पत्रकार शाह फहद की गिरफ्तारी पर ह्यूमन राइट्स वॉच की तीखी प्रतिक्रिया

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10 फरवरी। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कश्मीरी पत्रकार फहद शाह की गिफ्तारी को बेहद गंभीरता से लिया है और उसने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। उसने कहा है कि गिरफ्तारी न केवल मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला है बल्कि नागरिक आजादी और संविधान के बुनियादी अधिकारों की भी अनदेखी है।

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि यह गिरफ्तारी भारतीय सरकारी तंत्र द्वारा जम्मू-कश्मीर में की जा रही मीडिया और नागरिक समाज समूहों पर दमनात्मक कार्रवाइयों का हिस्सा है। उसने कहा कि 2019 के बाद, कश्मीर में कम-से-कम 35 पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के लिए पुलिस पूछताछ, छापेमारी, धमकी, हमलों या मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा है।

गौरतलब है कि कश्मीर स्थित एक प्रमुख न्यूज़ वेबसाइट ‘कश्मीर वाला’ के प्रधान संपादक शाह को 4 फरवरी, 2022 को गिरफ्तार किया गया और उन पर राजद्रोह और आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाया गया। यह कार्रवाई उनकी वेबसाइट पर, जनवरी में पुलवामा में हुई गोलीबारी, जिसमें सुरक्षा बलों ने उग्रवादी बताकर चार लोगों को मार डाला था, की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद की गयी। पुलिस का आरोप है कि शाह ने “आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन करते हुए, फर्जी खबरें साझा कर और लोगों को भड़काते हुए” सोशल मीडिया पर “राष्ट्र-विरोधी” सामग्री पोस्ट की। पुलिस ने हाल के वर्षों में शाह के लेखन के लिए उनसे कई बार पूछताछ की है और उन्हें हिरासत में लिया है।

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “फहद शाह की गिरफ्तारी भारत सरकार द्वारा मीडिया को उसे अपना काम करने और उत्पीड़न से जुड़ी रिपोर्टिंग के लिए डराने-धमकाने की महज ताजा कोशिश है। कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा किए गए उत्पीड़नों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के बजाय, सरकार उत्पीड़न की इन घटनाओं को सामने लानेवालों को चुप कराने में ज्यादा दिलचस्पी रखती है।”

शाह की गिरफ्तारी जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न, उन्हें धमकियां देने और उन पर मुकदमे दर्ज करने संबंधी बढ़ती घटनाओं के बीच हुई है। अगस्त, 2019 में राज्य की विशेष स्वायत्त स्थिति रद्द करने और इसे दो केंद्रशासित क्षेत्रों में बांटने के बाद सरकार ने अपनी दमनात्मक कार्रवाई तेज कर दी।

जनवरी में, पुलिस ने ‘कश्मीरवाला’ के एक अन्य पत्रकार सज्जाद गुल को भारत सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन संबंधी उनकी एक रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक साजिश के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन गुल को जमानत मिलने के बाद, पुलिस ने उन्हें हिरासत में ही रखने के मकसद से उन पर कठोर जन सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज कर दिया। पत्रकार आसिफ सुल्तान आतंकवाद संबंधी आरोपों में अगस्त 2018 से जेल में हैं, पुलिस ने उन पर उग्रवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया था। अक्टूबर 2021 में, एक स्वतंत्र फोटो पत्रकार मनन डर को दमनकारी आतंकवाद विरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था।

नवंबर में, सरकार ने एक प्रमुख कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज को भी गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।

असहमति को दबाने के लिए सरकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों और सरकार के आलोचकों के खिलाफ आतंकवाद निरोधी कानून का अधिकाधिक इस्तेमाल कर रही है। कानून में आतंकवाद की अस्पष्ट और व्यापक परिभाषा है जिसके दायरे में अल्पसंख्यक आबादी और नागरिक समाज समूहों के राजनीतिक विरोध सहित अनेक प्रकार की अहिंसक राजनीतिक गतिविधियां आ जाती हैं। वॉच ने कहा कि 2019 में, सरकार ने कानून में नए संशोधन कर अधिकारियों को बिना किसी आरोप या मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को “आतंकवादी” करार देने का अधिकार दे दिया और इस प्रकार संदिग्ध पर यह भार डाल दिया कि वे साबित करें कि वे आतंकवादी नहीं हैं।

सरकारी तंत्र ने पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के घरों पर छापेमारी तेज कर दी है और उनके सेल फोन जब्त किए हैं। सितंबर में, पुलिस ने चार कश्मीरी पत्रकारों के घरों पर छापा मारा और उनके फोन एवं लैपटॉप जब्त कर लिये।

