उप्र में छुट्टा पशु एक बड़ा चुनावी मुद्दा क्यों है

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15 फरवरी। “पापा ने देखा कि सांड फसल चर रहा था, वो उसे भगाने गए तो उसने पलटकर मार दिया। उनके पेट में चोट लगी थी। हम अस्पताल लेकर भागे, लेकिन बचा न पाए, उनकी मौत हो गई। छुट्टा पशुओं ने हमें तबाह कर रखा है,” उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के पिपरिया गांव के रहने वाले वीरेंद्र वर्मा (35) कहते हैं।

वीरेंद्र के पिता लालाराम की उम्र 59 साल थी। नवंबर 2019 में अपने खेतों को छुट्टा या आवारा पशुओं से बचाते हुए उनकी मौत हो गई। वीरेंद्र की बातों में छुट्टा पशुओं को लेकर गुस्सा साफ नजर आता है और कुछ न कर पाने की बेबसी भी दिखती है।

वीरेंद्र की तरह यूपी के दूसरे किसान भी छुट्टा पशुओं से बहुत परेशान हैं। उनके मुताबिक पिछले 3-4 साल में यह परेशानी तेजी से उभरी है। झुंड के झुंड छुट्टा पशु चलते हैं और पूरी फसल चर जाते हैं। किसानों को इससे हर साल नुकसान झेलना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश में इस समस्या का स्तर यह है कि अब ये सिर्फ किसानों की समस्या न रह कर एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है।

यूपी में 11.8 लाख छुट्टा पशु : पशुगणना

यूपी में छुट्टा पशुओं की संख्‍या तेजी से बढ़ रही है। साल 2012 से 2019 के बीच सात सालों में छुट्टा पशुओं की संख्‍या 17.3% बढ़ गई। पशुगणना के मुताबिक, उत्‍तर प्रदेश में 2012 में 10 लाख से ज्‍यादा छुट्टा पशु थे, सात साल बाद 2019 में यह संख्‍या करीब 11.8 लाख हो गई। साल 2019 में आई 20वीं पशुगणना के मुताबिक, देश में राजस्‍थान के बाद सबसे ज्‍यादा छुट्टा पशु यूपी में मौजूद हैं।

उत्‍तर प्रदेश पशुपालन विभाग के अपर न‍िदेशक (गोवंश), डॉ. जयप्रकाश ने इंडियास्पेंड को बताया, “छुट्टा पशुओं की देखभाल के लिए उत्‍तर प्रदेश में 5,619 गौशालाएं चल रही हैं, इनमें करीब 9.04 लाख गोवंश रखे गए हैं। संरक्षित छुट्टा पशुओं की संख्‍या लगातार बढ़ रही है, हर द‍िन तीन-चार हजार पशु बढ़ जाते हैं।”

“अब सड़कों और खेतों में ना के बराबर छुट्टा पशु हैं और जो थोड़े बचे हैं वो भी जल्दी ही हो जायेंगे,” वह आगे कहते हैं।

गौशालाओं के अलावा यूपी में ‘बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ भी चलाई जा रही है, ज‍िसके तहत लोगों को छुट्टा पशुओं को पालने के ल‍िए ₹30 प्रतिदिन द‍िए जाते हैं। इस योजना में एक लाख पशुओं को देने का लक्ष्‍य है। यह लक्ष्‍य करीब-करीब हास‍िल कर ल‍िया गया है। इंड‍ियास्‍पेंड को म‍िले आंकड़ों के मुताबिक, 25 स‍ितंबर 2021 तक 98,205 गोवंश 53,522 लोगों को द‍िए गए थे।

यूपी सरकार की कैबिनेट ने ‘मुख्यमंत्री निराश्रित/बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ को अगस्‍त 2019 में मंजूरी दी थी। योजना को मंजूरी देते वक्‍त यह तय हुआ था कि छुट्टा पशुओं को पालने वाले लोगों को हर तीन महीने पर भुगतान किया जाएगा और आगे चलकर हर महीने भुगतान होने लगेगा। हालांकि ऐसा हो नहीं पा रहा।

इस योजना में भाग लेने वाले किसान भुगतान में देरी, कम मूल्य की परेशानियों से जूझ रहे हैं, हमने नवंबर 2021 की अपनी रिपोर्ट में बताया।

