शिक्षा मनीषी रमेश थानवी को श्रद्धांजलि, शोकसभा संपन्न

0
स्मृतिशेष रमेश थानवी (1 अगस्त 1945 - 12 फरवरी 2022)

21 फरवरी। शिक्षा मनीषी रमेश थानवी को राजस्थान प्रौढ़ शिक्षा समिति के खचाखच भरे सभागार में सोमवार को एक ग़मगीन सभा में नम आंखों से श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। साथ ही डिजिटल प्लेटफार्म ज़ूम पर भी देश भर से लोग उस पुण्यात्मा को अकीदत पेश करने जुड़े थे।

सबके अपने रमेश जी, कुछ के लिए थानवी जी, इस माह (फरवरी) की 12 तारीख को चुपचाप अनंत की यात्रा पर चले गए।

समिति परिवार ने अपने संस्थान की नींव रखने से लेकर उसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलानेवाले इस महापुरुष को श्रद्धांजलि देने के लिए यह शोक सभा रखी थी।

पिछली सदी के सातवें दशक से रमेश जी के निकट के साथी रहे उच्च कोटि के लेखक, समालोचक, और कवि नंदकिशोर आचार्य ने उन्हें अपना भावुक सखा बताते हुए कहा कि वे जिस किसी भी काम में लगते उसमें ऐसे रम जाते थे कि काम पूरा हो जाने के बाद भी वे उसके भावों में डूबे रहते।

पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति ओम थानवी ने भी कहा कि भावुकता रमेश जी के स्वभाव का हिस्सा थी और वे सबसे लाड करते थे।

महात्मा गांधी और विनोबा के रास्ते पर चलते हुए बाल शिक्षा के यज्ञ में दशकों से लगी श्रीमती आशा बोथरा ने उन्हें ऐसा ज़िंदा शहीद बताया जो अद्वैत होकर रहा।

विश्वविद्यालय शिक्षक, अध्येता तथा सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘मस्जिद में ब्राह्मण’ के लेखक ओमप्रकाश टाक ने रमेश जी के मानवीय सरोकारों वाले गहरे लेखन को रेखांकित करते हुए कहा कि वे शब्दों को तोल कर उनका अद्भुत उपयोग करते थे।

संस्कृत की अध्येता श्रीमती रेणुका राठौड़ का कहना था कि रमेश जी के निधन से हमने क्या खोया है यह बाद में समझ में आएगा।

उर्मूल ट्रस्ट की श्रीमती सुशीला ओझा ने अपने अनुभव का साझा किया कि रमेश जी से अपनापा पानेवाले लोग प्रदेश के कोने कोने में फैले हैं।

बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति के अविनाश भार्गव ने उदात्त मानवीय समाज बनाने के रमेश जी के सपनों का जिक्र करते हुए कहा कि वे छोटी परियोजनाओं के जरिए भी बड़ा काम कर जाते थे।

आयुर्वेदिक औषधियों के विशेषज्ञ कृष्ण खांडल ने याद किया कि वे साधन नहीं साधना की जरूरत बताते थे और देना सिखाते थे।

‘दूसरा दशक’ के प्रिंस सलीम का कहना था कि आज देश में जिस प्रकार का माहौल है और जैसी हवा चल रही है ऐसे वक्त में रमेश जी की बेहद जरूरत थी।

लेखक, विश्लेषक और प्रकाशक दीपचंद सांखला इतने भावविह्वल थे कि कुछ नहीं कह सके। उनके मौन ने ही सब कुछ कह दिया।

इस अवसर पर बड़ी संख्या में वे युवतियां एवं युवक भी मौजूद थे जो रमेश जी का स्नेहिल मार्गदर्शन पाकर धन्य हुए रहते थे।

– राजेन्द्र बोड़ा

Leave a Comment