यह तो अघोषित आपातकाल है

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— सुरेश खैरनार —

भी अभी हमने 73वां गणतंत्र दिवस मनाया! क्या सचमुच हमारा गणतंत्र सुरक्षित है? गत आठ साल से भी ज्यादा समय से हमारा गणतंत्र संकट के दौर से गुजर रहा है। वर्तमान सरकार के प्रथम बार मई 2014 में कार्यभार संभालने के दूसरे दिन से प्रजासत्ताक की कसौटी की घड़ी शुरू हो गयी थी जो थमने का नाम नहीं ले रही है !

सबसे पहले योजना आयोग को नीति (अनीति) आयोग घोषित किया गया ! उसके पश्चात यूजीसी पर गाज गिरी, फिर जेएनयू पर, जो हमारे देश में सबसे बड़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जगह रहा है। देशद्रोह का अड्डा बता कर उसे बदनाम करने का काम शुरू कर दिया गया ! कोर्ट ने खुद कहा है, यह सब झूठ था ! लेकिन कुछ विशेष बच्चों को लक्ष्य करके बदनामी की मुहिम चलायी गयी !

इसी तरह से हैदराबाद सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के दलित विद्यार्थी रोहित वेमुला को जान से हाथ धोना पड़ा ! जेएनयू का बायोटेक्नॉलॉजी विषय का छात्र नजीब माही छात्रावास से आज भी गायब है! आईआईटी चेन्नई के आंबेडकर स्टडी सर्कल को बैन करनेवाली घटना हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है ! मीडिया संस्थाओं पर कब्जा करने की बात अलग है, जो आज गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है !

फिर यूजीसी, एनसीईआरटी, आईसीएआर, आईसीएचआर, आईआईटी, आईआईएम तथा पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट तथा देश की सभी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं में नियोजित तरीके से संघ के एक से एक दकियानूसी और गैरअकादमिक लोगों को इन संस्थाओं के प्रमुख पदों पर बैठाने की शुरुआत करके गैरअकादमिक काम करने की कोशिश की जा रही है। फिर वह रवीन्द्रनाथ टैगौर द्वारा सवा सौ साल पहले शुरू की गयी विश्वभारती हो या देश की अन्य सेंट्रल यूनिवर्सिटी हो ! सभी जगहों पर एक से बढ़ कर एक संघी लोगों को वाइसचांसलर या प्रमुख पदाधिकारी बनाकर भेजा गया है। संघ के तय एजेंडे के अनुसार !

सिलेबस बदलने से लेकर जाति, धर्म के आधार पर काम कर रहे हैं ! और उसी जाति व्यवस्था के खिलाफ पूरी जिंदगी खपाने वाले आम्बेडकर के बड़े से बड़े स्मारकों की घोषणाओं की भरमार कराकर उस विषय से ध्यान हटा कर बांटो और राज करो नीति के साथ सांप्रदायिकता और जातिवादी आधार पर विद्वेष फैला रहे हैं !

इसी तरह साइंस कांग्रेस जैसी जगहों में जाकर गणपति को हमारे देश में सबसे पुरानी प्लास्टिक सर्जरी की मिसाल बताना! तो भाई इतना ही था तो गणपति का अपना मुंह क्यों नहीं लगवाए? एक हाथी के बच्चे की जान क्यों लेनी पड़ती है? वैसे ही गाय के गोबर से लेकर पेशाब में क्या क्या तत्त्व है इसका महिमामण्डन। ये हो गयीं अकादमिक बातें !

अब हमारे प्रजातंत्र के चार खंभे संसद, अभिव्यक्ति की आजादी, न्यायपालिका और कार्यपालिका, इन चारों खंभों को देखने से लगता है कि चारों के चारों चरमरा रहे हैं ! भारत के संसदीय इतिहास में यह पहली बार हुआ कि संसद के सत्रों की अवधि इतनी छोटी कर दी गयी है। इसके अलावा, सत्ताधारी दल की दादागीरी में ही पूरी कार्यवाही होती है ! कार्यपालक संस्थाओं को तो वर्तमान सरकार ईडी, सीबीआई, एनआईए, रा के इशारों पर नचाती जा रही है। सीबीआई का उदहारण तो अभी जारी है ! पांच राज्यों में चुनाव के दौरान ही विरोधी दलों के नेताओं के घरों पर रेड डालने का काम चल रहा है !

न्यायपालिका का क्या कहना! भारत की न्यायिक व्यवस्था में यह पहली बार हुआ कि चार कार्यरत जज अपने सरकारी आवास पर संवाददाता सम्मेलन में न्यायालय के रोज के कामकाज में दखलंदाजी की बात करते हैं ! 72 साल पहले से हमारा प्रजातंत्र शुरू है ! हमने 1975 में आपातकाल का समय देखा है ! लेकिन यह तो अघोषित आपातकाल और अघोषित सेंसरशिप है !