उसने आगे बताया कि जनवरी 2020 में, सरकार ने जम्मू और कश्मीर में नयी मीडिया नीति घोषित की, जिसने इस क्षेत्र में अधिकारियों को समाचारों को सेंसर करने की और अधिक शक्ति प्रदान कर दी है। 2019 के बाद, पत्रकारों को उनके काम और उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर पूछताछ के लिए नियमित रूप से पुलिस थाने पर बुलाया गया है। उनके कामों में सरकार की आलोचना होने की स्थिति में उन्हें जेल में डाल देने की धमकी दी गयी है और उन पर खुद को सेंसर के लिए दबाव डाला गया है। ‘हिंदू’ के संवाददाता पीरज़ादा आशिक, ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ के संवाददाता हकीम इरफ़ान, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के बशारत मसूद और ‘आउटलुक’ के संवाददाता नसीर गनई को तलब किया गया और उनसे पूछताछ की गयी।

अप्रैल 2020 में, पुलिस ने आशिक, एक अन्य पत्रकार गौहर गिलानी और फोटो जर्नलिस्ट मसरत ज़हरा के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू की। जुलाई 2020 में, अधिकारियों ने काजी शिबली से पूछताछ की और उन्हें हिरासत में लिया। संपादक काजी शिबली को पहले भी जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिया गया था। न्यूज़ वेबसाइट आर्टिकल 14 की रिपोर्ट के अनुसार, हाल के महीनों में अधिकारियों ने प्रमुख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के लिए स्वतंत्र रिपोर्टिंग करने ववालों और स्वतंत्र पत्रकारों की जांच-पड़ताल तेज कर दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि छापेमारी, धमकियों और नजरबंदी का सामना कर रहे कई लोग डरे हुए हैं और खुद को सेंसर करने के लिए मजबूर हैं।

एक अन्य न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक 22 पत्रकारों समेत 40 से अधिक लोग सरकार की उस सूची में शामिल हैं, जिन्हें विदेश यात्रा से रोकने का निर्देश आव्रजन अधिकारियों को दिया गया है। 2019 में, गिलानी और अधिकार कार्यकर्ता बिलाल भट को विदेश जाने से रोक दिया गया था।

जून में, संयुक्त राष्ट्र के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विशेष दूत और मनमानी हिरासत के मामलों के कार्य समूह ने “जम्मू और कश्मीर की स्थिति का कवरेज करनेवाले पत्रकारों को कथित तौर पर मनमाने तरीके से हिरासत में लेने और धमकी देने” पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि ये उल्लंघन “जम्मू और कश्मीर में स्वतंत्र रिपोर्टिंग की आवाज दबाने के व्यापक तौर-तरीकों का हिस्सा हो सकते हैं। ये तौर-तरीके अंततः अन्य पत्रकारों और नागरिक समाज को इस क्षेत्र में सार्वजनिक हित और मानवाधिकारों के मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने से व्यापक तौर पर रोक सकते हैं।”

अक्टूबर 2020 में, जम्मू और कश्मीर सरकार ने मुखर अखबार ‘कश्मीर टाइम्स’ के श्रीनगर कार्यालय को सील कर दिया। यह स्पष्ट तौर पर अखबार के कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन के खिलाफ बदले की कार्रवाई थी जिन्होंने सरकार की दूरसंचार पाबंदियों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उसी महीने, जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों ने एक स्थानीय समाचार एजेंसी ‘कश्मीर न्यूज सर्विस’ को भी बंद करवा दिया।

कई पत्रकार संगठनों और विपक्षी नेताओं ने शाह की गिरफ्तारी की निंदा की है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि शाह की गिरफ्तारी “कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारों को पूछताछ हेतु बुलाने और अक्सर उन्हें हिरासत में लेने के व्यापक तरीके का हिस्सा है।” कई मीडिया संस्थाओं के संघ डिजीपब ने कहा कि शाह के किसी गैरकानूनी काम में संलिप्त होने के कोई संकेत नहीं हैं और पुलिस शाह को पहले भी धमकी दे चुकी है। अमेरिका स्थित ‘कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ ने भी शाह की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि उनकी गिरफ्तारी “जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों के स्वतंत्र और सुरक्षित रूप से कार्य करने के मौलिक अधिकार की पूरी तरह से अवहेलना को दर्शाती है।”

गांगुली ने कहा, “कश्मीर में भारतीय सरकारी तंत्र को फहद शाह और राजनीति से प्रेरित आरोपों में जेल में बंद तमाम पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आलोचकों को तुरंत रिहा करना चाहिए और कठोर कानूनों के जरिए उन्हें परेशान करना बंद कर देना चाहिए। जब सरकार पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को चुप कराने के लिए सत्तावादी तरीकों का इस्तेमाल करती है, तो इससे यही जाहिर होता है कि वह उत्पीड़नकारी कार्रवाइयां छिपा रही है।”

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित रिपोर्ट)

Janchowk.com से साभार

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