19 मार्च। होली रंगों का त्योहार है। यह त्योहार हर जगह अपने अंदाज से मनाया जाता है। मथुरा-वृन्दावन और बरसाने की होली को देखने के लिए तो विदेशों से भी पर्यटक आते हैं। बरसाने की लट्ठमार होली तो पूरे देश में विख्यात है, मगर आज हम जिस अद्भुत होली की बात कर रहे हैं, वह है बाराबंकी स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर खेली जानेवाली होली।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में हिंदू मुस्लिम एकता के प्रतीक प्रसिद्द सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जानेवाली होली में जाति-धर्म की सीमाएं टूटती नजर आती हैं। यहाँ हिन्दू-मुस्लिम एक साथ होली खेलकर एक-दूसरे के गले मिलकर होली की बधाई देते हैं।
हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर खेली जानेवाली होली की सबसे खास बात यह होती है, कि जो इनका सन्देश था कि ‘जो रब है, वही राम है’ की पूरी झलक इस होली में साफ-साफ दिखायी देती है। देश भर से हिन्दू, मुसलमान, सिख यहाँ आकर एकसाथ हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली खेलते हैं और एकता का सन्देश देते हैं। रंग, गुलाल और फूलों से विभिन्न धर्मों द्वारा खेली जानेवाली होली देखने में ही अदभुत नजर आती है।
यह भी विदित हो कि हाजी वारिस अली शाह की मजार का निर्माण उनके हिन्दू मित्र राजा पंचम सिंह ने कराया था। इसके निर्माण काल से ही यह स्थान हिन्दू-मुस्लिम एकता का सन्देश देता आ रहा है। यहां आने वाले जायरीनों में जितना मुस्लिम जायरीन आते हैं, उससे कहीं ज्यादा हिन्दू जायरीन आते हैं।
(Prabhat khabar से साभार)