नुकसान झेल रहे किसान

छुट्टा पशुओं की बढ़ती आबादी की कीमत किसान फसलों के नुकसान से अदा कर रहे हैं। गांव में आसानी से ऐसे किसान मिल जाते हैं जिनकी फसलों को छुट्टा पशु चर गए। यूपी के लखीमपुर जिले के बभनपुर गांव के रहने वाले अरविंद अवस्थी (43) कहते हैं, “जानवरों की वजह से मेरा करीब एक एकड़ गन्ना समाप्त हो गया। पिछले 4-5 साल से ऐसा नुकसान हो रहा है।”

“सरकार को इस पर ठोस कदम उठाना चाहिए। हमें किसान सम्मान निधि न दें, उसकी जगह इनको ठीक से रखने का काम करें। हमारी फसल बची रहेगी,” अरविंद कहते हैं।

यूपी का बड़ा क्षेत्रफल ग्रामीण होने के कारण छुट्टा पशुओं की दिक्कत ज्यादातर ग्रामीण इलाकों और किसानों के बीच दिखती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, यूपी की जनसंख्या 19.9 करोड़ है। इस आबादी का 77.73% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में रहता है। यूपी के 75 जिलों में 58 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतें हैं।

यूपी सरकार छुट्टा पशुओं के लिए भारी भरकम बजट लाती रही है। वित्त वर्ष 2019-20 में गांवों में गौशालाओं के निर्माण और रख रखाव के लिए ₹247 करोड़ और शहरों में कान्हा गोशाला के लिए ₹200 करोड़ जारी किए गए थे। इसके अलावा सरकार छुट्टा पशुओं की देखभाल के लिए अतिरिक्त कर भी लेकर आई जो शराब पर लागू की गई है। इससे सालाना करीब ₹165 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रहता है जो कि छुट्टा पशुओं की देखभाल में खर्च होता है।

डॉ. जयप्रकाश के मुताबिक, “गौशालाओं में हरा चारा, भूसा, दाना द‍िया जाता है। एक गोवंश पर प्रतिदिन ₹30 खर्च करने का प्रावधान है। इस ₹30 में उनका भरण पोषण किया जाता है।”

हर साल इतना बड़ा बजट जारी करने के बाद भी छुट्टा पशुओं की समस्या हल होने का नाम नहीं ले रही। उल्टा हर दिन यह बढ़ती जा रही है। वक्त वक्त पर गौशालाओं के खराब हाल पर खबरें भी आती हैं। पशुओं को चारा न मिलने, उनकी देखभाल करने के लिए गौशालाओं में लगाए गए कर्मचारियों को मानदेय न मिलने से जुड़ी बातें भी सामने आती रहती हैं। इन तमाम कमियों की वजह से छुट्टा पशु गौशालाओं की बजाय खेतों में खुले घूमते नजर आते हैं।
किसानों पर बढ़ा खेतों की रखवाली का भार

छुट्टा पशुओं की द‍िक्‍कत की वजह से किसानों पर खेतों की रखवाली का भार भी बढ़ गया है। किसान के पर‍िवार का एक सदस्‍य हमेशा खेतों में रहने को मजबूर है, साथ ही किसान को रात-रात भर जागकर फसल की न‍िगरानी करनी पड़ रही है।

पीलीभीत ज‍िले के प‍िपरिया भजा गांव के रहने वाले स‍ियाराम मौर्य छुट्टा पशुओं से काफी परेशान हैं। तमाम न‍िगरानी के बाद भी उनका एक एकड़ गेहूं जानवर चर गए। स‍ियाराम कहते हैं, “हम इस कड़ाके की ठंड में खेतों को बचा रहे हैं। हमारे घर के बच्‍चे, औरतें सब इसमें लगे रहते हैं। इतना ध्‍यान देने के बाद भी जानवर नुकसान कर जाते हैं।”

छुट्टा पशुओं से फसल बचाने के ल‍िए स‍ियाराम ने खेतों के चारों तरफ तार लगवाए हैं। इस तारबंदी में उनका करीब ₹20 हजार खर्च हुआ है। स‍ियाराम के अलावा दूसरे किसानों पर भी खेतों को बचाने का यह अत‍िरिक्‍त बोझ बढ़ गया है।

पीलीभीत के बेला पोखरा गांव के किसानों ने तो फसालों को बचाने के लिए चौकीदार रखे हैं। गांव के ही मनजीत सिंह बताते हैं, “मेरा करीब तीन एकड़ मटर था। इसमें से मटर की एक फली हमें नहीं मिली, सारा का सारा जानवर खा गए। इसके बाद गांव के किसानों ने म‍िलकर चौकीदार रखे हैं ताकि गौशालाओं की ओर से छुट्टा पशु गांव में न आ सकें, फिर भी राहत नहीं है।”

– रणविजय सिंह

(इंडियास्पेंड से साभार)


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