दिल्ली-दून एक्सप्रेस-वे : पेड़ और कुल्हाड़ी के बीच ‘ढाल’ बने युवा और वन गुज्जर आदिवासी

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13 अप्रैल। दो घंटे के सुकून भरे सफर के लिए देहरादून में हजारों पेड़ों की बलि दी जा रही है। दिल्ली से देहरादून के बीच बननेवाले इस एक्सप्रेस-वे (दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे) के लिए दून के आशारोड़ी में साल समेत अन्य बहुमूल्य पेड़ काटे जाने हैं। जिसे लेकर विरोध शुरू हो गया है। दून के पर्यावरण प्रेमियों के साथ ही तमाम संगठनों ने इसका विरोध किया है। मंगलवार को यहाँ पहुँचे प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियाँ लेकर पेड़ों के काटने का विरोध किया। पोस्टकार्ड के जरिए सरकार को पर्यावरण की अहमियत बताई गयी। साथ ही गीत- संगीत और क्रांतिकारी गीतों के माध्यम से भी शासन, प्रशासन और सरकार को जगाने का प्रयास किया गया।

इस प्रोजेक्ट पर तमाम पर्यावरण प्रेमियों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए विरोध किया है। सभी ने गीतों के जरिए सरकार को पर्यावरण के महत्त्व को समझाया है। प्रदर्शनकारी पोस्टकार्ड के जरिए सरकार को संदेश दे रहे हैं। साथ ही तख्तियों के जरिए उत्तराखंड में दाखिल होनेवाले लोगों को भी इस प्रोजेक्ट के विरोध में खड़े होने की अपील की जा रही है। प्रदर्शनकारियों ने कहा, परेशानी केवल साल के दशकों पुराने पेड़ों को काटे जाने की नहीं है बल्कि इनकी कटाई से तमाम वन्यजीवों को होनेवाले नुकसान पर भी सरकार को आगाह करने की कोशिश की जा रही है।

नुकसान और भी हैं

इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने के बाद दिल्ली से देहरादून ढाई घंटे में पहुँच जाएंगे। यह एक्सप्रेस हाईवे 3 किमी देहरादून की सीमा में और 8 किमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले की सीमा में घने जंगलों से होकर गुजरेगा, जो शिवालिक पहाड़ियों का हिस्सा है। शिवालिक पहाड़ियों के जंगल अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर है। यहाँ सबसे ज्यादा संख्या में साल और सागौन के पेड़ हैं। ज्यादातर पेड़ों की उम्र सौ वर्ष से ज्यादा है। सड़क चौड़ी करने के लिए हजारों पेड़ काटे जाने हैं, लेकिन इस गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ ही शामिल किये गये हैं। जबकि इसमें छोटे और मझोले पेड़ भी काटे जाएंगे। जिनकी गिनती नहीं की गयी है।

बता दें बीते दिनों पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच इसको लेकर काफी कहासुनी भी हुई थी। प्रदर्शनकारियों ने अलग तरह से प्रदर्शन करते हुए काटकर गिराए गये पेड़ों की जिस भी शाखा पर ठेकेदार के मजदूरों ने कुल्हाड़ी चलाने का प्रयास किया, प्रदर्शनकारी उन शाखाओं पर बैठ गए। यह सिलसिला कई घंटों तक चलता रहा। बाद में कई घंटे तक प्रदर्शन करने के बाद प्रदर्शनकारी लौट गए। इसके बाद फिर से पेड़ों को गिराने का काम शुरू कर दिया गया।

(etv bharat से साभार)

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