1975 में आपातकाल बाकायदा घोषित कर दिया गया था ! अभी तो खुलकर संघ परिवार के गुंडे आए दिन जो नंगा नाच कर रहे हैं वह आपातकाल को भी मात दे रहे हैं ! कांग्रेस कोई कैडरबेस पार्टी नहीं हैं इसलिए सरकारी नौकरी करनेवाले लोगों की मदद से आपातकाल लागू करने की कोशिश हुई ! यहां तो संघ के गुंडे हर जगह मौजूद हैं ! इसलिए ये हिटलर-मुसोलिनी की तर्ज पर फासिस्ट तरीके से देश चला रहे हैं !

चौथा मुद्दा है अभिव्यक्ति की आजादी का! आज बिरले ही अखबार या चैनल हैं जो स्वतंत्र रूप से काम कर पा रहे हैं ! कई वरिष्ठ पत्रकार कहते रहते हैं कि सरकार के बारे में थोड़ी भी आलोचना या टीका-टिप्पणी की, तो सीधे पीएम हाउस या ऑफिस से फोन आ जाता है !

पूरे देश में भय का माहौल है। अगर हमारे प्रजातंत्र को बचाना है तो तुरंत आपसी मतभेदों को भूलकर इस स्थिति को बदलने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए ! कम से कम जिन मुद्दों पर सहमति हो सकती है उन पर सबको एकजुट होकर फासीवादी ताकतों को पराजित करने के लिए इकठ्ठा होना चाहिए !

बाबासाहब आंबेडकर के 73 साल पहले के भाषण को याद करें, जो उन्होंने संविधान सभा में संविधान सौंपने के समय 26 जनवरी 1950 के दिन दिया था! “26 जनवरी 1950 के दिन भारत प्रजासत्ताक की शुरुआत करने जा रहा है ! लेकिन हमारी स्वतंत्रता का क्या? भारत अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखेगा या फिर से गंवा देगा? यह शंका पुन: पुन: मेरे मन में आने की वजह, हम इसके पहले भी आजाद रहे हैं ! लेकिन हमने अपने देश की स्वतंत्रता गंवाई है ! हमारे अपने ही बंधुओं की गद्दारी के कारण हमारी स्वतंत्रता गंवाई है ! इस बात को सोचकर मैं बेचैन हो जाता हूँ ! मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया था तो सिंध के राजा के सेनापति ने मोहम्मद बिन कासिम से पैसे लेकर, दहार राजा की तरफ से लड़ने के बजाय मोहम्मद बिन कासिम का साथ दिया! उसी तरह से मुहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चव्हाण के खिलाफ युद्ध के लिए जिसने आमंत्रित किया वह जयचंद राठौर ही था ! और अपने तथा सोलंकी राजा को मुहम्मद गोरी का साथ देने के लिए वादा किया !

“जब छत्रपति शिवाजी महाराज मुगलों से लड़ रहे थे तो उस समय कितने मराठा सरदार और जागीरदार और राजपूत राजे मुगलों की तरफ से लड़ रहे थे ! जब अंग्रेज सिखों के राज्य को नष्ट कर रहे थे तब अन्य सिख सेनापति हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और सिखों के राज्य को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। 1857 के युद्ध में सिख तटस्थ रहे और ग्वालियर के महाराज ने अंग्रेजों का साथ दिया ! इसलिए मेरा दिल कांप जाता है कि इसमें और एक बात का समावेश हो गया है कि जातीय और धार्मिक आधार पर जो राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ है और उनके कारण देश का बंटवारा भी हुआ है ! और मेरे मन में काफी उथल-पुथल शुरू हो गयी है कि इस तरह की सांप्रदायिक शक्तियों का बोलबाला बढ़ता रहा और देश दोयम दर्जे का हो जाता है तो फिर से हमारे देश की स्वतंत्रता खत्म होने की आशंका है और दोबारा वापस नहीं मिलेगी ! इसलिए हम सभी को मुस्तैद होकर ध्यान देने की आवश्यकता है !”

यह बात आज से 72 साल पहले बाबासाहब आंबेडकर ने संविधान सभा के आखिरी भाषण में कही थी, जो आज की परिस्थितियों पर हूबहू लागू होती है। इसलिए सिर्फ प्रजासत्ताक दिन या आजादी के पचहत्तर साल जैसे कर्मकाण्ड करने से आजादी या गणराज्य की रक्षा नहीं होगी। उसके लिए सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ सभी साथियों को मिलकर प्रयास करना होगा !

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