हसदेव अरण्य में खनन के लिए काटे पेड़, विरोध के बाद रुकी कटाई

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1 जून। जैव-विविधता संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों को मंजूरी के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच राज्य के वन विभाग ने सोमवार को परसा ईस्ट कोयला खदान में खनन के दूसरे चरण के लिए पेड़ों को काटना शुरू कर दिया। हालांकि आदिवासियों के भारी विरोध के बाद इसे रोक दिया गया।

सरगुजा जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विवेक शुक्ला ने बताया, कि वन विभाग ने सोमवार सुबह घाटबर्रा गाँव से लगे पेंड्रामार जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी। इस दौरान बड़ी संख्या में पहुँचे ग्रामीणों ने कटाई का विरोध करने पर पेड़ों की कटाई रोक दी गई।भूपेश बघेल सरकार ने बीते मार्च में सरगुजा जिले में पीईकेबी दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए मंजूरी दी थी।

घाटबर्रा गाँव के सरपंच जयनंदन पोर्ते ने दावा किया है, कि पीईकेबी के दूसरे चरण के खनन की अनुमति फर्जी ग्रामसभा की सहमति के आधार पर दी गई। उन्होंने आरोप लगाया, कि पीईकेबी के दूसरे चरण के लिए 2019 में आयोजित ग्रामसभा की जानकारी उस समय घाटबर्रा के ग्रामीणों को नहीं दी गई थी। उस ग्रामसभा के हाजिरी रजिस्टर में 2019 से पहले मौत हो चुके गाँव के तीन निवासियों के हस्ताक्षर हैं। वह ग्राम सभा पूरी तरह से फर्जी थी। लेकिन इसके आधार पर खनन के लिए मंजूरी दे दी गई थी। हमने इसकी जाँच की माँग की है।

पिछले कुछ समय से इस क्षेत्र में जैव विविधता के विनाश को लेकर चिंता जताई जा रही है। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान के दो अध्ययनों ने ‘इस क्षेत्र में जैव विविधता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि खनन निस्संदेह इसे प्रभावित करेगा।’ भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद का कहना था, कि क्षेत्र के प्रस्तावित 23 कोयला ब्लॉकों में से 14 को मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने मानव-हाथी संघर्ष की बात करते हुए कहा था कि छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों के मुकाबले हाथियों की संख्या कम है।

ग्रामीणों ने यह भी कहा है, कि इस परियोजना से उनकी भूमि तक पहुँच और उनकी आजीविका प्रभावित होगी अक्टूबर 2021 में अवैध भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लोगों ने रायपुर तक 300 किमी पदयात्रा की थी। हसदेव अरण्य एक घना जंगल है और 1500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह क्षेत्र आदिवासियों निवास स्थान है। इस जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पाँच अरब टन कोयला है। इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं।

हसदेव जंगल को कोयला एवं पर्यावरण मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था। लेकिन इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हुआ था। केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी।

2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने मदनपुर में एक सभा के दौरान हसदेव को कटने नहीं देने का वादा किया था। राज्य के सीएम भूपेश बघेल ने भी विपक्ष में रहते हुए खनन और राजस्थान सरकार के अडानी समूह के साथ किए गए अनुबंध का विरोध किया था। लेकिन सत्ता में आते ही बघेल सरकार ने आदिवासियों के साथ वादाखिलाफी की।

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