— रमाशंकर सिंह —
मधुजी से मेरा संपर्क 1972 के बाद प्रारंभ हुआ हालांकि 1969 से ही उनको देखना, सुनना और जानना चल रहा था। तब दूसरे अन्य संघर्षशील समाजवादी नायक राजनारायण जी के प्रति उनके बेलौस, निश्छल और पारदर्शी व्यवहार के कारण ज्यादा निकटता हो चुकी थी और जैसी कि उस समय की समाजवादी राजनीति की स्थिति थी, मुझे राजनारायण जी के शिविर का व्यक्ति कहा जाने लगा था। लेकिन मधुजी के व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक ही था खासतौर पर भरी सभाओं में अपने अनूठे सोशलिस्ट विचारों को कहने की तथ्यात्मक व निर्भीक शैली। संसद में उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर तब समाज के हर तबके में सुबह अखबार आते ही चर्चा होने लगती थी।
मैं यहां उनके साथ अपने दो-तीन संस्मरणों को लिखकर उनके व्यक्तित्व की महानता की ओर इशारा कर रहा हूँ :
1. जनता पार्टी की मध्य प्रदेश सरकार में कमउम्र में मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में 1977 में मनोनीत किया गया, जोकि चौधरी चरण सिंह के सीधे हस्तक्षेप के कारण संभव हुआ जबकि इसकी सूचना मुझे नवनियुक्त मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा (जनसंघ घटक) ने फोन पर दी थी। कालांतर में मेरे और मुख्यमंत्री के सार्वजनिक विवाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई तक पहुंचे। जिन्होंने कैसी भी जांच किसी भी आरोप पर करवाने से इनकार कर दिया जबकि मेरे सभी आरोप तथ्यात्मक और दस्तावेजयुक्त थे। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह ने जरूर ही ई.डी. की आंतरिक जांच स्थापित की थी और प्रथम दृष्टया मेरे आरोप पुष्ट भी हुए थे। मुख्यमंत्री सखलेचा पर आरोपों का मुद्दा था मुख्यमंत्री के परिवार द्वारा भ्रष्टाचार की जांच। भारतीय जनसंघ या भाजपा के कई नेताओं द्वारा बाद में उन्हीं आरोपों पर श्री सखलेचा के विरुद्ध दलीय मंचों पर उन्हीं आरोपों को उठाया गया और श्री सखलेचा कुछ वर्षों बाद श्रीहीन होकर राजनीति के बियाबान में खो गए।
जब कई मुलाकातों में मोरारजी देसाई ने मेरी सभी बातों को अनसुना कर दिया तो मेरे पास कोई विकल्प ही नहीं बचा कि मैं तत्काल मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दूं। यही सोच कर मैं मधुजी से मिला और उन्हें अपनी तकलीफ व इच्छा बतायी तो उन्होंने भी मेरी इच्छा से सहमति जताई कि इस्तीफा देना ही बेहतर विकल्प है।
मेरे यह कहने पर कि चूंकि मामला मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार का है और अन्य सोशलिस्ट साथी भी मंत्रिपरिषद से यदि बाहर आ जाएं तो यह मुद्दा गरम हो सकता है और अंततः श्री सखलेचा को हटाने की स्थिति बन सकती है। मधुजी ने सिद्धांततः सहमति तो व्यक्त की पर साथ ही यह भी कहा कि मैं इस बाबत समाजवादी खेमे के नेताओं और मंत्रियों की राय और रुख से परिचित हूं इसलिए उन पर दबाव बनाने के लिए बेहतर होगा कि मैं शुरुआत करूं। तत्क्षण मैंने मधुजी से निवेदन किया कि वे त्यागपत्र की भाषा का डिक्टेशन दें। मध्य प्रदेश भवन दिल्ली में संयोग से आए हुए मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया। एक-दो हफ्ते बाद मधुजी से मैंने अन्य समाजवादी साथियों के इस्तीफे की बाबत पूछा तो दुखी होकर उन्होंने इतना ही कहा कि कोई भी तैयार नहीं है, सब छद्म क्रांतिकारिता कर रहे हैं और लड़ाई का माद्दा बचा ही नहीं है।
कुछ समय बाद केंद्र की सरकार भी गिर गयी और विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व लोकदल घटक के करीब 70 विधायकों में से मुझे छोड़कर कोई भी नहीं जीता। इसके बाद मधुजी से मेरी निकटता बढ़ गयी।
2. बाद में कभी एक और भेंट के दौरान मधुजी ने चलते-चलते ऐसे ही पूछ लिया कि आगे का क्या कार्यक्रम है? मैंने बताया कि कल एंबेसडर कार से सपरिवार भिंड जा रहा हूं। उन्होंने पूछा किस रूट से? मैंने कहा, इटावा होते हुए। पूछा कितने लोग हैं? गिनकर मैंने कहा, तीन वयस्क और दो बच्चे। फिर तो मैं आगे की सीट पर बैठकर चल सकता हूं, आगे मेरे साथ एक बच्चा या तुम बैठ सकते हो? जरूर, अच्छा लगेगा- मैंने कहा। तब एंबेसडर कार में आगे 2 सीटें नहीं बल्कि एक पूरी बड़ी बेंचनुमा सीट होती थी जिस पर तीन लोग ड्राइवर समेत बैठ जाते थे। अगले दिन पूरे रास्ते करीब 6 से 7 घंटे मधुजी मेरी पुत्रियों को तरह-तरह की लोरियां, गीत सुनाते रहे, दिलचस्प बातें करते रहे। इटावा सर्किट हाउस पर मुलायम सिंह यादव उनका एक जीप लेकर इंतजार करते मिले।
3. 1981 या 1982 में मेरी विदेश यात्रा सिंगापुर की हुई जो जापानी इलेक्ट्रॉनिक ध्वनि यंत्रों के बूम-काल के दौरान पटा पड़ा था और कीमतें भी कम। आवाज की अच्छी गुणवत्ता को सुनकर मुझे मधुजी की याद आयी जो कि रोज ही अपने एक पुराने फिलिप्स एलपी रिकॉर्डर मशीन पर अपेक्षाकृत खराब क्वालिटी की साउंड से संगीत सुनते थे। बरसों से उनके पास वही पुरानी मशीन थी जिसके एक ढक्कननुमा हिस्से में स्पीकर होता था। सिंगापुर के बाजार में सोनी या सान्यो ब्रांड का एक छोटा सा कैसेट रिकॉर्डर बहुत अच्छी ध्वनि गुणवत्ता का शायद दो हजार रुपये का मिल रहा था। मैंने खरीद लिया कि मधुजी को भेटं करूँगा कि वे अच्छी आवाज का संगीत सुन सकेंगे। दिल्ली आकर उन्हें दिखाया, काफी देर तक उन्होंने संगीत के कैसेट सुने, तारीफ की, और मधुजी की खुशी देखकर मैं विदा लेने के लिए उठा तो तत्काल ही मुझे रिकॉर्डर हाथों में रखकर बोले कि अच्छा है। मेरे कहने पर कि यह आपके लिए ही लिया गया, उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया कि मेरा तो पुराना ही रहेगा, इससे तुम संगीत सुनो। मेरी आंखों में आंसू आ गये, उन्होंने देखा और ‘बॉय’ कर अपने कमरे का दरवाजा धीरे से बंद कर दिया।
ऐसे थे मधुजी! निष्कलंक सादा जीवन, अपने सीमित साधनों में ही एक कमरे में जीवन व्यतीत करने वाले, और आचार- विचार-व्यवहार से सच्चे समाजवादी।
अपने इस महान पुरुखे को सादर प्रणाम!