नाज़िम हिकमत की कविता

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पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
नाज़िम हिकमत (15 जनवरी 1902 – 3 जून 1963)

हमारी औरतों के चेहरे

मेरी ने ईश्वर को जनम नहीं दिया।
मेरी ईश्वर की माँ नहीं है।
मेरी कई माँओ के बीच एक माँ है।
मेरी ने एक बेटे को जनम दिया,
कई बेटों के बीच एक बेटे को।
इसीलिए अपनी सभी तस्वीरों में
मेरी इतनी खूबसूरत है।
इसीलिए अपने बेटों की तरह मेरी का बेटा
हमारे इतने करीब है।
हमारी औरतों के चेहरे हमारे दर्द की किताब हैं।
हमारे दर्द, हमारी गलतियाँ और खून जो हमने बहाया
औरतों के चेहेरों पर हल के निशानों से खिंचे हुए हैं।
और हमारी खुशियाँ औरतों की आँखों में यूँ झलकती हैं
जैसे झीलों में चमकती हुई भोर।
और हमारे सपने उन औरतों के चेहरों पर हैं
जिन्हें हम प्यार करते हैं।
हम उन्हें देखें या न देखें वो हमारे सामने हैं
हमारी सच्चाई के सबसे करीब भी और दूर भी।

अनुवाद : डॉ विभा गर्ग

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