नकली शेर
सुनो गधे की एक कहानी,
उसने की कैसी शैतानी।
जब होती थी रात घनेरी,
तब करता था वह नित फेरी।
चुपके चुपके बाहर जाता,
खेतों से गेहूँ खा आता।
गेहूँ खा-खा मस्ती छायी,
तब क्या उसके मन में आयी।
अब आगे की सुनो कहानी,
देखो, औंघाओ मत रानी।
खाल बाघ की उसने पायी,
उसने सूरत अजब बनायी
पहनी उसने खाल बदन में,
चला खेत चरने फिर बन में।
खाल पहन ली ऐसे वैसे,
गदहा बाघ बना हो जैसे।
फिर खुश होकर सीना ताने,
दिन में चला खेत को खाने!
डरे किसान देख कर सारे,
भागे झटपट बिना विचारे।
तब कुछ गदहे बोले ही ज्यों,
यह भी बोला चीपों चीपों!
खुली बाघ की कलई सारी,
तब तो शामत छाई भारी।
डंडे लगे धड़ाधड़ पड़ने,
लगे गधे के पैर उखड़ने।
भगा वहाँ से यह बेचारा,
सभी तरफ से हिम्मत हारा।
गिरते पड़ते घर को धाया,
मरते मरते प्राण बचाया।
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