देश में 2016 से 2020 के बीच सांप्रदायिक दंगों के 3,400 मामले दर्ज हुए, अनुसूचित जाति-जनजाति पर भी बढ़े अत्याचार

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2 अप्रैल। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि देश में 2016 से 2020 के बीच सांप्रदायिक दंगों के करीब 3,400 मामले दर्ज किए गए।उन्होंने यह भी कहा कि इस अवधि में देश में दंगों के 2.76 लाख मामले दर्ज किए गए थे। राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के हवाले से कहा कि 2020 में सांप्रदायिक या धार्मिक दंगों के 857 मामले दर्ज किए गए। इसी तरह 2019 में 438, वर्ष 2018 में 512, वर्ष 2017 में 723 और वर्ष 2016 में 869 ऐसे मामले दर्ज किए गए।

प्रश्न कांग्रेस सांसद शशि थरूर और भाजपा सांसद चंद्र प्रकाश जोशी द्वारा पूछा गया था। दोनों सांसदों ने पूछा था कि क्या सरकार ने देश में हाल के सालों में हुए दंगों और लिंचिंग (भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या) का रिकॉर्ड रखा है। साथ ही, उन्होंने राजस्थान और बाकी सारे भारत में घटित इन घटनाओं की जानकारी माँगी।

अपने लिखित जवाब में राय ने कहा कि ‘भारत में अपराध’ नामक रिपोर्ट में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विभिन्न प्रकार के अपराध के आँकड़े प्रकाशित करता है, जो भारतीय अपराध संहिता और विशेष एवं स्थानीय कानूनों के तहत दर्ज किए जाते हैं।

हालांकि, आगे उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग के संबंध में एनसीआरबी द्वारा अलग डेटा नहीं रखा जाता है। दंगों के मामलों और जो स्वभाव से ‘सांप्रदायिक/धार्मिक’ के तौर पर वर्गीकृत किए जा सकते हैं, की जानकारी केंद्रीय मंत्री ने 2016 से 2020 तक वर्षवार विवरण में दी।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत भर में 2016 में 61,964 मामले दंगों के हुए, जिनमें से 869 धार्मिक या सांप्रदायिक दंगे थे। 2017 में 58,880 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 723 सांप्रदायिक या धार्मिक दंगे थे। 2018 में कुल 57,828 दंगे हुए जिनमें से 512 सांप्रदायिक या धार्मिक प्रवृत्ति के थे। 2019 में 45,985 दंगे हुए जिनमें 438 सांप्रदायिक या धार्मिक थे, वहीं 2020 में कुल दंगों की संख्या 51,606 थी जिनमें 857 सांप्रदायिक या धार्मिक दंगे थे।आँकड़ों से पता चलता है कि कुल 2,76,273 दंगे इन पांच सालों में हुए, जिनमें से 3399 धार्मिक या सांप्रदायिक दंगे थे।

वहीं, देश में 2018 से 2020 के दौरान तीन वर्षों की अवधि में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत 1,61,117 मामले दर्ज किए गए।

लोकसभा में दानिश अली के प्रश्न के लिखित उत्तर में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने यह जानकारी दी। अठावले द्वारा सदन में पेश आँकड़ों के मुताबिक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत देश भर में वर्ष 2018 में 49,064 मामले, वर्ष 2019 में 53,515 मामले और वर्ष 2020 में 58,538 मामले दर्ज किए गए।

मंत्री ने बताया कि पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य के विषय हैं और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 संबंधित राज्य सरकारों एवं संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासनों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।

अठावले ने कहा कि सरकार अत्याचार से संबंधित मामलों को शीघ्र दर्ज करने, अपराधों की तीव्रता से जाँच करने और न्यायालयों द्वारा मामलों का समय पर निपटारा सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकार की कानून कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ समीक्षा कर रही है।

लोकसभा में दानिश अली ने पूछा था कि पिछले तीन वर्षों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचारों विशेष रूप से समुदाय के युवकों को शादी में घोड़ी पर चढ़ने से रोकने, बारात को रोकने, डीजे संगीत बंद कराने सहित दर्ज मामलों की राज्यवार संख्या कितनी है?

(‘वायर न्यूज़’ से साभार)

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