हरिवंशराय बच्चन की कविता

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पेंटिंग : एम.एफ. हुसेन
हरिवंशराय बच्चन (27 नवंबर 1907 – 18 जनवरी 2003)

तुम बड़ा उसे आदर दिखलाने आए

तुम बड़ा उसे आदर दिखलाने आए
चंदन, कपूर की चिता रचाने आए,
सोचा, किस महारथी की अरथी आती,
सोचा, उसने किस रण में प्राण बिछाए?

लाओ वे फरसे, बरछे, बल्‍लम, भाले,
जो निर्दोषों के लोहू से हैं काले,
लाओ वे सब हथियार, छुरे, तलवारें,
जिनसे बेकस-मासूम औरतों, बच्‍चों,
मर्दों,के तुमने लाखों शीश उतारे,

लाओ बंदूकें जिनसे गिरें हजारों,
तब फिर दुखांत, दुर्दांत महाभारत के
इस भीष्‍म पितामह की हम चि‍ता बनाएँ।

जिससे तुमने घर-घर में आग लगाई,
जिससे तुमने नगरों की पाँत जलाई,
लाओं वह लूकी सत्‍यानाशी, घाती,
तब हम अपने बापू की चिता जलाएँ।

वे जलें, बनी रह जाए फिरकेबंदी
वे जलें मगर हो आग न उसकी मंदी,
तो तुम सब जाओ, अपने को धिक्‍कारो,
गाँधी जी ने बेमतलब प्राण गँवाए।

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