हसदेव अरण्य : खनन पर रोक काफी नहीं, कोल आवंटन निरस्त हो – ग्राम सभाएं

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— अवधेश मलिक —

सदेव अरण्य में खनन पर रोक लगाने भर से ग्राम सभाएं आश्वस्त नहीं हैं। ग्राम सभाएं सरकार से स्थगित किए गए आवंटन का संविधान सम्मत और विधिपूर्वक निरस्तीकरण चाहती हैं। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि माइनिंग लीज को निरस्त करने का अधिकार राज्य सरकार के हाथ में नहीं है बल्कि केंद्र सरकार के हाथ में है। ऐसे में प्रदर्शनकारी दिल्ली में जाकर प्रदर्शन करें।

वहीं, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य आलोक शुक्ला ने कोयला खदानों के स्थगन को लेकर सरकार पर आरोप लगाया है कि राज्य प्रशासन का दायित्व था कि वे संविधान, आदिवासी हित, वन एवं पर्यावरण संरक्षण के धाराओं साथ कार्यवाही करती न कि किसी मंत्री के सहमत और असहमत होने के आधार पर निर्णय लेते। जब तक हसदेव अरण्य में कोयला खदानों का आवंटन निरस्त नहीं होगा तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।

केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अडानी जैसे कॉरपोरेट कंपनियों के हित में कार्य कर रही हैं। माइनिंग लीज के निरस्तीकरण का निर्णायक अधिकार जिसके पास हो वह तत्काल उचित कदम उठाए।

समिति ने आरोप लगाया है कि सरकारों ने खनन परियोजना को शुरू करने के लिए आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को कुचलते हुए ग्राम सभाओं के निर्णयों की अवहेलना करके फर्जी तरीके से स्वीकृति दी। उन्होंने कहा कि स्पष्ट चेतावनी भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में देते हुए सम्पूर्ण हसदेव अरण्य को खनन मुक्त करने की सिफारिश की है।

ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद हुआ कोल आवंटन

वर्ष 2014 के बाद ग्रामसभाओं के विरोध के वाबजूद परसा, परसा ईस्ट केते बासेन और केते एक्सटेंसन कोल ब्लॉक राजस्थान सरकार को, पतुरिया गिदमुड़ी छत्तीसगढ़ सरकार एवं मदनपुर साऊथ आंध्रप्रदेश सरकार को आवंटित किए गए है। मदनपुर को छोड़कर सभी कोल ब्लॉक के विकास व खनन का अनुबंध अडानी समूह को दिया गया है।

आलोक शुक्ला ने आरोप लगाया कि राजस्थान सरकार को आवंटित कोल ब्लॉक में खनन शुरू करने के लिए अडानी समूह के द्वारा फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के आधार पर वन स्वीकृति हासिल कर जबरन भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया राज्य व केंद्र सरकार के सहयोग से आगे बढ़ा रही है। यहाँ तक कि हसदेव अरण्य की आईसीएफआरई द्वारा की गई जैव विविधता अध्ययन रिपोर्ट की अनुशंसा को भी एनजीटी द्वारा तय की गई शर्तो के विपरीत लिखवाया गया जबकि डब्ल्यूआईआई  के द्वारा स्पष्ट रूप से खनन पर प्रतिबंध लगाकर सम्पूर्ण क्षेत्र को नो गो करने की सिफारिश की गई है।

परसा कोल ब्लॉक प्रभावित ग्राम सभाओं के फर्जी प्रस्ताव की जांच तक नहीं हुई – 1252 हेक्टेयर क्षेत्रफल की इस खनन परियोजना से 2 गाँव फतेहपुर, हरिहरपुर  पूरी तरह से एवं 1 गांव साल्ही आंशिक विस्थापित होगा जिसमें लगभग 1500 ग्रामीण प्रत्यक्ष और हजारों अप्रत्यक्ष प्रभावित होंगे। इन गाँव की ग्राम सभाओं ने वर्ष 2014 से 18 के बीच 4 बार ग्राम सभाओं में विरोध दर्ज किया इसके बावजूद वर्ष 2018 में कंपनी और जिला प्रशासन नें मिलकर ब्लॉक मुख्यालय उदयपुर फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव तैयार कर खनन संबंधी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।

