकर के अनुयायी इस तरह प्रकट करते है मानो सुभाष और पटेल इनकी पार्टी के नेता हों l इनको यह नहीं मालूम कि कांग्रेस से निकलने के बाद भी सुभाष बाबू कांग्रेसी ही थे, संघी नहीं हुए l इसलिए आजाद हिंद फौज की ब्रिग्रेड के नाम महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, नेहरू के नाम पर रखे गए थे, किसी संघी नायक के नाम पर नहींl गांधीजी से तमाम मतभेदों के बावजूद सुभाष बाबू के मन मे गांधी के प्रति बेहद इज्जत थी l गांधीजी को भेजे गए हर सन्देश में वे उनके आशीर्वाद के आकांक्षी रहे l

सुभाष चंद्र बोस उन नेताओं में थे, जिन्होंने महात्मा गांधी को हमेशा पूरा आदर दिया। वो ऐसे पहले शख्स भी थे, जिन्होंने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहा। वो ऐसे शख्स भी थे, जिन्होंने 1941 में भारत से बाहर जाकर आजादी की लड़ाई छेड़ी लेकिन हर विदेशी मंच पर गांधी को पूरा सम्मान दिया। वो जहां कहीं भी रहे, गांधी के लिए अवनत रहे।

इसका अंदाजा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 06 जुलाई 1944 को महात्मा गांधी के नाम दिए गए एक संदेश से जाहिर हो जाता है। इस संदेश से झलकता है कि वास्तव में सुभाष के लिए गांधी क्या थे, वो उन्हें लेकर क्या सोचते थे और उन्हें भारत के आजादी के संघर्ष में कहां देखते थे।

इस संदेश के मुख्य बिंदु-

* दुनियाभर के हिंदुस्तानी आपके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं। अंग्रेजों की जेल में श्रीमती कस्तूरबा जी की दुखद मृत्यु के बाद देशवासियों के लिए आपके स्वास्थ्य के बारे में चिंतित होना स्वाभाविक था। ये ईश्वर की कृपा है कि तुलनात्मक तौर पर आपके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। अब 48 करोड़ 80 लाख हिंदुस्तानियों को आपके मार्गदर्शन और सलाह का लाभ मिल सकेगा।

* बेशक अंग्रेज सरकार समझाने, नैतिक दबाव बनाने और अंहिसक प्रतिरोध करने से आत्मसमर्पण नहीं करेगी लेकिन जब आपने दिसंबर 1929 की लाहौर कांग्रेस में स्वतंत्रता प्रस्ताव का समर्थन किया है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्येक सदस्य के सामने एक समान लक्ष्य पैदा हो गया है। देश के बाहर के हिंदुस्तानियों के लिए आप देश में इस वर्तमान जागृति को लाने वाले हैं। सारे विश्व के सामने वो लोग आपको वह स्थान और सम्मान देते हैं, जो आपको मिलना चाहिए। विश्व के लोगों के लिए हम भारतीय राष्ट्रवादी एक ही हैं, जिनका जीवन में एक लक्ष्य, एक ही आकांक्षा और एक ही प्रयास है। 1941 में भारत छोड़ने के बाद मैं जिन देशों में भी गया और जो अंग्रेजी प्रभाव से मुक्त हैं, वहां आपको उच्चतम सम्मान से देखा जाता है, ऐसा सम्मान जो अन्य किसी भारतीय नेता को पिछली शताब्दी में नहीं मिला है।

*असल में जो देश ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधी हैं, उनमें आपके महत्त्व और आपकी उपलब्धियों की हजार गुना कद्र की जाती है, बनस्बित उन देशों के जो स्वतंत्रता और लोकतंत्र का मित्र होने का दावा करते हैं। देश के बाहर रहनेवाले भारतीयों और भारत की स्वतंत्रता के विदेशी मित्रों के मन में आपके प्रति जो आदर है, वो सौ गुना अधिक बढ़ गया, जब आपने अगस्त 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव का समर्थन किया।

* ऐसा कोई भी भारतीय नहीं है, चाहे वो देश में हो या बाहर, जो इस बात से खुश नहीं होगा कि भारत को आजादी उस तरीके से मिल जाए, जिसका आपने आजीवन समर्थन किया है और जिसमें मानव रक्त नहीं बहाना पड़े। जैसी परिस्थितियां अभी हैं, उसमें मुझको पूरा विश्वास हो गया है कि यदि हम आजादी चाहते हैं तो हमें खून की नदी पार करनी होगी।

* यदि परिस्थितियां ऐसी होतीं कि हम भारत के अंदर से ही अपने प्रयासों और संसाधनों की सहायता से एक सशस्त्र संघर्ष शुरू कर सकते तो हमारे लिए सबसे अच्छा रास्ता होता। लेकिन महात्मा जी, आप भारतीय परिस्थितियों के बारे में किसी भी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा बेहतर जानते हैं। जहां तक मेरा सवाल है, भारत में 20 सालों की जन सेवा के अनुभव के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि बाहर से बगैर थोड़ी मदद लिए- विदेशों में रहने वाले हमारे देशवासियों के साथ-साथ किसी अन्य देश या देशों की मदद लिये बिना- देश में एक सशस्त्र विरोध संगठित करना असंभव था।

* महात्मा जी, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इस खतरनाक मिशन पर निकलने का निर्णय लेने के पहले मैंने दिनों, हफ्तों और महीनों तक सावधानीपूर्वक इस मामले के पक्ष और विपक्ष पर विचार किया था। अपनी क्षमता भर अपने लोगों की इतने लंबे समय तक सेवा करने के बाद मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं हो सकती थी कि मैं गद्दार बनूं या किसी को मुझे गद्दार कहने का कारण दूं।

* महात्मा जी, मैं आपको भरोसा दिला सकता हूं कि मैं और मेरे साथ काम करनेवाले लोग खुद को भारत के लोगों का सेवक मानते हैं। अपने प्रयासों, कष्टों और बलिदान के लिए हम केवल एक ही पुरस्कार जीतना चाहते हैं और वो है भारत की आजादी। एक बार भारत आजाद हो जाए तो हममें से ऐसे बहुत से लोग हैं जो राजनीति से संन्यास लेना चाहेंगे। बाकी बचे लोग आजाद भारत में कोई भी पद, चाहे कितना ही छोटा क्यों ना हो, स्वीकार करने में संतोष का अनुभव करेंगे।

* भारत की आजादी की अंतिम लड़ाई शुरू हो चुकी है। आजाद हिंद फौज के लोग बहादुरी से लड़ रहे हैं। वो लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं। ये सशस्त्र संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कि अंतिम अंग्रेज को भारत से नहीं निकाल दिया जाता। जब तक नयी दिल्ली के वायसराय हाउस पर हमारा तिरंगा गर्व से लहराने नहीं लगता।

(हमारे राष्ट्रपिता,
भारत की स्वतंत्रता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और आपकी शुभकामनाएं मांगते हैं।)

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  1. Amazing!!! Neta ji Subhash Chandra Bose represented valour and virtue both. Despite differences, he treated Mahatma Gandhi as father figure and held him in the highest esteem. Rashtrapita Gandhi also treated his political associates better than his children. He did not appoint his biological children as heir. Those seeking to usurp legacy of Neta ji, must learn from his courage and valour. And those running down Mahatma ji, must learn from generosity of his heart. I am proud to be born in the same country where Gandhi and Subhash were born. Jai Hind.

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