23 मई। जहाँ देश में दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित संगठन नफरत का माहौल पैदा कर रहे हैं, कभी हिजाब, कभी अजान और कभी लाउडस्पीकर तो कभी लव-जिहाद, कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ अखिल भारतीय महिला समिति (एडवा) द्वारा ‘सद्भावना-फेरी अभियान’ चलाया जा रहा है, जिसका मकसद दक्षिणपंथियों द्वारा फैलाई जा रही नफरत और सांप्रदायिकता का विरोध करना है।
संगठन से जुड़ी महिलाएँ लखनऊ के अलग-अलग इलाकों में जाकर जनता का ध्यान महंगाई, बिजली-संकट, कृषि-संकट, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल जैसे जमीनी मुद्दों की तरफ आकर्षित कर रही हैं। सद्भावना-फेरी के दौरान सोमवार को राजधानी के उदयगंज में महिलाओं ने ‘आवाज दो हम एक हैं’ और ‘नहीं लड़े हैं – नहीं लड़ेंगे’ जैसे नारे लगाए। इलाके के लोगों के साथ संवाद स्थापित करते हुए महिला संगठन ने कहा कि “प्रदेश की जनता सांप्रदायिक मुद्दों में उलझी हुई है, और कानून-व्यवस्था की तरफ उसका ध्यान नहीं जा रहा है। जबकि यह इतना खराब है कि महिलाएं थानों में भी सुरक्षित नहीं हैं।” महिलाओं द्वारा सामाजिक एकता के स्टिकर भी दुकानों पर लगाये, जिनपर प्रसिद्ध कवि कैफ़ी आज़मी का शेर लिखा है।
“बस्ती में अपनी हिंदू-मुसलमां जो बस गए;
इंसां की शक्ल देखने को हम तरस गए!!”
दिलचस्प बात यह थी, कि मिठाई की दुकान पर बैठे एक हिंदू व्यापारी और मस्जिद से निकल रहे नमाजियों दोनों ने महिलाओं की बातों से सहमति जताई और हाथ उठाकर उनका समर्थन किया। कई जगहों पर जनता ने महिलाओं पर फूलों की वर्षा भी की। अभियान में शामिल एडवा की जिला अध्यक्ष सुमन सिंह ने कहा, कि जब सांप्रदायिक गैंग ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है, तो हम प्रगतिशील लोगों को बार-बार जनता के बीच जाकर संवाद स्थापित करना होगा।
महिला अधिकारों के लिए सक्रिय रहनेवाली एडवा की नेता मधु गर्ग ने कहा कि “हमें बेहद अफसोस है, कि हमारी इस गंगा-जमुनी तहजीब के खूबसूरत ताने-बाने को कुछ लोग नफरत की आग में जला देना चाहते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा, कि नागरिक अपने जीवन के बुनियादी मुद्दों रोजी-रोटी, स्वास्थ्य, शिक्षा आवास व सुरक्षा के लिए कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे।
एडवा की वंदना राय ने कहा कि हमें झूठा इतिहास बताकर नफरत की आग को तेज किया जा रहा है। किंतु हमें अपनी साझी विरासत को याद रखना होगा। आजादी की लड़ाई के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए वंदना राय ने कहा, “यदि रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की कमान संभाली थी, तो बेगम हजरत महल ने भी बहादुरी के साथ उनका सामना किया था। भगतसिंह लाहौर की जेल में देश के लिए फांसी के फंदे पर लटके थे, तो अशफाक उल्ला फैजाबाद की जेल में फांसी पर झूल गये थे।”
आखिर में महिलाओं ने कहा, कि सभी बातों का सार यह है कि हमारा देश हिंदुस्तान विभिन्न रंगों, संस्कृतियों, भाषाओं और धर्मों का खूबसूरत देश है। जिसे एक रंग में रॅंगने की साजिश दरअसल इसकी आत्मा पर चोट है। मधु गर्ग ने आगे कहा, कि हमारे बच्चों और आनेवाली नस्लों को अपनी साझी विरासत व साझी संस्कृति से दूर किया जा रहा है। नफरत की इस भयंकर आंधी में जनता के बुनियादी मुद्दे हवा हो गये हैं। हमारी छोटी-छोटी कोशिशें इस नफरत को कुछ हद तक रोक सकती हैं, और समाज में मोहब्बत और सद्भावना का संदेश दे सकती हैं। इसलिए एडवा ने इसी दिशा में काम करते हुए तय किया है, कि हम बस्तियों, मोहल्लों और बाजारों में अभियान चलाएंगे। हम पर्चे बांटेंगे, सद्भावना के स्टिकर चिपकाएंगे, गाने गाएंगे।
(‘न्यूज क्लिक’ से साभार)
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