300 किलोमीटर पदयात्रा के बाद राज्यपाल के निर्देश के वाबजूद बिना ग्रामसभा जाँच किए परियोजना की अंतिम वन स्वीकृति केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा 21 अक्टूबर 2021 एवं राज्य सरकर के वन विभाग द्वारा  6 अप्रैल 2022  को जारी कर पेड़ो की कटाई शुरू करवा दी गई जिसके खिलाफ 2 मार्च से ही आदिवासी अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं।

अतः सरकार खनन कार्य व भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही कोल बेयरिंग एक्ट 19 57 के तहत कर रही है जो कि पेसा अधिनियम और संविधान की पांचवी अनुसूची का सीधे सीधे उल्लंघन है।

अडानी से सवाल क्यों नहीं किया जाता

परसा ईस्ट केते बासेन के प्रथम चरण का कोयला अवैध रूप से निकाला गया – इस परियोजना को वर्ष 2012 में स्वीकृति दी गई थी जिसे दो चरणों में खनन योजना को विभाजित किया गया था। प्रथम चरण में 15 वर्षो के लिए 137 मिलियन टन कोयला निकलने के बाद दूसरे चरण की शुरुआत वर्ष 2028 से होनी थी। अडानी कम्पनी के द्वारा अभी तक मात्र 82 मिलियन टन कोयला खनन के बाद कोयला समाप्ति की बात कहकर  दूसरे चरण की अनुमति हासिल कर ली है।

मृत लोगों के हस्ताक्षर ग्राम सभा प्रस्ताव में

समिति ने आरोप लगाया कि खनन दूसरे चरण में  घाटबर्रा गांव पूरी तरह विस्थापित होगा जिसके भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया 2013 के भूमि अर्जन कानून से वर्ष 2019 से शुरू हुई। वर्ष 2019 में जिस ग्राम सभा प्रस्ताव को आधार बनाया गया वह ग्रामसभा फर्जी है साथ ही इसमें 3 मृत लोगों के हस्ताक्षर हैं जिनका वर्ष 2015 के पूर्व ही निधन हो गया था। इस पर आज तक जांच नहीं हुई।

प्रशासन के आदेश पर घाटबर्रा में हुई ग्राम सभा, प्रशासन इसे फर्जी करार दे रहा है

सरगुजा कलेक्टर संजीव झा के 25 मई लिखित निर्देश पर घाटबर्रा में परसा ईस्ट केते बासन (PEKB) खदान के विस्तार हेतू आवश्यक भूमि-अधिग्रहण और मुआवजा आदि के प्रस्ताव पारित करने के लिए विशेष ग्राम सभा का आयोजन करने के लिए पहले 4 जून उसके अंतिम रूप से 8 जून को ग्राम सभा कराई गई। इसमें ग्रामीणों ने प्रस्ताव का तीखा विरोध शुरू किया तो विवाद हो गया। प्रशासन ने ग्राम सभा को स्थगित कर दिया। उसके बाद एसडीएम ने फोन पर चर्चा के बाद 4 जून को ग्राम सभा की तारीख तय हुई। उस दिन भी ग्राम सभा की बैठक नहीं हो पाई। उसके बाद 8 जून को ग्राम सभा करा ली गई। इसमें मौजूद लोगों ने खदान के लिए भूमि-अधिग्रहण और मुआवजा आदि के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। उसके बाद ग्राम सभा ने प्रशासन के प्रस्ताव के विरोध में प्रस्ताव पारित कर खदान को निरस्त करने की अनुसंशा की। इस बात से चिढ़ कर प्रशासन ने 7 जून के तारीख में को एक नोटिस जारी ग्राम सभा को निरस्त करने की बात कही। कोशिश यह था कि ग्राम सभा को अवैध करार दिया जाए। प्रेस वार्ता में सम्मिलित हुए घाटबर्रा के सरपंच जयनंदन पोर्ते का कहना है सरपंच और  ग्राम सचिव को आज तक वह नोटिस ही नहीं मिला।

वहीं, फतेहपुर के मुनेश्वर पोर्ते, घाटबर्रा के सरपंच जयनंदन पोर्ते, साल्ही के सरपंच विजय कोर्राम बासेन के सरपंच श्रीपाल पोर्ते ने कहा प्रशासन अडानी कंपनी के दबाव में लगातार आदिवासी हितों, पेसा कानून, वन अधिकार, वन  एवं पर्यावरण संरक्षण संबंधी कानूनों का उल्लंघन कर रही है।

(डाउन टु अर्थ से साभार)

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